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धर्मनिरपेक्षता का असंवैधानिक पक्ष

सत्यमेव .....
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हिंदू धर्म और हिंदू के मूल में धर्मनिरपेक्षता हजारों साल रही है । यह एक ऐसा तत्व है जिसके बारे में किसी हिंदू को बताने की जरूरत नहीं है । हमारे मूल में वसुधैव कुटुबकंम… सभी प्राणियों में एक परमतत्व को देखने की भावना… सत्य के प्रति जबरदस्त आग्रह और सभी प्राणियों के कल्याण की भावना हमेशा से रही है । विश्व भर में मानवाधिकार पर बहस मैग्नाकार्टा 1215.. पीटिशन ऑफ राइट्स 1628… हैबियस कारपस एक्ट 1679…. बिल ऑफ राइट्स 1689… अमरीकी स्वतंत्रता की घोषणा 1776 से शुरू हुयी । लेकिन इसके विपरीत 5000 साल पहले से ही हमारे यहां –

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।

(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।)

की भावना काम कर रही थी । हम सभी प्राणियो के कल्याण की भावना रखते हैं । सभी प्राणियों में मानव भी आता है । मानवाधिकार और धर्मनिरपेक्षता इस महान विचारधारा का मात्र एक छोटा सा हिस्सा है ।

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जहां एक तरफ हम पूरी सृष्टि को एक निगाह से देखते हैं उसके विपरीतइस्लाम में मूर्तिपूजकों और स्त्रियों के प्रति एक नकारात्मक विचारधारा है । वह उन्हें मानवाधिकार.. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र जैसे मूलभूत सिद्धांतों को भी न मानने के लिये प्रेरित करता है ।

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यही कारण था कि संविधानसभा ने एक लंबी बहस के बाद मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द को जगह नहीं दी । हिंदू हजारों साल से धर्मनिरपेक्ष रहा है । धर्मनिरपेक्षता उसके खून में है । उसे धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाने की संविधानसभा ने कोयी जरूरत महसूस नहीं की । इसके विपरीत संविधान के मूलाधिकारों में धर्म की स्वतंत्रता को अनु0 25.. 26.. 27.. 28 में जगह दी गयी है ।

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धर्मनिरपेक्षता शब्द को संविधान में न रखने का एक और कारण था धर्म के नाम पर भारत का विभाजन । इतनी बड़ी त्रासदी अगर देश को झेलनी पड़ी तो उसके पीछे भी एक आक्रामक धर्म था । सन 46….47 के दंगों ने महात्मा गांधी समेत बहुत से राजनैतिक नेताओं की सोच बदल दी थी ।


मोहनदास करम चन्द्र गांधी –

मेरा अपना अनुभव है कि मुसलमान कूर और हिन्दू कायर होते हैं मोपला और नोआखली के दंगों में मुसलमानों द्वारा की गयी असंख्य हिन्दुओं की हिंसा को देखकर अहिंसा नीति से मेरा विचार बदल रहा है ।

गांधी जी की जीवनी.. धनंजय कौर पृष्ठ ४०२ व मुस्लिम राजनीति श्री पुरूषोत्तम योग

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मैं अब देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को यहां फिर अपनाया जा रहा है जिसके कारण देश का विभाजन हुआ था । मुसलमानों की पृथक बस्तियां बसाई जा रहीं हैं । मुस्लिम लीग के प्रवक्ताओं की वाणी में भरपूर विष है । मुसलमानों को अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए । मुसलमानों को अपनी मनचाही वस्तु पाकिस्तान मिल गया हैं वे ही पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं , क्योंकि मुसलमान देश के विभाजन के अगुआ थे न कि पाकिस्तान के वासी । जिन लोगों ने मजहब के नाम पर विशेष सुविधांए चाहिंए वे पाकिस्तान चले जाएं इसीलिए उसका निर्माण हुआ है । वे मुसलमान लोग पुनः फूट के बीज बोना चाहते हैं । हम नहीं चाहते कि देश का पुनः विभाजन हो ।


संविधान सभा में दिए गए भाषण का सार ।


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हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है । यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं । साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा । विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी । पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है । मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है । कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है । मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है । इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता । संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया । कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है । गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है । इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं । धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते । मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती । वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते ।


डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड १५१


उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ते वक्त याद रखिये की इनमें से एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हैं जिनका भारत की आजादी में योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है । दूसरे लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल हैं जिन्होंने भारत की 550 रियासतों को एक करके भारत देश को एक नया स्वरूप दिया और तीसरे संविधानसभा की प्रारूप समीति के अध्यक्ष डा0 भीमराव अंबेडकर हैं । इन तीनों महान नेताओं का योगदान भारतवर्ष के इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता है ।


तीनों महान नेताओं की उपरोक्तपंक्तियां इतना समझने के लिये काफी हैं कि क्यों संविधानसभा ने धर्मनिरपेक्षता को संविधान में जगह नहीं दी । वे जातने थे कि धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा जहरीला बीज है जो भविष्य में दुबारा भारत का विभाजन करा सकता है ।

