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जोर वालों की होती है हुकूमत

मुक्त विचार
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सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलने वाले आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर पर राज्य सरकार का शिकंजा फसता जा रहा है। यह बहस का विषय हो सकता है कि सरकारी नौकरी में रहते हुए राजनीतिक किस्म की जो मुहिम अमिताभ ठाकुर ने छेड़ रखी थी वह कितनी उचित और वैधानिक है लेकिन उनके विरुद्ध सरकार जिस तरह पीछे पड़ गई है उसमें साफ तौर पर बदले की भावना झलकती है।
मुलायम सिंह भले ही आपातकाल के संदर्भ में अपने आपको लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई लड़ने वाला महायोद्धा साबित करने में न थकते हो लेकिन लोकदल परिवार के अन्य नेताओं की तरह ही उनकी कारगुजारियां भी पूरी तरह फासिस्ट है और अमिताभ ठाकुर पर हो रही कार्रवाई के तरीके से इसकी एक और बानगी उन्होंने लोगों के सामने पेश कर दी है। लोकतंत्र के लिए ऐसी फासिस्ट प्रवृत्ति से ज्यादा घातक कुछ नही हो सकता लेकिन लगता है कि गुलामी के लंबे दौर में भारतीय समाज के नैतिक संस्कार, स्वाभिमान सब कुछ नष्ट हो गया है और शक्ति पूजा इसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है जिसकी वजह से ऐसे राजनीतिज्ञ भी व्यापक स्वीकृति हासिल करने में सफल हो रहे हैं।
दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन का मामला भी मीडिया में जमकर उछला था सरकार को अपनी कार्रवाई का नैतिक और वैधानिक औचित्य साबित करने के लिए कोई आधार नहीं मिल पाया था फिर भी उसे लोकलाज की कोई परवाह नही हुई। अमिताभ ठाकुर से भी सरकार बड़प्पन बनाये रखते हुऐ निपट सकती थी। लोकतंत्र में यह जाहिर करने की कोई गंुजाइश जन नेता और लोकप्रिय सरकार के पास नही होती कि वह जताये कि सरकारी नौकर होकर हमारे सामने बेअदबी करने की जुर्रत करोगे तो मिटा दिए जाओगे लेकिन यह बात उन्हें समझ में आती हैं जिनमे लोकतांत्रिक सलीका हो। लोकदल परिवार को कोई यह समझाये तो वह निरा मूर्ख है।
कुछ दिन पहले आगरा में समाजवादी पार्टी की व्यापारी शाखा का एक तथाकथित प्रदेश स्तरीय पदाधिकारी मुख्यमंत्री तक के फोन नं. को हैक करके उनके नाम से अधिकारियों को निर्देश देने की जालसाजी में पकड़ा गया था। जांच में यह बात प्रकाश में आई थी कि प्रदेश के दो पूर्व महानिदेशक अम्बरीश चंद्र शर्मा और आनन्द लाल बनर्जी उसके माध्यम् से बड़े खेल करते थे। भ्रष्टाचार की एक बड़ी कड़ी सामने आने और मीडिया व विपक्ष द्वारा इस मामले की जांच को अंजाम तक पहुंचाने के लिए प्रभावी दबाव बनाने के बावजूद राज्य सरकार ने बड़े आहिस्ते से इस स्कूप को किसी गहरी कब्र में दफन कर दिया। नोयडा का मामूली जेई से चीफ इंजीनियर बनाया गया यादव सिंह तो बसपा का चहेता था लेकिन उसने बेनामी तौर पर सपा के लिए बड़ी फंडिग कर दी जिसके चलते उसे अभयदान दिया जा चुका था। अब अमिताभ ठाकुर की पत्नी नूतन ठाकुर की ही जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने उसके मामले को सीबीआई के सुपुर्द करने का आदेश जारी कर दिया है लेकिन इस फजीहत के बाद भी सरकार के चेहरे पर शर्म का कोई निशान नही है।
