Menu
blogid : 11660 postid : 957585

क्रिकेट बहाने फिर एक बार…

मुक्त विचार
मुक्त विचार
  • 478 Posts
  • 412 Comments

हाल ही में तीन युवा क्रिकेटरों को स्पाट फिक्सिंग के आरोपों से बरी कर दिया गया है लेकिन इससे क्रिकेट के पीछे होने वाले सट्टे को क्लीन चिट नहीं मिल जाती। कुछ ही दिन पहले क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के शीर्ष पदाधिकारियों व आईपीएल की टीमों के प्रायोजकों पर सट्टेबाजी की वजह से कार्रवाई हुई थी। ललित मोदी ने भी कहा है कि क्रिकेट में प्रति वर्ष दस हजार करोड़ रुपए का सट्टा होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि क्रिकेट में होने वाले सट्टे की वजह से ही दाऊद इब्राहीम इतना बड़ा डान बन गया है कि उसकी भारत जैसे शक्तिशाली देश से टकरा जाने की जुर्रत हो गई। भले ही वह कह रहा हो कि 1993 के मुंबई में सीरियल बम विस्फोटों की आतंकवादी वारदातों में उसका हाथ नहीं था लेकिन भारत सरकार की जांच एजेंसियों ने इन बम विस्फोटों के पीछे उसी को सबसे बड़ा मास्टर माइंड माना है और जांच एजेंसियों पर विश्वास न किया जाए इसका कोई कारण नहीं है। फिर क्या वजह है कि जिस क्रिकेट की वजह से हमारी सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो रहा है जिसकी वजह से हमारी नैतिक व्यवस्था छिन्नभिन्न हो गई है और जिसकी वजह से जुआ जैसी कुरीति समाज में जहर की तरह तीव्रता से फैल रही है। हम उससे पिंड नहीं छुड़ाना चाहते।
यह विडंबना भारत की प्राचीन संस्कृति का ढिंढोरा पीटने वाली और उस संस्कृति को फिर से देश में पुर्नप्रतिष्ठापित करने वाली पार्टी की सरकार के कार्यकाल में भी तमाम उन नीतियों के बारे में फिर से विचार न होने के कारण गहरा जाती है जो हमारे लिए भीषण रूप से अनर्र्थकारी साबित हो रही हैं। आज ग्रीस से लेकर चीन और आस्ट्रेलिया तक में जो आर्थिक झंझावात आया है और उसके पहले साइप्रस में जो वित्तीय संकट पैदा हुआ था उन सबके पीछे यह बात सामने आई है कि व्यापार को बढ़ाने के नाम पर नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को रुकावट मानकर पूरी तरह तिलांजलि देना मानव समाज के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है। कोई देश कितना भी बड़ा क्यों न हो लेकिन व्यापार के नाम पर अराजक तांडव को अपनाकर वह ऐसे भंवर में फंस गया है जिसमें उसकी आर्थिक और वित्तीय व्यवस्था में कोई अस्थिरता नहीं रही है। दूसरी ओर जिन देशों ने सभ्यता के उत्कर्ष के कई पायदान मूल्यों पर आधारित समाज को समृद्ध करते हुए तय किए हैं वे मानसिक गुलामी के अधीन होकर फैशन व तरक्की याफ्ता कहलाने की लोलुपता में इनकी अनर्थकारी योजनाओं को सिर माथे लेने की तत्परता दिखा रहे हैं। उनके सामने एक बड़ा प्रश्नचिह्नï पैदा हो रहा है। आखिर भारत जैसे देश में सत्ता परिवर्तन के बाद कम से कम इस मामले में तो व्यापक परिवर्तन होना ही चाहिए था।
दुनिया के साथ चलने के नाम पर पश्चिम की तमाम बुराइयों का अंधे होकर अनुकरण करना इस समय तो जरूरी नहीं होना चाहिए। आप अपनी संस्कृति की रक्षा करना चाहते हैं और पश्चिम की विकृतियों के अंधड़ से खुद को बचाना चाहते हैं यह बात साबित कैसे हो। इसके लिए तो प्रतिरोध का प्रदर्शन अनिवार्य रूप से करना ही होगा। इस प्रदर्शन की शुरूआत क्रिकेट जैसे बेईमानी के खेल को नमस्ते कहकर की जा सकती है। इसके बाद सामाजिक मान्यताओं से लेकर व्यापार तक में हमें अपनी परंपरागत प्रतिबद्धताओं के अनुरूप मानक गढऩे और उन पर खुद चलने के साथ-साथ दुनिया को चलाने का संकल्प चरितार्थ करके दिखाना होगा। हम जैसे लोग चाहते हैं कि क्रिकेट और अंग्रेजी भाषा के सम्मोहन जैसी भारतीय समाज की मानसिक दुर्बलताओं को लगातार कोंचें ताकि ऐसी स्थिति पैदा हो कि अपने हित अनहित के तराजू से दुनिया के चलने को तौलने की सलाहियत इस समाज में पैदा हो सके और जो चीज हमारे समाज के लिए फायदेमंद नहीं है उसे झटक देने की जुर्रत इस समाज में आ सके।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply