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जालौन जिले के माधौगढ़ ब्लाक क्षेत्र के लगभग पांच हजार की आबादी वाले कुरसेंड़ा गांव में कुछ महीने पहले तक सामाजिक वातावरण इतना बिगड़ चुका था कि एक ही फड़ पर 12 वर्ष का बालक और 60 वर्ष के बुजुर्ग बैठकर जुआ खेलते थे और शराब पीते थे लेकिन लगभग पांच महीने से रोज निकल रही रामधुन गाते लोगों की प्रभात फेरी ने अब गांव का काया पलट कर दिया है। राम नाम के चमत्कार ने जातिगत विद्वेष के कलह में बुरी तरह झुलसते इस गांव में सुमति का मंत्र तो कारगर तरीके से फूंका ही ज्यादातर लोगों को हर तरह के दुव्र्यसन से भी उबार दिया।
कुरसेंड़ा में विभिन्न जातियों की मिली जुली आबादी है। पहले एक वर्ग में ही शराब पीने का रिवाज था लेकिन इसके बाद कुछ वर्षों में गांव की हर बिरादरी इसकी चपेट में आ गयी। कुछ तो राजनीतिक जागरूकता बढऩे से और इसके बाद नशे का प्रभाव जिससे अत्याचार सहने वाला वर्ग भी तुर्की-ब-तुर्की जवाब देने को तैयार हो उठा। कलह इतना बढ़ा कि आये दिन अनुसूचित जाति उत्पीडऩ निवारण अधिनियम व अन्य फौजदारी कानूनों के मुकदमे थाने में दर्ज होने लगे। जातिगत कलह अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया। पहले से समाज सेवा से जुड़े रहे धार्मिक विचारों के भगवान सिंह गांव की इस विनाशलीला से बुरी तरह आहत हुए।
हर सोमवार को शाम 5 बजे शिव मंदिर पर भजन कीर्तन का कार्यक्रम शुरू होता है। लोगों की दिन चर्या ही बदल गयी है। ऊंच नीच, जातिवाद की जगह भाईचारे और आपसी स्नेह ने ले ली है। प्रभात फेरी में शामिल होने वाले की बुरी लतें अपने आप छूट जाती हैं। ग्रामीण इसे राम नाम का चमत्कार बता रहे हैं। देखादेखी हिंगुटा, चितौरा, धमना, चितौरी आदि पड़ोसी गांवों में रामधुन निकालने की परंपरा का सूत्रपात हो गया है।
गांव के गजेंद्र सिंह बताते हैं कि प्रभात फेरी की परंपरा से उनकी बहू बहुत प्रसन्न है। पहले सुबह देर तक नहीं जाग पाता था, अब सुबह ही नहा धोकर तैयार हो जाता हूं। पूरा घर व्यवस्थित हो गया है। सेवा कठेरिया मानते हैं कि राम सबको सुमति देते हैं। उनके नाम ने इसी कारण गांव की फूट खत्म करा दी। अब हर जाति के बड़े बुजुर्ग का सम्मान करने और छोटे को स्नेह देने की पुरानी परंपरा पुनर्जीवित हो गयी है। महेश चौधरी बोले कि समता को साकार रूप में देखना हो तो लोगों को कुरसेंड़ा में आकर देखना चाहिए। प्रभात फेरी में हर जाति का आदमी कंधे से कंधा मिलाकर चलता है। बदले माहौल में लगता ही नहीं है कि कभी इस गांव में सामंतवाद का बोलबाला रहा होगा। अंबेश मिश्रा ने बताया कि नशे की आदत और झगड़े ने लोगों को बर्बाद कर दिया था। सत्संग ने इससे छुटकारा दिलाया तो न केवल आपसी भाईचारा बढ़ा बल्कि लोगों को अपनी आर्थिक उन्नति के लिए सोचने और प्रयास करने का मौका भी मिला है।
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