हुकूमत पर उनका अधिकार है जिनका जूता मजबूत हो शायद यह ध्येय वाक्य है जिसकी वजह से सत्ता को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानकर उसे हासिल करने और बनाये रखने के लिए किसी भी सीमा तक जाना समाजवादी पार्टी को जायज लगता है। मजे की बात यह है कि यह उस पार्टी का आलम है जिसने अपना नामकरण समाजवाद की विचारधारा पर किया है और समाजवादी आंदोलन की परंपरा में मूल्यों पर आधारित राजनीति और सार्वजनिक जीवन में उच्च परंपराओं के लिए संघर्ष करते हुए न जाने कितनी विभूतियां मर खप गई। पुराने समाजवादी भी पूंजीपतियों से चंदा लेते थे राजनारायण जी मोहन मीकिन्स की डिस्टलरी को किसी नदी के किनारे लगाने का लाइसेंस दिए जाने पर उसके सामने धरने पर भी बैठ जाते थे और बाद में अपने पट्ठों को खाना खिलाने के लिए मोहन मीकिन्स के मालिकों से जबरन चंदा भी वसूल कर लेते थे। चंदे के लिए किसी पूंजीपति को अपना उसूल बेचना सोशलिस्टों की किताब में कहीं नहीं लिखा होता था। पार्टी और आंदोलन चलाने के लिए भ्रष्ट नौकरशाही से भी चंदा लेने में गुरेज न करने की सोशलिस्ट क्रांति कहीं लोहिया जी के जमाने में हो गई होती तो उन्होंने खुदकुशी ही कर ली होती। ऐसा भी नहीं है कि आज उसूलो पर बने रहते हुए किसी पार्टी को चंदा नहीं मिल सकता लेकिन जिनके लिए सत्ता एक मद है उन मदहोश लोगों को पसीना बहाकर राजनीति करना कैसे रास आयेगा। शाही अंदाज में पार्टी के संचालन के लिए अकूत दौलत चाहिए जो थोड़े बहुत चंदे में संभव नही है। सत्ता के मद की तलब खूंखार बना देती है जिसकी वजह से उसे हर कीमत पर बनाये रखना मजबूरी बन जाता है अगर बड़ा खजाना खुद के पास होगा तो सत्ता के संकट के समय मोहरों को साधने में सफलता मिल जायेगी। व्यवहारिक राजनीति एक व्यापार भी है। अपना वजूद मजबूत करने में जितना खर्चा होता है मौका पड़ने पर भरपूर ब्याज के साथ उसके वसूल होने की स्थितियां भी बन जाती हैं। मनमोहन हो या मोदी बामपंथी साथियों को ठगे जाने की हालत में छोड़कर मुलायम सिंह ने केंद्र की सरकारों को संबल देने का काम मुफ्त में तो नहीं किया।
हालांकि अमिताभ ठाकुर जो कर रहे थे उसे ओवर एक्टिंग मानने वालों की भी कमी नहीं थी। अगर सपा सुप्रीमों उन्हें फोन पर धमकाने के अंदाज में समझाने की बजाए सीधे निलंबित करा देते तो कोई बवाल नहीं होता। इसके बाद जबकि उनका फोन टेप सार्वजनिक हो गया था तो अकेले अमिताभ को निशाना बनाने की बजाए सारे आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को अपनी परिसंपत्तियों का ब्योरा तत्काल दाखिल करने का सामान्य आदेश राज्य सरकार से जारी कराकर सहूलियत के साथ वे अमिताभ ठाकुर की घेराबंदी करा सकते थे। इसी तरह कार्रवाई की जद में आये कई अधिकारियों की जांच के लिए शीर्ष अधिकारी की नियुक्ति की जा सकती थी तांकि अमिताभ ठाकुर को सिर्फ अपना मामला होने की वजह से बदले की भावना से उन्हें परेशान करने का आरोप दमदारी के साथ लगाने का अवसर नही रह जाता। लेकिन ऐसी सावधानियों की परवाह वे लोग करते है जो कमजोर होते हैं समाजवादी पार्टी तो यह मानती है कि हुकूमत उन्हीं के पास होनी चाहिए जिनमें मनमानी करने का बूता हो। इसमें गलती लोगों की भी है अगर समाज लोकतंत्र वादी और सिद्धांत वादी हो तो मनमानी को वह पहल दिन से ही सहन नही करेगा और ऐसे समाज में किसी फासिस्ट नेता के महिमा मंडित होने व सत्ता के शिखर तक पहुंचने का सवाल ही नही है।14-1436849861-akhilesh-amitabh-thakur

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