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भगवान कृष्ण से भी क्या कुछ नहीं सीखते भाजपा नेता

मुक्त विचार
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इंडियन एक्सप्रेस अखबार की अपनी एक साख है, हालांकि आज जमाना रामनाथ गोयनका का नहीं रह गया। गोयनका और उनके समकालीन ज्यादातर अखबार मालिक इसलिए अपने प्रकाशन नहीं चलाते थे कि उन्हें इनके जरिये कोई मुनाफा कमाना हो या अपने प्रकाशन को वे अपने बिजनेस को बढ़ाने का टूल समझते हों लेकिन आज मीडिया की उस समय जैसी इयत्ता नहीं रह गई। आज मीडिया समर्थ संपन्न लोगों के स्वार्थ साधन का एक औजार है। इंडियन एक्सप्रेस समूह भी मीडिया के इस बदले चरित्र का अपवाद नहीं है। मीडिया के बारे में आज धारणा यह है कि सरकार और कोई बड़ा कारपोरेट हाउस प्रलोभन देकर अपने तरीके से उसका इस्तेमाल कर सकता है। फिर भी इंडियन एक्सप्रेस घराने के मन में अपनी साख को बचाए रखने का मोह जरूर होगा, इसलिए यह माना जा सकता है कि जमाने की हवा के मुताबिक उसके विचलन की एक सीमा है। यह हाउस रिलायंस पैटर्न का कारपोरेट नहीं है, जो मुनाफे के लिए बेशर्मी में किसी भी हद तक चला जाए। इंडियन एक्सप्रेस ने भारत सरकार के सर्जिकल स्ट्राइक के दावे को पुष्ट करते हुए एलओसी के पार के लोगों से स्टिंग आपरेशन के तहत अनजाने में यह उगलवाने में सफलता प्राप्त की है कि वास्तव में भारतीय सेना के विशेष पैराकमांडो ग्रुप ने उस दिन उनके इलाके में विशेष आपरेशन किया था, जिसके तहत मारे गये लोगों के शव अगले दिन पाकिस्तानी आर्मी ने टकों में भरवाकर अज्ञात जगह दफन के लिए भेजा था। इससे यह जाहिर हो गया है कि भारत सरकार का कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करने का दावा काफी हद तक सही है।

लेकिन इसके पहले पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को उस क्षेत्र में ले जाकर यह संदेह पैदा कर दिया था कि भारत सरकार देश में अपनी इज्जत बचाने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर में आकर सर्जिकल स्ट्राइक करने का झूठा दावा कर रही है। हालत यह हो गई थी कि बीबीसी सहित अंतर्राष्ट्रीय जगत के प्रमुख मीडिया संस्थानों का सुर पाकिस्तान के इस पैंतरे की वजह से बदल गया था। भारत सरकार के सर्जिकल स्ट्राइक के दावे के तत्काल बाद बीबीसी और न्यूयाकॆ टाइम्स ने जो खबर दी थी उसका इंटरो यह था कि गत रात भारतीय सेना ने पीओके में घुसकर आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों पर कारॆवाई की, जिसमें कई आतंकवादी ढेर हुए हैं। लब्बोलुआब यह था कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भारत सरकार के दावे को विश्वसनीय मानते हुए अपनी तरफ से इस कार्रवाई के होने का जिक्र करने में हिचक महसूस नहीं कर रही थी, लेकिन पाकिस्तान के काउंटर के बाद बीबीसी और न्यूयाकॆ टाइम्स यह कहने लगे थे कि भारतीय सेना द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के दावे के बारे में अमुक-अमुक यह बात कह रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया यह जता रहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक आपरेशन हुआ है कि नहीं, यह बात उसके लिए दमदारी से कहना संभव नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की धारणा को संदिग्ध करने में संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव के एक बयान ने भी बड़ी भूमिका अदा की थी। इस घटाटोप के चलते भारतीय जनता का एक बड़ा वर्ग भी शंकालु हो उठा था, जो नितांत स्वाभाविक था। इस परिवेश में अरविंद केजरीवाल हों या पी. चिदंबरम, अगर उन्होंने भारत सरकार को सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सुबूत पेश करके शतरू देश के नकार को बेसिर पैर का साबित करने का मशवरा दिया तो इसमें अन्यथा क्या था, लेकिन जिस तरह से इस मामले में द्वंद छिड़ा उससे यह साबित हो गया कि बहाना कुछ भी हो, भाजपा में एक वर्ग सरकार पर टीका-टिप्पणी को देशद्रोह की कोटि में शामिल कराने पर तुला है। यह कांग्रेस के इंदिरा युग की याद दिलाने वाला प्रसंग है, जब कहा गया था कि इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा।

