मैंने यह निश्चय किया था कि ब्लाग पर कभी व्यंग के सिवा और कुछ न लिखूंगा पर आज मैं अपनी यह कसम तोड़ रहा हूं सिर्फ यह बताने के लिये कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और मेरा मानना है कि मेरी और आपकी आवाज कश्मीर के मुट्ठीभर अलगाववादियों को जरूर सुनाई देगी ।
यह लेख अभी हाल में जागरण जंक्शन पर प्रकाशित हुये लेख ”गोली मार भेजे में” के उत्तर में है ।
पहले उपरोक्त लेख में की गयीं कुछ टिप्पणियां हैं ।
K M Mishra के द्वारा September 18, 2010
विशेष सशस्त्र बल कानून का एक दूसरा पक्ष भी है । वह पक्ष है कश्मीर और पश्चिमोत्तर जैसी स्थितियों को पूरे भारत में फैलने से रोकना । अनु0 370 का मजा लूटने वालों और कश्मीर को भारत से अलग करने वालों के लिये ही विशेष सशस्त्र बल कानून की जरूरत पड़ती है । कश्मीर घाटी में पाकिस्तान का झंडा लहराने वालों और इसी भारतीय संविधान को रद्दी से ज्यादा न मानने वालों को के लिये अनुच्छेद 21 की बात करना बेमानी होगी । उपेन्द्र जी सत्ता और यह दुनिया हमेशा से सिर्फ अच्छी अच्छी नीतियों से नहीं चलती हैं । आज पंजाब शांत है तो उसके लिये इंदिराजी का वह दमनकारी रूप इसका कारण है और कश्मीर अशांत है तो वह इसलिये क्योंकि वहां पर भारत की अखण्डता को चूनौती देने वाले खटमालों को दमन नहीं किया जा रहा है । सारे कीड़े मकोड़ों को साफ करके के पश्चात ही वहां शांति प्रिय देश की नीतियों लागू हो सकती है । इन खटमलों का एक ही उद्देश्य है कश्मीर को अलग कर के भारत की अखंडता पर हमला । अमरनाथ यात्रा आप बड़ी जल्दी भूल गये । इसके अलावा कश्मीरी पण्डितों के साथ क्या किया गया और आज सिख और बौद्धों को किस तरह से धर्मपरिर्वतन के लिये धमकाया जा रहा है । और रही मूलाधिकार की बात तो मूलाधिकारों का कितना पालन इस देश में हो रहा है ये भी तो आप अच्छी तरह जानते हैं । आभार ।
आर.एन. शाही के द्वारा September 18, 2010
मैं श्रद्धेय मिश्रा जी की भावनाओं से सहमति प्रकट करते हुए यह कहना चाहूंगा कि ठीक ऐसे समय, जबकि हमारे जवान कश्मीर में चौतरफ़ा आग और पत्थरों से घिरे हुए एक तरफ़ अलगाववादियों से जूझ रहे हैं, और दूसरी तरफ़ वहां के आतंकवाद की चिर समस्या से, पूरे देश की मीडिया से कुछ चुनिन्दा तत्वों को क्यों ऐसे ही वक़्त इस अनुच्छेद को तत्काल प्रभाव से हटा लेने की सख्त आवश्यकता महसूस हो रही है? ये मांग इतने ज़ोर-शोर से इसके पूर्व के दिनों में नहीं उठी थी । कहीं इसके निहितार्थ में भी तो कोई रहस्य नहीं छुपा हुआ है?
