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आज के दिन तथागत बुद्घ बोधि ज्ञान से आलोकित हुए थे। इस कारण भारतीय संस्कृति में कार्तिक अमावस्या की तिथि पर घर को दीपों से आलोकित करने की परंपरा शुरू हुई ताकि हर व्यक्ति बुद्घत्व को प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा की ओर प्रेरित हो सके। मानवीय गुण जीवन के महान लक्ष्यों की ओर बढऩे को प्रेरित करते हैं। अध्यात्म ही मानवीय चेतना का मौलिक अवलम्ब है। तथागत बुद्घ ने अध्यात्म की पाखंड और प्रपंच रहित अभिव्यक्ति प्रतिपादित की। मध्य मार्ग को उन्होंने श्रेयस्कर माना। तथागत बुद्घ ने कहा कि परमात्मा होता है या नहीं, आत्मा का अस्तित्व वास्तव में है और क्या पुनर्जन्म वास्तव में होता है ऐसे प्रश्नों को अव्याकृत कहकर इनकी चर्चा का निषेध किया। उन्होंने जीवन सुधारने के लिये किसी कर्म काण्ड का विधान करने की बजाय अष्टांगिक मार्ग प्रतिपादित किया। इन आठ सूत्रों में सम्यक जीविका से लेकर सम्यक समाधि या चिंतन तक आचरण को बांधने की सटीक शिक्षा है।
संसार में हर मनुष्य किसी न किसी कारण से दुखी है। वह ईश्वर की प्रार्थना अपने दुखों के निवारण के लिये करता है। तथागत बुद्घ का दर्शन ही इस दर्शन पर आधारित है कि संसार में दुख हैं और उसके निवारण की विधि भी। दुखों का शमन ही यथार्थ समृद्घि का बोध है और दुखों का संताप ज्ञान से आता है। यह देश घोषित रूप से तो ज्ञान और अध्यात्म की सर्वाधिक कद्र करने वाला देश है लेकिन यथार्थ दूसरा है। यह देश जिन मनोविकारों पर विजय प्राप्त करने की साधना में 24 घंटे अग्रसर नजर आता है उनमें राग और द्वेष भी शामिल हैं लेकिन आचरण में इस देश ने अपने आपको घनघोर द्वेषी जिसका दूसरा नाम प्रतिक्रियावादी है साबित किया है। इस देश में रोना यह रोया जाता है कि विदेशी आक्रांताओं के आने के बाद धार्मिक हिंसा शुरू हुई लेकिन इतिहास का सच यह है कि धार्मिक हिंसा का सूत्रपात करने का श्रेय इसी देश की ओछी मानसिकता को है।
तथागत बुद्घ के उच्च आदर्शों का बलिदान करने के लिये दीपावली का अर्थ जिस तरह बदला गया वह इसका उदाहरण है। भारतीय संस्कृति में घोषित चार पुरुषार्थों में अर्थ भी शामिल है लेकिन अर्थ की साधना किसे करना चाहिये जिसमें समाज के हित में इसके रचनात्मक प्रयोग की जन्मजात प्रतिभा हो। क्रिकेट के प्रेमी करोड़ों की संख्या में हैं लेकिन इस खेल के पेशेवर खिलाड़ी 50 100 भी नहीं होते। क्रिकेट को पसंद करने का मतलब यह नहीं है कि हर कोई बल्ला लेकर क्रिकेट खेलने के लिये निकल पड़े। अर्थ जो इस क्षेत्र के मास्टर नहीं हैं उनका पुरुषार्थ नहीं हो सकता। यह उद्योगपति, व्यवसायी के लिये एक सिद्घि है लेकिन सर्जक (साहित्यकार, दार्शनिक) के लिये अभिशाप। जो जिस क्षेत्र का मास्टर है उस फील्ड में रहने का अधिकार उसी को है। दीपावली के दिन ज्ञान की अनुभूति का जश्न मनाने की बजाय हर किसी का अर्थ के लिये लक्ष्मी की खुशामद करने लग जाना दरअसल एक कुफ्र है यानि पाप है। इसी पापाचरण की वजह से जिस भारत को अमेरिका जैसे क्रिमिनल देश का मार्गदाता बनकर उसे सही राह पर लाने की भूमिका निभानी चाहिये वह उसका अनुगामी बनकर आज ऐसे मुकाम पर खड़ा हो गया है जहां पैसा और तथाकथित समृद्घि वरदान की बजाय अभिशाप में परिवर्तित हो चुकी है। उपभोक्ता संस्कृति ने जीवन को इतना महंगा कर दिया है कि दिन भर पैसे कमाने की आपाधापी में आदमी का सारा सुख चैन छिन चुका है, वह इतना पतित हो चुका है कि पैसे कमाने की होड़ में अपनों को भी कुचल कर उनकी छाती पर होकर दौड़ते चले जाने में उसे संकोच नहीं लगता। कितनी भी दौलत इकट्ठी हो जाये लेकिन यह एक ऐसा दौर है जिसमें आदमी अपने को अभाव ग्रस्त ही महसूस करेगा। क्या समृद्घि की इस मृग मरीचिका में भटकते प्राणांतक बेचैनी महसूस करते हुए भी हमारी अकल ठिकाने पर नहीं आ पा रही है। क्या हम शापित हैं। – बुद्घं शरणम् गच्छामि संघम् शरणम् गच्छामि।
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