इंतहा तब हो गई जब इस राजनीतिक लड़ाई में भाजपा के लोगों ने सेना को मोहरा बनाने की कोशिश की। रविशंकर प्रसाद ने पूछा कि क्या केजरीवाल और कांग्रेस के नेताओं को भारतीय सेना पर विश्वास नहीं है। उनके क्रांतिकारी बयान में ध्वनि यह थी कि भारतीय सेना एक ऐसी पवित्र सेना है जो कभी भी झूठ नहीं बोल सकती। रविशंकर प्रसाद भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं तो उनसे उम्मीद की जाती है कि उन्होंने महाभारत को बहुत अच्छी तरह से पढ़ा होगा। यह युद्ध एक तरह से साम्राज्यवाद के उदय के बाद हुआ पहला विश्व युद्ध जैसा था, जिसके वास्तविक नायक भगवान श्रीकृष्ण थे। चाहे कर्ण के वध का प्रसंग हो या दुर्योधन के वध का, बार-बार उन्हें पांडवों को यह बताना पड़ा कि आदिम युग की लड़ाइयों से युद्ध एक अलग चीज है। आदिम युग में लड़ाइयां व्यक्तिगत होती थीं जिसमें कबीला यह तय करता था कि शूरवीर कुछ मान्यताओं और बंदिशों की सीमा में रहते हुए अपने पराक्रम को एक-दूसरे पर आजमाएं और जो जीतेगा कबीला उसके इच्छित निणॆय को मान्यता देगा, लेकिन महाभारत में कृष्ण ने पांडवों को बताया कि आपने जब युद्ध लड़ने का फैसला अंतिम विकल्प के तौर पर किया तब आप अंतरात्मा में यह स्पष्ट थे कि आपका उद्देश्य सही है, आप अपने जायज अधिकार के लिए संघर्ष को मजबूर हुए हैं, लेकिन जब युद्ध छिड़ गया तो आपको इसे जीतने का लक्ष्य ध्यान में रखना होगा। कोई बंदिश नहीं माननी, जीतने के लिए छल, बल जो जरूरी हो सभी जायज है। तबसे आज तक किसी भी युद्ध में यही मान्यता महत्व रखती है। पाकिस्तान के साथ भारत की लड़ाई में यह बात स्वयंसिद्ध है कि भारत अपनी जगह सही है। भारत सरकार ने कभी आतंकवादी शिविर नहीं चलाए, भारत सरकार ने पाकिस्तान हो या कोई और देश वहां के बेगुनाह नागरिकों को मारने के लिए अपने आदमी नहीं भेजे और भारत में शत्रु देश द्वारा लगातार ऐसा किया जा रहा है, जिसके बाद भारत के लिए जरूरी है कि उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। यह जवाब छल-बल कैसे भी हो, कारगर तरीके से दिया जाना जरूरी है। इसलिए भारतीय सेना को आप सत्यवादी हरिश्चंद्र के खूंटे में क्यों बांधना चाहते हैं? फिर शत्रु खेमे को पस्त करने के लिए जरूरी हो तो झूठ भी बोला जाएगा, यह तो संसार भर की युद्ध रणनीति का अंग है। बंगलादेश की लड़ाई के बारे में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारतीय चैनलों ने जो स्टोरी प्रसारित की उनमें जनरल मानिक शा जैसे भारतीय सेना के अभूतपूर्व सेनापति यह बताते हुए दिखे कि किस तरह उन्होंने उस लड़ाई के समय शतरु सेना में भ्रम पैदा करने के लिए झूठे प्रचार का भी सहारा लिया था इसलिए भारतीय सेना ने अगर झूठ भी बोला होता तो भी कुछ अन्यथा नहीं था। भविष्य में भी अगर शत्रु को सटीक जवाब देने के लिए झूठ जरूरी होगा तो भारतीय सेना बोलेगी, इसमें हिचक की बात क्या है?