Ramesh bajpai के द्वारा September 18, 2010
प्रिय श्री मिश्रा जी, उपेन्द्र जी अनुच्छेद 370 को बिलकुल साधारण मान रहे है उनकी दलील है की यह तो काफी पहले से लागु .है ,
K M Mishra के द्वारा September 19, 2010
शाही सर प्रणाम । अनुच्छेद 370 का विरोध उतना ही पुराना है जितनी कश्मीर समस्या पुरानी है । गलत राजनैतिक लाभ लेने के लिये और तुष्टीकरण की नीतियां किस हद तक आत्मघाती होती हैं यह इसका साफ उदाहरण है । हमने कश्मीर सहित कई राज्यों को 370 की बैसाखी दे दी । आप देखें कि इस बैसाखी का प्रयोग जम्मू कश्मीर में सिर्फ कश्मीर घाटी के लिये ही होता है जम्मू और लद्दाख के इलाकों के वो सुविधा नहीं दी जाती है । कश्मीर घाटी जम्मू कश्मीर का मात्र एक छोटा सा हिस्सा है । 2/3 कश्मीर जम्मू और लद्दाख में बसता है । कश्मीरियत की बात होती है तो सिर्फ घाटी के 7,8 जिलों के लिये । क्या जम्मू में बसने वाले हिंदू और सिख और लद्दाख में बसने वाले बौद्ध कश्मीरी नहीं हैं । 370 का काला अनुभव यह कहता है कि इन राज्यों को हमने विशेष दर्जा देकर उनको आम भारतीयों से दस फिट ऊपर बैठा दिया । अब वे स्वायत्ता और उसकी आड़ में स्वतंत्रता की बात करते हैं पाकिस्तान के इशारों पर । वहां न हमारा संविधान लागू होता है और नहीं हमारा तिरंगा । कुल मिलाकर अनु0 370 ने ही उनको न भारतीय होने दिया और न ही उस क्षेत्र को भारत का हिस्सा मानने दिया । अनु0 370 ही मामले की असली जड़ है । शांति की बात वही समझता है जो शांति से रहना चाहता है । मगर जो अपने आप को स्वतंत्रता सैनानी समझता है वह भारत के खिलाफ युद्ध छेड़े हुये है और युद्ध के नियम सदा से ही दूसरे होते हैं ।
upendraswami के द्वारा September 21, 2010
मिश्रा जी, शाही जी, रमेश जी! मुझे लगता है कि कश्मीर को देखने का हमारा नजरिया बहुत सीमित व एकतरफा है- अनुच्छेद 370, कश्मीरी पंडित.. वगैरह, वगैरह। मिश्रा जी का कश्मीर के लोगों को कीड़े-मकोड़े, खटमल कहना दर्शाता है कि हम किस सोच के साथ इस चुनौती का सामना कर रहे हैं। क्या कश्मीर के सारे लोगों को ठिकाने लगाकर कश्मीर पर नियंत्रण बनाए रखने में हमें गर्व होगा या एक फलते-फूलते कश्मीर को साथ लेकर चलते हुए गमें गर्व होगा- जवाब तो इस सवाल का ढूंढना है। शाही जी का यह कहना भी गलत है कि इस मसले को अब उठाने में कोई निहितार्थ हैं। अगर आम लोगों को तसल्ली देना कोई निहितार्थ है, तो वह बेशक कभी भी हो सकता है। लेकिन मैंने अपनी मूल पोस्ट में लिखा था कि मणिपुर में इरोम शर्मिला तो दस साल से इस कानून के खिलाफ अनशन पर हैं। एएफएसपीए का विरोध तो काफी समय से हो रहा है, बस ज्यादती होती है तो गूंज ज्यादा सुनाई देने लगती है। इसी तरह अनुच्छेद 370 का इस्तेमाल भी सिर्फ राजनीतिक विरोध के लिए होता है। कश्मीर को विशेष अधिकार प्राप्त है तो उसका क्या नुकसान बाकी देश को हुआ, इसका किसी के पास कोई तर्क नहीं, इसके सिवाय कि अनुच्छेद 370 का फायदा उठाकर कश्मीर में आतंकी पनप रहे हैं। कश्मीर के भारत में विलय की स्थितियों व शर्तों की कोई बात नहीं होती। और फिर सबसे बड़ी बात तो यह है कि हम कश्मीर के लोगों को दिल से जोड़ने की बात कर रहे हैं या उनकी छाती पर पैर रखकर उन्हें रौंदने की।
श्रद्धेय उपेन्द्र जी इस पूरी बहस से निकल कर कुछ बातें सामने आती हैं । लेकिन उसके पहले मैं कुछ कहना चाहूंगा । सशस्त्र सेना विशेष अधिकार कानून उन्हीं क्षेत्रों में लगाये जाते हैं जहां हालात सामान्य नहीं होते या जहां आतंकवाद बुरी तरह हावी होता है । इस बात को तो आप भी मानेंगे । सशस्त्र सेना विशेष अधिकार कानून एक विशेष कानून है जिसमें सशस्त्र बलों को विशेष शक्ति दी जाती है जो कि वहां के हालातों को देखते हुये उचित होगा अन्यथा फिर आर्मी या पैरामिलेट्री फोर्स की वहां तैनाती बेमानी हो जायेगी । अब सेना या अर्धसेना का नजरिया दूसरा होता है और वह होना भी चाहिये क्योंकि जहां युद्ध जैसी स्थितियां होती हैं वहां पर गुप्तचरी भी बड़े पैमाने पर होती है । सुरक्षा में जरा सी चूक इंसानी जान माल को ले डूबती है । कुल मिलाकर हालात को देखते हुये कड़े कानूनों की जरूरत पड़ती है । भारत जैसे दुनिया के सर्वाधिक शांतिप्रिय देश में ऐसे