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पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले से भारत सरकार स्तब्ध है। इससे मोदी सरकार की तथाकथित कूटनीतिक महारत की धज्जियां उड़ गयी हैं। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी लापरवाही मानने से इंकार नहीं कर पा रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान की सरप्राइज विजिट करने का फैसला लिया था। तो यह निश्चित रूप से साहसिक कदम था। उनके समकक्ष नवाज शरीफ और पाकिस्तान का मीडिया व पड़ोसी देश के अन्य लोकतंत्रवादी इस कदम से बेहद अभिभूत हुए थे लेकिन उसी समय यह तय था कि पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान दोनों देशों के बीच मोदी के इस कदम से पैदा हुए सद्भाव को पचा नहीं पायेगा और इसलिये सैनिक प्रतिष्ठान के विघ्न संतोषी तत्व कोई न कोई ऐसी हरकत जरूर करायेंगे जो दोनों देशों के आपसी विश्वास को फिर चूर-चूर कर दे। इस आशंका को पहले से ही भांपने और दुष्टों के संभावित टारगेट को लेकर सतर्कता बरतने की कोशिश की जानी चाहिये थी जिसमें भारी चूक हुई। भारतीय नेतृत्व शायद पाकिस्तान यात्रा के कारण मिली शाबासी से खुशी में चूर होकर आगा पीछा सोचना खो बैठा और इसका नतीजा उसकी भारी किरकिरी का कारण साबित हुआ।
दरअसल पाकिस्तान में सेना को जो फंडिंग होती है उसमें भारी भ्रष्टाचार के कारण सैनिक अफसरों की बल्ले-बल्ले रहती है जिसका उन्हें चस्का लग चुका है और वे इसे छोडऩा नहीं चाहते। अगर भारत के साथ पाकिस्तान के रिश्ते सुधर जायेंगे तो विकास और गरीबी दूर करने के लिये अमेरिका से मिलने वाली सहायता तक का सेना के लिये होने वाला इस्तेमाल ही नहीं नियमित बजट तक में पाकिस्तानी सेना को कटौती झेलनी पड़ सकती है। पाकिस्तानी सेना को यह किसी भी कीमत पर गवारा नहीं हो सकता।
इस बीच पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को फोन करके पठानकोट की आतंकवादी घटना के लिये संवेदना प्रकट की है। साथ ही भारत से मिले सबूतों के आधार पर अपने यहां के लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भरोसा उन्हें दिलाया है लेकिन दूसरी ओर यह भी खबर है कि पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख इस तरह की कार्रवाई के लिये बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान का यह अंदरूनी विरोधाभास भारत के लिये चिंता और गुस्से का कारण बना हुआ है।
दरअसल पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की गुत्थी इतनी जटिल है कि उसका किसी नाटकीय फुर्ती से समाधान नहीं हो सकता जिसकी खामख्याली भाजपा के सत्ता में आने के पहले उसके अपने लोग पाले हुए थे। पाकिस्तान में भी समझदार लोग आतंकवाद की समाप्ति चाहते हैं लेकिन पड़ोसी देश के अंदर भी इस तरह की घटनाओं पर फिलहाल विराम लगना संभव नहीं हो रहा। उधर आक्रामक कार्रवाइयों से आतंकवाद पर नकेल डालने के उत्साह में मुसीबत में फंस चुके अमेरिका सहित सारे पश्चिमी विश्व को भी इस मामले में छटपटाहट झेलनी पड़ रही है। इसी कारण वैचारिक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ माहौल बनाने और विश्व जनमत तैयार करने की पहल हुई है। जिसमें मुसलमानों के भी प्रबुद्ध वर्ग का समर्थन हासिल हो रहा है। आतंकवाद निश्चित रूप से एक दिन पराजित होगा। यह विश्वास रखा जाना चाहिये। इतिहास में जब आतंकवाद नहीं था तब भी नरसंहारों का दौर चलता रहा था। इस तरह की चुनौतियों का सामना करना मानवीय समाज की नियति है। इसलिये भारत की धैर्य के साथ आतंकवाद जैसी जटिल समस्या से निपटने की सर्वकालीन नीति एकदम उपयुक्त है और अपनी इस नीति से ही एक दिन उसे वर्तमान दुरूह स्थितियों को खत्म करने में सफलता मिलेगी।
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