दूसरे इस मामले में छिड़े द्वंद्व में भाजपा के नेता यह साबित करने में पीछे नहीं रहे हैं कि भारतीय सेना कोई स्वतंत्र निकाय है जबकि हकीकत यह है कि भारतीय सेना देश के राजनैतिक प्रतिष्ठान के मातहत रहकर काम करती है और शासन के दूसरे अवयवों की तरह इस निकाय को भी सरकार में बैठे राजनैतिक प्रतिष्ठान के मुताबिक संचालित होना पड़ता है, इसलिए अगर रक्षा संबंधी किसी मामले में सरकार को विपक्ष निशाना बनाए तो सरकार को कोई अधिकार नहीं है कि वह इसे सेना की तौहीन का मुद्दा बनाकर सेना की भावनाएं भड़काने का काम करे। भारतीय सेना के बारे में यह इंप्रेशन देना भी गलत है कि उसका आम भारतीय संस्कारों से ऊपर उठकर कोई वजूद हो सकता है। भारतीय समाज की सहिष्णु, उदार तासीर का भारतीय सेना में भी प्रतिबंब दिखाई पड़ता है इसलिए इस मामले में सेना का अतिरिक्त महिमामंडन क्षुद्र स्वाथॆों के लिए दूरगामी तौर पर अहितकर परंपरा की नींव डालना साबित हो सकता है। भारत में युद्ध के मामले में भी लोगों के संस्कार तथागत बुद्ध जैसे महापुरुषों ने ढाले हैं, जिन्होंने आज से ढाई हजार से भी ज्यादा वषॆ पहले कहा था कि युद्धबंदियों के भी अपने मानवीय अधिकार होने चाहिए जबकि आधुनिक विश्व इसकी कल्पना पिछली शताब्दी में पहुंचकर कर पाया था। इसके अलावा जो एक महत्वपूर्ण बात है वह एशिया महाद्वीप के दूसरे अन्य देशों की तुलना में भारत में लोकतंत्र के स्थायित्व से जुड़ी है जबकि भारत में इस व्यवस्था की सफलता को लेकर विश्व बिरादरी ने शुरुआत में तमाम तरह की शंकाएं प्रकट की थीं। यह शंकाएं चरितार्थ न हुईं तो उसकी मूल वजह है लोकतंत्र के मामले में भारतीय राजनैतिक प्रतिष्ठान की परिपक्वता, जिसे उसके खुलेपन से आंका जाता है और जो तमाम तरह के विचारों के प्रकटन से अभिव्यक्त होता है। भारत में लोकतंत्र को पश्चिम की देन कहा जाता है लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। पश्चिम से आधुनिक लोकतंत्र की तकनीक को भले ही भारत ने अपनाया हो लेकिन लोकतांत्रिक व्यवहार यहां के समाज में पश्चिमी लोकतंत्र की शुरुआत के कई दशकों पहले से है। जैसे कि ईश्वर और धार्मिक कथाओं को लेकर मत-मतांतर जिसमें मुख्य धारा के धार्मिक प्रतीकों की अवहेलना के स्वर फूटे तो भी भारतीय समाज ने प्रतिक्रियावादी रुख नहीं दिखाया बल्कि लीक से अलग हटकर मतों को भी अपने में समाहित करने की गुंजाइश बनाई। भारतीय समाज मूल रूप से कट्टरता से एकदम अलग है और लोकतांत्रिक व्यवहार में अपने इस सहज आचरण की वजह से ही उसने विश्व बिरादरी के सामने नया और शानदार नमूना पेश किया है। इसे उलटने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए और जो लोग यह कोशिश करेंगे वे लोग इस समाज को तो नहीं उलट पाएंगे लेकिन खुद जरूर उलट जाएंगे।

अब बात इसकी कि सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत विश्व बिरादरी के सामने रखने की मांग की तुक क्या थी, इसके लिए उस पृष्ठभूमि में जाना होगा जब चाहे कांग्रेस की सरकार हो या राजग की, पाकिस्तान की पानी सिर से ऊपर कर देने की बारम्बार हरकतों के बावजूद उसे ऐसा जवाब देना संभव नहीं हो पा रहा था जिसकी मांग भारतीय जनमानस को थी। भाजपा की सरकार की ही बात लें तो कांधार विमान अपहरण का मौका हो संसद के भीतर आतंकवादी हमले का या कारगिल पर कब्जे का, भारत ने केवल अपने ऊपर हुए आक्रमणों को विफल भर किया था लेकिन जवाबी आक्रमण करना उसके लिए संभव नहीं हो पाया था इसलिए देश के आम आदमी के मन में यह बात घर कर चुकी थी कि भारत एलओसी या पाकिस्तान की सीमा को पार करके उसे सबक सिखाने का काम कर ही नहीं सकता। भले ही भारतीय सेना इसके लिए पीछे न हटे लेकिन उसके द्वारा किसी आपरेशन को अंजाम देना तभी तो संभव है जब राजनीतिक प्रतिष्ठान उसे हुक्म देगा। अब जब यह हो गया तो यह उसके लिए अकल्पनीय रहा इसलिए शक की एक भी उंगली उठने पर उसके मन में इस पर विश्वास हिल जाना लाजिमी है। इस विश्वास को पुख्ता करने के लिए सबूत का आग्रह करने में किसी तरह के दुराशय को तलाशने का कोई औचित्य नहीं था। यह भी एक लंगड़ा बहाना था कि अगर हम सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो जारी कर देंगे तो शत्रु सेना को उसका फायदा मिलेगा। कोई यह मांग नहीं कर रहा था कि आप पूरा वीडियो पेश करें, इतना ही पर्याप्त था कि एक झलक में ऐसा वीडियो आ जाए जो भारतीय सेना को एलओसी के पार कारॆवाई करते हुए दर्शा दे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोटॆ और कुछ अन्य स्वतंत्र स्रोतों से अब जब इसकी तसदीक हो गई तो सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि भारतीय जनमानस में इस मामले में छाई धुंध छंट गई है जो देश का मनोबल ऊंचा करने का एक बड़ा कारण साबित हो रहा है।