कानून बनाने पड़ते हैं तो समझिये कि यह देश की अखण्डता, एकता और सम्प्रभुता के लिये नितांत जरूरी होता है । जहां पर कड़ाई होती है वहां मनावाधिकारों का उल्लंघन भी होता है यह कोई नई बात नहीं है । लेकिन उपेन्द्र जी सर्जन अगर यह देखेगा कि सर्जरी से खून निकलता है या गैंगरीन से वह छोटा सा अंग सड़ रहा है और अगर जल्द सर्जरी नहीं की गयी तो पूरे शरीर में जहर फैल जायेगा तो क्या वह कुछ मिली0 खून के लिये पूरे शरीर को दांव पर लगा दे । सशस्त्र सेना विशेष अधिकार कानून सर्जरी के प्रयोग में आने वाला नश्तर है । सर्जरी होगी तो कुछ खून बहेगा ही लेकिन फिर जहर पूरे शरीर में नहीं फैलेगा । अब देखिये नक्सलियों की सर्जरी अगर तीन दशक पहले ही हो गयी होती तो वह आज कैंसर का रूप धारण नहीं किये होते और न ही आज बेकसूर आदिवासी भी उनकी चपेट आये होते ।
अब चलिये कश्मीर की तरफ । मैंने ऊपर पहले ही कहा है कि कश्मरी का मतलब सिर्फ घाटी नहीं है बल्कि जम्मू और लद्दाख का इलाका भी है । कश्मीरियत की अगर बात होगी तो उसमें सिर्फ घाटी के मुसलमान ही नहीं जम्मू के हिंदू और सिख और लद्दाख के बौद्ध भी आयेंगे । सन 1948 के युद्ध के बाद और नेहरू के यूएनओ जाने के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर की आबादी में परिवर्तन के लिये क्या गुल खिलाए हैं ये किसी से नहीं छिपा है । कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है । कश्मीर का इतिहास सिर्फ 1947 से नहीं शुरू होता है । कल्हड़ की राजतरंगिनी उठा कर देखिये । कश्मीर का इतिहास उन्होंने कश्मीर में योगेश्वर श्री कृष्ण के आगमन से शुरू किया है ।
आज सिर्फ घाटी के चंद पाकिस्तान परस्त लोग ही अलगाववाद और स्वतंत्रता की बात करते हैं । जम्मू और लद्दाख बिल्कुल शांत है । फिर दो साल पहले तक तो कश्मीर शांत था । कश्मीर मे आम चुनाव हुये और 60 प्रतिशत वोटिंग हुयी थी । भारत सरकार ने इधर सेना भी हटा ली । कश्मीर पूरी तरह से शांत था । लेकिन उमर अब्दुला के अनुभवहीन होने का फायदा आज अलगाववादी और पाकिस्तान उठा रहा है । इसके अलावा भारत का मुंबई हमले के लिये पाकिस्तान पर दबाव बढाना और विकीलीक्स रिपोर्ट के तहत पाक सरकार और आर्मी के अलकायदा और अंतराष्ट्रीय आतंकवाद की खेती करने के खुलासे से पाकिस्तान बौखला गया और उसने घाटी में अपने भाड़े के टट्टूओं को बढ़ावा दे दिया ।
घाटी में अलगाववादी पाकिस्तान का झंडा फहरा रहे हैं । सशस्त्रबलों पर पत्थर फेंक रहे हैं । गोलियां चला रहे हैं । वह वे लोग नहीं है जिन्होंने अभी चुनाव में वोट दिये थे और शांति में विश्वास करते हैं । मैं जोर दे कर कहूंगा कि युद्ध के नियम दूसरे होते हैं और जब देश की अखण्डता की बात आयेगी तब मानवाधिकार ताक पर रख दिये जाते हैं । जिन्हें अलग देश चाहिये उनके लिये ही सशस्त्र सेना विशेष अधिकार कानून है । अब आप अब भी अलगाववादियों के मानवाधिकारों की इतनी ही पैरवी करेंगे तो यह मानने मे कोई संकोच नहीं होगा कि आप सर्जरी में बहने वाले खून को देख कर या तो डर गये हैं या फिर आप कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नहीं मानते । दुनिया का एक हजार साल का इतिहास उठा कर देख लीजिये किसी भी शक्शिाली राष्ट्र ने अपनी सम्प्रभुता और अखण्डता के लिये बहुत कुछ किया है, भारत तो बहुत ही दयालु देश है । सी आई ए, के जी बी, एम आई 6, मोसाद, आई एस आई ऐसे लोगों को कच्चा चबा जाती है । यह भारत है जहां इन खटमलों से मिलने के लिये नेता इनके घर चिरौरी करने जाते हैं जब कि इन खटमलों का शांति से कोई सरोकार नहीं है । और हो भी क्यों । ये पाकिस्तान के भाड़े के टट्टू हैं । अगर ये अलगाववादी किसी और देश में होते या इंदिरा जी ही होती तो अब तक इनके शरीर किसी कब्र में होते और रूहें कयामत का इंतजार कर रही होतीं ।
मैं जागरण जंक्शन के सभी ब्लागरों और पाठकों से यह अनुरोध करना चाहूंगा कि वे सभी मेरे साथ दृढ़ता से कहें कि ”कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हम कश्मीर को भारत से कभी अलग नहीं होने देंगे । मुट्ठीभर अलगाववादियों हम भारत के सवा अरब लोग तुम्हारे खिलाफ खड़े हैं ।“ जय हिंद ।
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