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खुशहाल गांव में किसानों की खुदकुशी से सन्नाटा

मुक्त विचार
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गढऱ (उरई)। उरई तहसील के अन्तर्गत जिला मुख्यालय से 12 किमी. दूर बसे 7 हजार की आबादी के इस गांव के खुशहाल किसानों की दिलेरी के किस्से डेढ़ दशक पहले तक पूरे जिले में गूंजते थे लेकिन आज कुदरत की मार और सरकार व प्रशासन की उपेक्षा ने उन्हें इस हद तक तोड़ दिया है कि चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत उनमें पूरी तरह चुक गयी है। तीन दिन पहले खेत पर फांसी लगाकर खुदकुशी करने वाले यतीश कुशवाहा 2007 से अभी तक कर्ज के गम से जीवन की बाजी हारकर जान देने वाले गांव के तीसरे अभागे किसान हैं। इस दशा के चलते गांव में ही नहीं बल्कि यहां के पूरे इलाके में हाहाकार मचा है। इसके बावजूद मृत किसान के दुखी परिवार के आंसू पोंछने न तो आज तक कोई अधिकारी यहां आया है न नेता।
अतीत में मसूर की खेती यहां के किसानों को सम्पन्नता की सौगात देती थी। मसूर में पानी, खाद का कुछ खर्चा नहीं है जबकि कीमत टनाटन्न मिलती है। आराम से मालामाल करने वाली खेती के सहारे किसान बेफिक्र थे लेकिन एक ही जिन्स की बार-बार पुनरावृत्ति से फसल चक्र गड़बड़ हुआ। नतीजतन मसूर में उकठा रोग पनपने लगा और पैदावार नाम मात्र की रह गयी। मजबूरन किसानों ने बर्बादी से बचने के लिये विकल्प में मटर और मैंथा की खेती की ओर रुख किया। इन फसलों के लिये पानी की बेतहाशा जरूरत होती है सो किसानों ने कर्ज लेकर बोरिंग करा डाली लेकिन करीब पांच वर्ष तक लगातार अवर्षण का दौर रहा। इसमें भूमिगत जलस्तर में गिरावट के कारण बोरिंग फेल होने लगीं। दूसरी ओर आमदनी न होने से कर्ज तो सलामत रहा ही उस पर ब्याज और लदने लगा। 2007 में गुलाब सिंह ने उसके हिस्से की सात बीघा जमीन पर सूदखोर दबंगों द्वारा कब्जा कर लेने से सदमा खाकर आत्महत्या की तो अगले साल 2008 में 42 एकड़ के बड़े किसान नारायण दास को बैंक कर्ज की वजह से जमीन नीलाम होने के भय के कारण इज्जत बचाने के लिये जान दे देना ही चारा समझ में आया। हालांकि अब किसानों के खिलाफ उत्पीडऩात्मक कार्यवाही पर रोक लग चुकी है। फिर भी उनकी खुदकुशी का सिलसिला थम नहीं पा रहा है। यतीन्द्र कुशवाहा की मौत इस सिलसिले की ताजा कड़ी है। प्रधान जितेन्द्र रजक का कहना है कि अपने आपको किसान का बेटा कहने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इस गांव में मातमपुरसी के लिये आना चाहिये। इससे यहां के किसानों को ढाढस बंधेगा कि सरकार उनके साथ खड़ी है। नतीजतन उनका खोया आत्मविश्वास और जिजीविषा फिर लौट सकेगी।
बेटे के लिये देखा सपना टूटा तो जिन्दगी हार गया किसान
उरई। फांसी लगाने वाले गढऱ के किसान यतीश कुशवाहा के पांच भाइयों के कुनबे में 18 एकड़ सम्मिलित पुश्तैनी खेती थी। भले ही उसके पास खुद की जमीन कम रही हो लेकिन दूसरों की जमीन नगदी पर जोतकर वह अच्छी खासी पैदावार कर लेता था। इसी भरोसे के चलते उसने अपने दो बेटों के लिये तमाम सुनहरे सपने देख रखे थे। लेकिन बेमौसम बारिश ने जहां पिछले साल मटर की खड़ी फसल बर्बाद कर दी। वहीं मैंथा की बुवाई भी वह देर से कर सका। दुर्भाग्य उसके पीछे था कि जब फसल कटने पर आयी तो समय पर मानसून की आमद होने से बरसा पानी उसके लिये तेजाब बन गया। सपा सरकार की किसानों के लिये कर्जमाफी की घोषणा के भुलावे में उसने पिछले साल बैंक कर्ज जमा नहीं किया था। जब यह साफ हो गया कि कर्ज माफी नहीं होगी तब तक देर हो चुकी थी उसने खाते का नवीनीकरण कराया तो ब्याज ज्यादा लगने से कर्ज बढक़र 2 लाख 70 हजार रुपया हो गया। मैंथा बेचकर अपना घाटा पूरा कर लेने की जो उम्मीद वह संजोये था उस पर ताजा बारिश ने पानी फेर दिया। दूसरी ओर उसके बड़े लडक़े महेश का आईआईटी रुडक़ी में सेलेक्शन हो गया पर एडमीशन के पैसे वह नहीं जुटा पा रहा था। इसी कारण घटना के दिन जब उसने अपने खेत पर मैंथा की तबाह फसल देखी तो उसे अपने लडक़े के भविष्य पर अंधेरे का साया मंडराता नजर आया। ग्लानि और भावावेश में वह खुदकुशी का फैसला कर बैठा।

शराब में डूबा गांव
उरई। गढऱ में किसान अच्छी खेती होने से भविष्य के सपने बुनते रहते थे लेकिन आज लगातार खराब होती खेती के कारण यहां हालात बदल चुके हैं। गांव में देशी शराब का ठेका खुला है और इसकी बिक्री पिछले एक दशक में कई गुना बढ़ गयी है। गांव का हर घर शराब नोशी की गिरफ्त में आ चुका है। किसान दिन भर नशे में गर्क रहकर खेती की बर्बादी का गम गलत करने की कोशिश करते रहते हैं।

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