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उत्तरप्रदेश में सपा और बसपा ने अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के लिये अपनी बिसात बिछा दी है। दूसरी ओर भाजपा अभी तक चुनाव तैयारियों को लेकर अन्यमनस्क बनी हुई थी। ज्यादा देरी करने पर निर्णायक रूप से मैदान से बाहर होने का खतरा भांपते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक मोर्चा संभालने की मुद्रा में आ गये हैं। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की उत्तरप्रदेश में हालिया सक्रियता का प्रयोजन स्पष्ट होने के बाद भाजपा में तेजी देखी जा रही है। इस बीच प्रधानमंत्री ने केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से उत्तरप्रदेश के मद्देनजर मंत्रिमण्डल के पुनर्गठन के बारे में बात की है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं उत्तरप्रदेश से सांसद हैं। जिसकी वजह से यहां पंचायत चुनाव तक के नतीजे उनके ग्राफ से जुड़ जाते हैं। नरेन्द्र मोदी को भी यह आभास है और वे इसको भी जानते हैं कि इसका असर पूरे देश में उनकी लोकप्रियता पर होता है। वैसे भी गत वर्ष से ही राज्यों में हो रहे उपचुनावों और स्थानीय चुनावों में लगातार उल्टी बयार बह रही है। मणिपुर विधानसभा चुनाव के परिणाम भाजपा विरोधी लहर चलने की धारणा को और बल प्रदान करेंगे। चूंकि उत्तरप्रदेश का आज भी राष्ट्रीय राजनीति की धुरी के रूप में स्थान है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को सहयोगी दलों के साथ इस राज्य में 73 सीटें मिलीं जो केन्द्र में उसकी निद्र्वन्द्व सरकार के गठन में सबसे अहम कारक रहा लेकिन इस उपलब्धि ने पार्टी के लिये एक चुनौती भी खड़ी कर दी है। इस वजह से भी उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव में अपना करिश्मा एक बार फिर दिखाने का बहुत ज्यादा जोर मोदी पर पड़ रहा है।
बिहार में निराशाजनक स्थिति का सामना करने के पीछे विश्लेषकों ने एक कारण मोदी द्वारा राज्य स्तर पर कोई मजबूत चेहरा पेश न होने देने को भी आंका था। इससे सबक लेकर उत्तरप्रदेश में मोदी मुख्यमंत्री पद के लिये किसी सशक्त चेहरे को सामने रखकर पार्टी की बिसात बिछाने का मन बना चुके हैं। चूंकि उत्तरप्रदेश में मतदाताओं का एक वर्ग सपा की अराजक शैली के शासन से खिन्न होकर मायावती की ओर सिर्फ इसलिये झुकाव दिखा रहा है कि वे भी भले ही स्याह सफेद करती हों लेकिन व्यवस्था को पटरी से नीचे नहीं उतरने देतीं। गुणात्मक शासन मतदाताओं की प्रमुख वरीयता में है। इसके मद्देनजर मायावती की काट के लिये राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को फिर प्रदेश की कमान सौंपने के विकल्प पर विचार हुआ। चूंकि कल्याण सिंह का पहला शासन विधि व्यवस्था के मामले में काफी उत्तम माना जाता है। अपना जन्मदिन मनाने लखनऊ आये कल्याण सिंह ने भी अपने को लेकर चल रही अटकलों के प्रति लालसापूर्ण उत्सुकता प्रकट करने से परहेज नहीं किया लेकिन उम्र के प्रश्न पर भाजपा और संघ अपने फैसले में काफी आगे निकल चुका है। जिसकी वजह से कल्याण सिंह को सक्रिय राजनीति में फिर बड़ी भूमिका सौंपने पर गम्भीर अन्तद्र्वद सिर उठा सकते हैं। इसीलिये मोदी ने ताजगी भरे विकल्प के बतौर स्मृति ईरानी की ओर रुख कर दिया। जिनके सहारे वे कई मतलब साधने की सोच रहे हैं। स्मृति ईरानी अखिलेश के युवा चेहरे का जवाब होंगी तो मायावती के स्त्री चेहरे का भी। इन दोनों वर्गों की चुनावी हारजीत में बड़ी भूमिका रहने वाली है। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राहुल गांधी के पैने शब्दबाणों से भी काफी आहत हैं। जो उन्हें निजी तौर पर निशाना बनाकर छोड़े जा रहे हैं। जीएसटी बिल पारित कराने सहित सरकार के संचालन में आ रही तमाम बाधाओं के निदान के लिये उन्होंने सोनिया गांधी को चाय पर बुलाकर उनसे सौहार्दपूर्ण व्यक्तिगत रिश्ता बनाने की पहल की थी जिस पर सोनिया गांधी ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दर्शायी थी लेकिन राहुल गांधी न केवल ढीले पडऩे को तैयार नहीं हुए बल्कि इसके बाद मोदी पर आक्रमण की धार को उन्होंने और पैना कर दिया। ऐसे में अमेठी के किले को ध्वस्त कर उन्हें सबक सिखाने की व्यूह रचना मोदी ने कर डाली है। स्मृति ईरानी की अमेठी के लोगों में बढ़ती पैठ उनके इरादे की कामयाबी का सूचक बन रही है। जिससे स्मृति को और कद्दावर बनाना उनकी रणनीति का अपरिहार्य तकाजा हो गया है। प्रियंका का ग्लैमर राहुल के लिये अमेठी में ब्रह्म्ïाास्त्र बनता रहा है लेकिन स्मृति से इसकी भी काट हो जायेगी मोदी को यह भरोसा है।
मोदी के मंत्रिमण्डल में उत्तरप्रदेश से अभी राजनाथ सिंह सहित 13 मंत्री हैं। इनमें मुख्तार अब्बास नकवी और संतोष गंगवार का प्रमोशन पार्टी के तमाम लोगों की शिकायतें दूर करने के लिये उन्हें करना है। वहीं योगी आदित्यनाथ जैसे फायरब्रांड नेता को भी वे हिन्दुत्व के आधार पर ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को बल देने के लिये मजबूती देना चाहते हैं। भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष कौन हो यह भी जटिल मंथन का एक मुद्दा है। जिसमें मोदी तय कर चुके हैं कि सवर्ण नेता की बजाय यह कार्यभार दलित या पिछड़े वर्ग में से किसी नेता को सौंपेंगे। दलितों में बारी आती है तो केन्द्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया सर्वोपरि हैं जिनके तेवर लड़ाकू हैं। साथ ही बाबा साहब अम्बेडकर को दलितों की जाति विशेष के पेटेन्ट की छवि से निकालने के लिये उनके द्वारा की जा रही जद्दोजहद की दृष्टि से भी रामशंकर कठेरिया के नाम को बहुत मुफीद माना जा रहा है। दूसरी ओर पिछड़े वर्ग में लोध बिरादरी के धर्म सिंह पर पार्टी नेतृत्व की निगाह है। चूंकि लोध कल्याण सिंह के कारण पहले से ही भाजपा के टेस्टेड वोटर हैं।
सांगठनिक ताने बाने में मोदी की नजर इस बात पर भी पड़ चुकी है कि उत्तरप्रदेश में पार्टी का बेड़ा गर्क सेटरों और लाइजनरों को महत्वपूर्ण बनाये जाने से हुआ है जो दूसरी पार्टियों के नेताओं के एजेन्ट के तौर पर काम करते रहे हैं। उन्होंने बाहरियों के हित के लिये कमजोर लोगों को टिकट दिलाकर चुनावों में पार्टी की फजीहत करायी। निजी सम्बन्ध निभाने के लिये प्रतिद्वंद्वी पार्टी के नेताओं की कमजोरियों पर इनकी वजह से सीधा हमला संभव नहीं हुआ। जिससे पार्टी की धार कुंद होती गई। मोदी और अमित शाह अन्दरखाने में दो टूक यह कह रहे हैं कि जब तक पार्टी में ऐसे लोग आगे नहीं होंगे जो प्रतिद्वंद्वी दलों के खिलाफ बेरहमी की हद तक कटिबद्धता दिखायें तब तक भाजपा जिस गर्त में समा चुकी है उससे उबर नहीं सकती।
मोदी अचानक एक के बाद एक ट्रंप कार्ड फेेंकने पर आमादा हैं। जिससे सपा और बसपा में फिलहाल सिमटी विधानसभा चुनाव की लड़ाई में तीसरा कौन पैदा हो सकता है। अगर उनकी युक्तियां भाजपा को चुनावी लिहाज से प्रदेश में जानदार बनाने में सफल रहीं तो सपा और बसपा दोनों के समीकरण बिगड़ेंगे जो अभी तक यह समझ रहे हैं कि भाजपा अपने लिये गुंजाइश न देखकर उन्हें वाकओवर देने के लिये मजबूर हो चुकी है।
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