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जग बौराना : विधवा रोवे सेर सेर…….

सत्यमेव .....
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लेखक: श्री नरेश मिश्र

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कांग्रेस के चुनाव का एक माहौल जाना माना है । कांग्रेस जब चुनाव हारती है तो एक सिर का बलिदान मांगती है । गुजरात मे नगरमहापलिका से पंचायत चुनाव तक कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया । बलि का बकरा बनने के लिये सिद्धार्थ पटेल को आगे आना पड़ा । बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले । सिद्धार्थ पटेल ने हार की जिम्मेदारी सिर माथे लेते हुये इस्तिफा दे दिया । इस चुनाव में हारने के बाद पहले दौर में पटेल ने इवीएम मशीन पर आरोप लगाये थे । उन्होने कहा कि भाजपा ने इवीएम में गड़बड़ी कर दी है । पहली बार किसी कांग्रेसी के मुंह से यह सचाई सुन कर हमारी अक्ल शीर्षासन करने लगी । यही बात तो बहुत दिनों से विरोधीदल के लोग कह रहे थे । कांग्रेस इसे मानने को तैयार नहीं थी । केन्द्र की सत्ता पकार कांग्रेस सदा सुहागिन है, अब उसे इवीएम पर रूलाई क्यों आ रही है । अवधी की एक कहावत है –


विधवा रोवे सेर सेर । सुहागिन रोवे सवा सेर ।



कांग्रेस के दिन तब बहुरे जब मुख्य चुनाव आयुक्त जनाब नवीन चावला हुये और एकाएक बाजी पलटने लगी । अब उसी कांग्रेस को इवीएम पर शिकायत
क्यों हो रही है । यह बात देशवासियों को समझनी चाहिये ।


कांग्रेस का तरीका जानामाना है । हारने पर यह पार्टी किसी को बलि का बकरा बनाती है । जो नेता नाकामयाब होते हैं, पस्त होते हैं उन्हें कुछ दिन तक कूड़े, गोदाम में रहना होता है, बाद में वो राज्यपाल बना दिये जाते हैं । उनके लिये एक अच्छी कुर्सी की तलाश जारी रहती है और लोग भूल जाते हैं । शिवराज पाटिल को लोग भूले न होंगे । गृहमंत्री थे तो देश का बंटाधार कर दिया था । आज बड़ी शान से, मंछों पर ताव देकर कांग्रेस के मंच पर जलवा अफरोज हैं और उनका साज श्रंगार भी बदस्तूर जारी है ।


इन दिनों बिहार में विधान सभा चुनाव चल रहे हैं । राहुल गांधी दौरे पर हैं । कांग्रेस बहुत उत्साहित है । राहुल गांधी भाषण देने से पहले, भाषण देने के बाद आस्तीन चढ़ाते हैं । पता नहीं वो किसे चुनौती देते हैं । अभी शरद यादव ने उनकी नकल उतारी और जोश में कुछ ऐसी बाते कह गये जो नहीं कहनी चाहिये ।


यह बांह चढ़ाने की राजनीति समझ में नहीं आती । जनता समझती है कि उनके युवानेता हमलावर हो रहे हैं । समझ में नहीं आती कि ये कौन सी अदा है । हमने हिटलर की अदा के बारे में सुना था । जब वह मंच पर आता था तो एक खास स्टाईल का इस्तेमाल करता था । लेकिन राहुल गांधी भाषण देने के पहले, भाषण देने के बाद । किसी से मिलने के पहले, किसी से मिलने के बाद । खुश होने से पहले, खुश होने के बाद । काम पूरा होने के पहले, काम पूरा होने के बाद, वह बांह चढ़ान नहीं भूलते । इस बांह में क्या करिश्मा है, यह समझने की जरूरत है ।


वैसे कुल मिलाकर राहुल बाबा की कामयाबी अमेठी और रायबरेली तक ही महदूद है । आगे की राम जाने । तकदीर में होगा तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल ही जायेगा । कम से कम कांग्रेसी तो यही समझते हैं कि उनसे ज्यादा काबिल प्रधानमंत्री कोयी हो ही नहीं सकता,  ठीक वैसे ही जैसे जम्मु कश्मीर का मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से ज्यादा काबिल कोयी हो नहीं सकता । जवानी का जोश है, लहर बहर है । जवानी दीवानी होती है । क्या कर डाले । अल्लामियां को भी पता नहीं होती । कहावत भी है अल्ला मेहरबान तो …………………….।


हमें इस बात से कोयी फर्क नहीं पड़ता कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन जायेंगे । उनका स्वागत है । इस देश के करोड़ों जवान बेरोजगार हैं, सड़कों पर चप्पलें घिस रहे हैं । किसी एक जवान को (अगर42 वर्ष की उम्र में आप उसे जवान कह सकते हैं) मौका तो मिलेगा ।


उनके पिता स्व0 राजीव गांधी भी जवानी में प्रधानमंत्री बने थे और उन्होंने अपनी माता जी के दुखद निधन पर कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती कांपती है । धरती कांप गयी , सिखों का नरसंहार हो गया । इसके आलावा उन्होंने पंचायत चुनाव की शुरूआत की । ग्रासरूट लेवल तक उन्होंने लोकतंत्र को पहुंचा दिया । संसद में जो रिश्वतखोरी होती है, वह अब गांव में भी हो रही है । उसके साथ-साथ हत्याएं हो रही हैं, लाठियां चल रही हैं, अपहरण हो रहा है, लोग पीटे जा रहे हैं । बापू जी की आत्मा स्वर्ग से यह ग्रामस्वराज्य देख रही होगी । वो सोच रहे होंगे कि हमने क्या सोचा था और हमारे नाम पर 2 अक्टूबर को हमारी समाधि पर जाकर हुकूमत करने का लाईसेंस लेने वाले क्या कर रहे हैं । किसी महापुरूष के नाम का इससे ज्यादा बेजा इस्तेमाल इतिहास में देखने को नहीं मिलता है। कांग्रेस की करनी, चाल, चरित्र देख कर वही शेर याद आता है कि

शैख ने मस्जिद बना मिस्मार बुत खाना किया ।

पहले एक सूरत भी थी अब साफ वीराना किया ।

BigBusBusin


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