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कड़े कदम का वार करने से क्यों कतरा रही सरकार

मुक्त विचार
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महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव परिणामों ने भाजपा की बांछें खिला दी हैं। महाराष्ट्र में नगर निकायों के चुनाव चार चरणों में होने हैं। अभी पहले चरण के चुनाव नतीजे सामने आए हैं। इन चुनाव नतीजों पर नोटबंदी को लेकर मचे घमासान की छाया थी। खुद भाजपा आश्वस्त नहीं थी कि इस परिवेश में नगर निकाय चुनावों में उसे कोई खास सफलता मिल पाएगी। शिवसेना भी नोटबंदी के मामले में विपक्ष के साथ जाकर खड़ी हो गई थी जिससे भाजपा की मुश्किलें और बढ़ गई थीं, लेकिन पहले चरण के जो चुनाव नतीजे सामने आए हैं उससे भाजपा की मुर्दनी छंट गई और उसका खून आशातीत परिणामों से बहुत ज्यादा बढ़ गया है।
भाजपा के मनोबल में इससे जोरदार उछाल स्वाभाविक ही है। दूसरी ओर जनता को नोटबंदी के फैसले से हो रही परेशानियों से इस बाबत एकदम मुखालिफ पा रहे विपक्षी दिग्गजों ने जो रणनीति तैयार की थी उसके चकनाचूर होने के आसार बन गए हैं। विपक्षी खेमा खासतौर से सपा नेता इस स्थिति से हतप्रभ जैसे हैं। महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव परिणामों से यह उजागर हुआ है कि नोटबंदी के फैसले को लेकर जल्दबाजी का आंकलन व्यर्थ है। हालांकि स्थानीय कारक भी हो सकते हैं जिनसे भाजपा को सफलता मिली हो। लेकिन परेशानियों के बावजूद लोगों ने भाजपा को पहले से ज्यादा उत्साह के साथ समर्थन दिया। लोगों के लिए यह एक पहेली है। एक सफल लोकतंत्र के लिए आवश्यक रहा है कि सरकार चाहे मनमोहन सिंह की हो या नरेंद्र मोदी की लेकिन आम जनता इसके आंकलन को लेकर प्रखर आलोचनात्मक विवेक रखे, जो इन दिनों विलुप्त किया जा रहा है। सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के प्रति अंधभक्ति के सुनियोजित बढ़ावे ने वास्तविक तस्वीर को अदृश्य जैसा कर दिया है जो कि बेहद दुखद है। लोकतंत्र में जब तक लोक चैतन्य नहीं हैं तब तक बेहतरी के काम हो ही नहीं सकते। यह एक सिद्धमंत्र है। दूसरी ओर यह मंत्र निहत्था और अकेला हो कहीं एकांत की जगह में बैठ गया है। लेनिन ने कहा था कि व्यापक जनता कभी गलत नहीं होती इसलिए नोटबंदी की तमाम तकलीफें झेलने के बाद भी अगर लोग भाजपा के प्रति समर्थन बनाए हुए हैं तो तात्कालिक तौर पर यही कहना पड़ेगा कि जनता गलत नहीं है इसलिए भाजपा भी गलत नहीं है।
लेकिन विडम्बना यह है कि नोटबंदी के फैसले के सम्बंध में मोदी सरकार और भाजपा का स्टैंड रोजाना बदल रहा है। यह कार्रवाई काले धन की समाप्ति के लिए लक्षित कही जा रही है लेकिन इसके बाद सरकार को कहीं न कहीं ऐसा लगने लगता है कि अगर उसने इस पर बहुत ज्यादा बल दिया तो उसकी कलई खुल सकती है। दरअसल कुछ ही महीने पहले एक नये लांच हुए इलेक्ट्रॉनिक चैनल ने यह मुद्दा उठाया था कि देश के कुछ सैकड़ा लोगों ने 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक की इनकम को आयकर रिटर्न में कृषि से होने वाली आय के रूप में दिखा दिया है जबकि खेती इन दिनों सूखा व अन्य कारणों से घाटे का सौदा बनी हुई है। जब किसान हाड़तोड़ मेहनत करने के बावजूद इस माहौल में खेती में गृहस्थी का पेट भरने लायक अनाज पैदा नहीं कर पा रहा तो इन तथाकथित किसानों के पास ऐसा कौन सा अलादीन का चिराग है जिसके सहारे खेती करके यह लोग इतना असीम मुनाफा कमा लेते हैं। उक्त चैनल पर इस बात का भारी शोरशराबा होने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सामने आकर कहा कि वे इसकी जांच कराकर काले धन को सफेद बनाने के लिए कृषि आय को सहारा बनाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करेंगे।
सरकार से काला धन के मुद्दे पर दो बातों में बड़ी पूछताछ हो रही है, एक तो यह कि उसने स्विस बैंक व अन्य विदेशी बैंकों और वित्तीय संस्थानों में देश की पूंजी जमा करने वालों के खिलाफ चुनावी वायदे के अनुरूप कोई कारगर कार्रवाई क्यों नहीं की। सरकार इस सवाल पर अभी तक डिफेंसिव हालत में है। विदेशी बैंकों में जमा देश के काला धन को वापस लाने के मामले में उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। दूसरी ओर 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक की कृषि आय इनकम टैक्स रिटर्न में जताने वाले लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई से वह कतरा रही है। इसीलिए उसने नोटबंदी को लेकर इतना कोहराम मचा दिया कि ये मुद्दे कालीन के कहीं नीचे दबकर रह गए हैं। मोदी सरकार आम जनता को परेशान किए बिना सीधे-सीधे काले धन के साम्राज्य पर खड़े ऐसे लोगों के खिलाफ तलवार क्यों नहीं उठा रही, यह आश्चर्य का विषय है। इसलिए यह साफ है कि नोटबंदी के पीछे कहीं से भी काले धन की समाप्ति का कोई मकसद नहीं है। सरकार भी इसको जानती है इसीलिए नोटबंदी के मामले में काले धन से चलकर वह अब कैशलेस व्यवस्था के प्रयोजन की पूर्ति के लिए नोटबंदी के कदम को उठाए जाने की बात कहने लगी है। इसलिए तात्कालिक चुनाव परिणामों को लेकर भाजपा को बहुत मुगालता पालने की जरूरत नहीं है। अगर सरकार ने काले धन की समाप्ति के लिए कठोर रुख अपनाने की जहमत न उठाई तो उसे लेने के देने पड़ सकते हैं। इस मामले में उसको इस बात का जवाब देना पड़ेगा कि वह सीधे-सीधे काले धन को पनपाने वाले तंत्र पर हमला करने से क्यों बच रही है। 20 हजार करोड़ रुपये जिन लोगों ने एग्रीकल्चर इनकम दिखाकर टैक्स बचाने के लिए दर्शाए हैं उनको ट्रैश करके ट्रायल कराने के बाद जेल भेजने का कदम मोदी सरकार क्यों नहीं उठाना चाहती। लेकिन विडम्बना यह है कि सरकार किसी भी निहित स्वार्थ को उसकी गलत हरकतों के लिए सजा दिलाने को तैयार ही नहीं है। आखिर ऐसे में व्यवस्था बदले तो बदले कैसे।

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