दूसरे यह कि पाकिस्तान बात-बात में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी देता था। भारतीय जनमानस के लिए यह भी जिग्यासा का विषय था कि इस धमकी की परख की जाए। अगर सर्जिकल आपरेशन का दावा केवल पाकिस्तान को परेशान करने के लिए किया गया होता तो भी कुछ गलत नहीं था और देश के लोग बाहर की दुनियां के सामने तो इसे बल प्रदान करते ही रहते लेकिन उनके मन में यह बना रहता कि पाकिस्तान के परमाणु हमले की आशंका से हमें कब तक उसके आतंकी अत्याचार को सहना पड़ेगा। लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मिल जाने के बाद भारत सरकार और भारतीय जनता दोनों ही इस बात से आश्वस्त हो गए हैं कि पाकिस्तान में परमाणु हमले की धमकी को चरिताथॆ करने की बहुत ज्यादा कुब्बत नहीं है। इसीलिए भारतीय जनता अब काफी आश्वस्त है और इससे सरकार को भी पाकिस्तान में आतंकवाद की भारत विरोधी जड़ के सफाये के लिए आगे बढ़ने की ताकत मिलेगी।

वैसे अरुण शौरी से लेकर कांग्रेस के नेताओं तक ने यह दावे भी किए हैं कि मनमोहन सरकार में भी सर्जिकल आपरेशन किए गए थे लेकिन उनका खुलासा नहीं किया गया था। हो सकता है कि ऐसा अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के समय भी हुआ हो, लेकिन उन्होंने भी इसका खुलासा करने से अपने को रोक रखा हो। वजह उस समय अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की परिस्थितियां थीं। भारत आज की तरह अमेरिका के नजदीक नहीं आया था इसलिए खुलासा होने पर संभव था कि एलओसी के उल्लंघन को भी अमेरिका इतना तूल दे देता कि भारत के लिए मुश्किल हो जाती, लेकिन चीन और पाकिस्तान की दुरभिसंधि से बुरी तरह तिरस्त होने के बाद मोदी युग में भारत ने अमेरिकी खेमे में पूरी तरह शामिल होने को लेकर अपनी दुविधा को त्याग डाला और तात्कालिक रूप से उसे इसका फायदा भी मिल गया। अमेरिका का जो चरित्र है उसे देखते हुए भारत की अपने पर ज्यादा निभॆरता का वह दुरुपयोग नहीं करेगा, ऐसा कभी नहीं सोचा जा सकता लेकिन फिलहाल तो भारत के लिए अपने वजूद को बचाने की चिंता मुख्य है। पाकिस्तान को निर्णायक शिकस्त देने के बाद भारत का राजनीतिक नेतृत्व अपने हित की सुरक्षा करते हुए अमेरिका से रिश्ता निभाने की सोचेगा। यह विश्वास किया जाना चाहिए।

इस पूरे द्वंद्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्टीय नेतृत्व संभालने के बाद उनमें पैदा हुई गजब की परिपक्वता की एक और नजीर सामने आई है। उन्होंने अपनी सरकार और पार्टी के नेताओं द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक की हुई कार्रवाई को लेकर प्रतिद्वंद्वी दलों के नेताओं से जुबानी अखाड़ेबाजी को हतोत्साहित करते हुए उन्हें निर्देश दिए हैं कि उनमें से कोई भी इस कार्रवाई पर बयान नहीं देगा, यह बहुत अच्छी बात है क्योंकि यह दल का नहीं देश का मामला है। सर्जिकल स्ट्राइक आपरेशन भारतीय जनता पार्टी ने नहीं भारत सरकार ने किया है जिसमें सभी दलों की सहमति और समथॆन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने फरमान से इस संदेश को देने की कोशिश सरकार के सहयोगियों को की है। जिसका सुफल सामने आएगा। जहां तक चैनलों की बात है वे अपने व्यापार के लिए स्क्रीन पर नेताओं का बटेर युद्ध कराने के लिए मजबूर हैं। फिर भले ही इससे देश और समाज का नुकसान हो या फायदा।

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