जवानी में एक अंग्रेजी साइलेन्ट फिल्म देखी थी । उसके मुख्य पात्र दो ऐसे हास्य अभिनेता थे जिनकी लम्बी हैट, तलवारनुमा मूंछे और चपल आंखे देख कर हंसी का फौव्वारा छूट पड़ता था । दोनों बेहद बेवकूफ लेकिन खुद को हर धन्धे में माहिर मानते थे । दोनों ने घड़ीसाज की दुकान खोली।
एक ग्राहक अपनी टेबिल क्लाक लेकर उस दुकान में आया । दोनो ने हैट उतार कर, सिर झुका कर ग्राहक का स्वागत किया । उनकी दुकान पर बड़ी मुश्किल से पहला ग्राहक आया था । ग्राहक ने अपनी घड़ी दिखा कर इशारा किया – क्या इसकी मरम्मत हो सकती है ।
दोनों घड़ीसाजों ने इशारे से बताया – यकीनन इसकी मरम्मत हो सकती है । दोनों घड़ीसाज मिलकर टेबिलक्लाक खोलने लगे । उन्होंने एक-एक कर घड़ी के सारे पुर्जे खोल कर टेबिल पर फैला दिये । खोलने के दौरान घड़ी के कुछ पुर्जे टूट भी गये ।
ग्राहक बड़े गौर से घड़ीसाजों की महारत देख रहा था । दोनो घड़ीसाज एक एक पुर्जा उठाते, उसे गौर से देखते, अपना सिर खुजलाते और एक दूसरे से सलाह करते । ग्राहक बेचैनी से घड़ी की मरम्मत पूरी होने का इंतजार कर रहा था ।
आखिरकार दोनों घड़ीसाजों ने आपस में इशारेबाजी की । उन्होंने ग्राहक से उसका लम्बा हैट मांगा । ग्राहक ने अपना हैट उन्हें दे दिया । दोनों घड़ीसाजों ने घड़ी के अंजर पंजर हैट मे भर दिये । उन्होंने हर एक कील कांटा हैट में रख दिया । उन्होंने हैट ग्राहक को दिया और शालीनता से अपना हैट उतार कर ग्राहक को इशारा किया – इसकी मरम्मत नहीं हो सकती । इसे किसी दूसरे घड़ीसाज के पास ले जायें ।
कश्मीर का हाल बेहाल देखकर हमें दोनों अंग्रेज हास्य अभिनेताओं की याद आती है । फिर हमें उन दोनों की जगह कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेस की शक्ल दिखाई देती है । इन दोनों महान देशभक्त सेकुलर पार्टियों ने कश्मीर के पुर्जे पुर्जे अलग कर देश के सामने पेश कर दिया । देश वह ग्राहक है जो इन दोनों घड़ीसाजों को हैरत से निहार रहा है ।
अब कश्मीर का क्या करें । वह चीनी का खिलौना तो है नहीं कि कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस जैसे बच्चे उससे जब तक चाहें खेलें और जब चाहें खा लें ।
देश के पहले प्रधानमंत्री, पंचशील के प्रचारक, दुनिया के परदे पर महापुरूष की तरह अपनी पहचान बनाने के लिये उधार खाये बैठे पण्डित नेहरू ने पहले ही अपने समकालीन महान नेताओं को आगाह कर दिया था – खबरदार ! नेहरू के आड़े मत आना । मैं कश्मीरी, सारे कश्मीरी मेरे भाई-बन्धु ! कश्मीरियों के बीच कोई तीसरा नहीं आयेगा ।
ललकार सुनकर सरदार पटेल जैसा नेता खामोश रह गये । उन्हें नेहरू की आवाज में मुगले आजम शहंशाह अकबर के दरबार में तैनात नकीब की आवाज सुनायी दी – खबरदार, होशियार, जुम्बिश न कुन्द होशियारबाश (जुम्बिश मत करना, होशियार रहना) । शहंशाहे हिन्द, आलमपनाह, महाबली तख्त पर जलवा अफरोज हो रहे हैं ।
कश्मीर की फुंसी नेहरू जी की विरासत है जो अब कांग्रेसियों को जहरबाद की शक्ल में हासिल हुयी है । सरदार मनमोहन सिंह लाचार हैं । चिदंबरम बेजार हैं । कश्मीर पर पाकिस्तानी एजेंटों और दहशतमन्दों की हुकूमत बरकरार है । हिन्दुस्तानी फौज छावनी में हाथ मल रही है । अर्धसैनिक बलों के जवान पत्थर की चोट खा कर बिलबिला रहे हैं ।
सरकार ने कश्मीर के उफनते दूध में पानी डालने के लिये एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजा था । इसके मेम्बरों में कम्यूनिस्ट सीताराम येचुरी, गुरूदास दास गुप्त जैसे कम्युनिस्ट नेता शामिल थे । याद रहे, ये वही कम्युनिस्टहैं जिन्होंने देश के दो टुकड़े कर पाकिस्तान बनाने के लिये जमीन आसमान का कुलाबा मिला दिया था । अब कम्युनिस्ट बिल्लियां सत्तर चूहे खाकर हज करने का मंसूबा बना रही हैं । कम्युनिस्ट नेताओं ने पासवान के साथ मिलकर अलगाववादी हुर्रियत लीडरों के घर जाने का फैसला किया । वे भारत सरकार के नुमाइन्दे थे । किसी को यह मानने में हिचक नहीं होनी चाहिये कि भारत सरकार अलगाववादियों के सामने सिर झुकाने उनके घर गयी । दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र देशद्रोहियों के सामने सिर झुका रहा था और किसी को शर्म नहीं आयी । मीडिया माहिरों ने बेहद बेशर्मी से मुल्क को बताया कि लोकतंत्र में बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रहता है । बात करने में क्या हर्ज है । गांठ से कुछ जाता नहीं ।
समय बिताने के लिये हमारे बचपन में बच्चे हरि का नाम लेकर अनत्याक्षरी खेलते थे । पोलिटिकल बच्चे भी अनत्याक्षरी खेलते हैं तो कौन सा गुनाह करते हैं । कश्मीर के हालात जस के तस बने रहेंगे । सरकार स्कूल खोलेगी, हुर्रियत सिविल र्कयू लागू करेगा । सरकार कश्मीर पर पानी की तरह पैसे बहायेगी । अलगाववादी एक हाथ से पैसे लेगें और दूसरे हाथ से पत्थर फैंकेगें । सेकुलर को मुस्लिम वोटबैंक आसानी से हासिल नहीं होता । उसके लिये देश को दांव पर लगाना पड़ता है ।
सीताराम येचुरी ने फरमाया कश्मीर में एक खिड़की तो खुली । जनाब खिड़की तो यकीनन खुली । अब देखना है कि उसमें से पत्थर बरसते हैं या आग के शोले ।
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