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फिर धर्मनिरपेक्षता शब्द संविधान में कब आया । भारत में इमरेजेंसी का पीरियड । इंदिरागांधी की तानाशाही । संविधान का 42वां संशोधन । 42 वां संशोधन अब तक का सबसे बड़ा संशोधन रहा है । इसके द्वारा संविधान में व्यापक स्तर पर संशोधन किये गये । यह संशोधन तब किये गये जब समूचा विपक्ष जेल की सलाखों के पीछे था । संसद खाली पड़ी थी । 42 वां संशोधन एक फर्जी संविधान संशोधन था । इसी संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ”धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और राष्ट्र की अखंडता“ शब्द जोड़ा गया जनता पार्टी की सरकार ने 44 वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा 42 वें संविधान संशोधन द्वारा आपातकाल में इंदिरागांधी द्वारा किये गये तमाम फर्जी संशोधनों को निरस्त कर दिया । लेकिन वे संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गये ..धर्मनिरपेक्ष.. समाजवादी.. शब्द के दुरगामी प्रभाव का विश्लेषण नहीं कर पाये और ये शब्द बने रहने दिये गये ।

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केशवानंद भारती.. इंदिरागांधी बनाम राजनारायण.. मिनर्वा मिल आदि महत्वपूर्ण वादों ने संविधान के आधारभूत ढांचे को मान्यता दी । इस ढांचे में शामिल है –

1.    विधि का शासन

2.    समता का अधिकार एवं शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत

3.    संविधान की सर्वोच्चता

4.    परिसंघवाद

5.    धर्मनिरपेक्षता

6.    देश का प्रभुत्वसम्पन्न… लोकतांत्रिक ढांचा

7.    संसदीय प्रणाल की सरकार

8.    न्यायापालिका की स्वतंत्रता

9.    उच्चतम न्यायालय की अनु0 32,136,141 और 142 के अधीन शक्ति

10.   कतिपय मामलों मे मूलअधिकार

11.   संसद की संविधान संशोधन की सीमित शक्ति ।

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धर्मनिरपेक्षता को विभिन्न महत्वपूर्ण वादों में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के आधारभूत ढांचे का हिस्सा माना है । संविधान संशोधन अनु0 368 के तहत आधारभूत ढांचे में संशोधन की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है जिसके लिये संसद के प्रत्येक सदन के 2/3 सदस्यों का बहुमत और उसके बाद 50 प्रतिशत राज्यों की विधानमण्डल का समर्थन भी जरूरी है ।

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जनतापार्टी की सरकार धर्मनिरपेक्ष… समाजवादी… इन दो शब्दों के भारतीय राजनीति में दूरगामी प्रभाव का आकलन नहीं कर सकी और 44 वें संविधान संशोधन में इन शब्दों को हटाने के लिये उसने कोयी प्रयास नहीं किया ।

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जिस तरह से भारतीय समाज हजारों साल से धर्मनिरपेक्ष रहा है उसी तरह से वह समाजवादी रहा है । हमें विदेशी समाजवाद की जगह गांधी के समाजवाद को अपनाना चाहिये थे । धर्मनिरपेक्ष… समाजवादी.. यह दो शब्द अनु0 14 समता के मूलाधिकार का उल्लंघन करते हैं । इन दो शब्दों की वजह से भारतीय राजनीति में कुछ राजनैतिक पार्टियों को वीटो अधिकार प्राप्त हो जाता है । आप देखें कि भारत में पिछले दो दशक में हुये चुनावों में बहुत सी अलग अलग विचारधारा की पार्टियां अपनी असफलता को छिपने के लिये और जनता के मत से विपरीत जाकर मात्र धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर अपने सारे गुनाह छिपा लेती हैं और एक पार्टी के खिलाफ…जनता के मत के विपरीत जाकर सब एक हो कर खड़े जाते हैं । चाहे चुनाव में वे एक दूसरे के खिलाफ ही क्यों न खड़े हुये हों । यह साफ साफ जनता के मत के साथ बलात्कार है और लोकतंत्र के सिद्धांत का मजाक उड़ाना है ।

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इसी के साथ समाजवाद शब्द कुछ पार्टियों की बपौती बन गया है । समाजवादी पार्टी और बंगाल और केरल के कम्युनिस्टों ने इस शब्द का पेटेंट करा रखा है और चुनावों में वे इसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं जबकि  समाजवाद के वास्तविक अर्थ से ये पार्टियां कोसों दूर हैं ।

इस तरह हम देखते हैं कि इन दोनों शब्दों का भारतीय राजनीति में घोर दुरूपयोग किया जा रहा है जिससे कि राजनैतिक असमानता को अनैतिक और असंवैधानिक रूप से बढ़ावा मिल रहा है । यह दोनो हीशब्द अनु0 14 के तहत समता के मूलाधिकार का सरासर उल्लंघन करते हैं इसलिये इन्हें असंवैधानिक मानते हुये निरस्त कर देना चाहिये ।

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