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फंतासी में जी रहे संघी मोदी के लिए बने गले की फांस

मुक्त विचार
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के पहले कार्यकाल में मानसिकता के स्तर पर कुएं के मेंढ़क ही रहे होंगे क्योंकि उनके राजनीतिक संस्कार संघ की पाठशाला में हुआ जहां वास्तविकता से कटे इतिहास और विचारों की बातें होती हैं लेकिन प्रधानमंत्री होने के बाद जब उन्हें दुनिया के तमाम देशों में भ्रमण करने का अवसर मिला और एक आधुनिक लोकतांत्रिक राष्ट्र के संचालन की प्रक्रियाओं को बारीकी से समझने का मौका तो अब वे उस समय की धारणाओं से छुटकारा पाने के लिए व्याकुल हैं। ऐसे में उनके लिए संघ की पृष्ठभूमि से आए अपनी पार्टी के नेता समस्या बन गए हैं।
लोक सभा चुनाव के तत्काल बाद ही उन्हें इन जड़ नेताओं की बयानबाजी का कड़ा स्वाद चखने का अवसर मिलने लगा था। पहले बिहार के सांसद गिर्राज किशोर ने यह कहकर उनके लिए मुसीबत कर दी कि जो भाजपा या मोदी को वोट नहीं देना चाहते वे पाकिस्तान चले जाएं। मोदी का गला इसकी सफाई देते-देते सूख गया। इसके बावजूद मोदी को उन्हें अपने मंत्रिमंडल में जगह देनी पड़ी। संघ को उन्होंने राममंदिर और अनुच्छेद 370 हटाने के मामले में फिलहाल खामोश रहने के लिए मनाने को भारी मशक्कत की। संघ के पदाधिकारी इसके लिए तैयार भी हो गए फिर भी उनके सामने परेशानियों का दौर खत्म नहीं हुआ है। संसद सत्र के दौरान साध्वी निरंजन ज्योति ने दिल्ली की एक सभा में राममंदिर के संबंध में अपनी आस्था के विपरीत विचार रखने वालों को संबोधित करने के लिए अशोभन विशेषण का इस्तेमाल करके उन्हें मुसीबत में फंसा दिया। अगर मुलायम सिंह ने साथ न दिया होता तो विपक्ष साध्वी के इस्तीफे के लिए इतना कटिबद्ध हो जाता कि उसका मुकाबला करने में अपनी विदेश यात्राओं से अर्जित सारी उपलब्धियां गंवाने की नौबत मोदी के लिए पैदा हो सकती थी। मोदी ने इस समस्या से जैसे-तैसे निजात पाई तो बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने आगरा में कुछ गरीब मुसलमान परिवारों को प्रलोभन देकर धर्मांतरण की नौटंकी रचा डाली। फिर संसद में इसको लेकर हंगामा हुआ वह तो मोदी मुलायम सिंह को धन्यवाद दें कि इस मामले में ओबेशी से तकरार की नौबत आ जाने के बावजूद मुलायम सिंह उनके लिए ढाल बनने से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए। अब साक्षी महाराज ने गोडसे को महिमामंडित करके उनकी दुर्गति कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। साक्षी महाराज को संसद में माफी मांगनी पड़ी है। मोदी ने उनसे भारी नाराजगी प्रकट की है। इस बीच उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनायके ने भी अयोध्या में विवादित स्थल पर राममंदिर के निर्माण को जनभावना बताकर बवाल खड़ा कर दिया है। संवैधानिक पद पर रहते हुए इस तरह का बयान देकर उन्होंने निश्चित रूप से असंवैधानिक आचरण किया है। मुलायम सिंह जैसे विपक्ष में बैठे नेता अगर उनका सहयोग न करें तो उनके गले में संघियों की करतूत ऐसी हड्डी बनकर फंस सकती है जो उनकी सरकार की सांस घुटने का कारण बन जाए।
दरअसल संघ परिवार देश के वर्तमान स्वरूप को स्वीकार न कर उस अतीत की फंतासी में जी रहा है जब न तो बौद्ध संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ था और न ही इस्लाम का प्रसार भारत में हुआ था। कई धर्मों और संस्कृतियों के संक्रमण से निर्मित भारत की वर्तमान तस्वीर एक अलग तरह का माडल है जिसके लिए धर्म निरपेक्ष और सर्व धर्म सद्भाव की नीति ही सर्वाधिक मुफीद है। यहां तक कि मुसलमानों के सबसे लंबे शासक वंश को भी अपने स्थायित्व के लिए इसी नीति का वरण करना पड़ा था। आज भारत में जो मुस्लिम रहते हैं वे अरब या किसी अन्य देश से आए हुए लोग नहीं हैं। हिंदुओं के ही बीच के लोग हैं। यहां की धरती पर उनका उतना ही अधिकार है जितना हिंदुओं का है इसीलिए आजादी के बाद के भारतीय नेताओं ने शासन के लिए धर्म निरपेक्षता की नीति को अपना निर्देशक सिद्धांत बनाया था। इस नीति में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। जहां तक मुसलमानों का धर्मांतरण कराकर फिर से पूरे भारत को हिंदुमय बनाने का प्रश्न है इसमें जो व्यवहारिक कठिनाइयां हैं उनका जवाब अतीत में जब भारत की दुर्गति हो रही थी तब नहीं ढूंढा गया तो आज धर्मांतरित हिंदुओं का समावेशन कैसे संभव हो सकता है। इस्लामिक दौर में हिंदुओं पर अत्याचार करने वाले अधिकांश शासक वे थे जो हिंदुओं के धर्म ध्वजा वाहकों के सामने गिड़गिड़ाए थे कि आप हमें अपने में स्वीकार कर लें लेकिन उन्हें दुत्कार दिया गया था। हिंदु पुरोधाओं को अपनी शुद्धता की रक्षा का जो अभिमान अतीत में रहा है आज भी उसमें कोई परिवर्तन आया हो ऐसा नहीं कहा जा सकता। धर्मांतरित हिंदु कौन से वर्ण जाति में माना जाएगा और उनके बेटे-बेटियों के शादी-विवाह किसमें होंगे इसका उत्तर देना आसान नहीं है। धर्मांतरण करके उनके सामने घर के न घाट के रह जाने की स्थिति है। जैसा कि आगरा में धर्मांतरित मुसलमानों के साथ हो रहा है। उन्हें जब अपनी आने वाली पीढिय़ों के भविष्य के बारे में अनुमान हुआ तो उन्होंने पछतावा जाहिर करके पुन: अपने को मुसलमान तो घोषित कर लिया है लेकिन अब मौलवी कह रहे हैं कि उन्हें नए सिरे से कलमा पढऩा होगा और अपनी बीवियों से नए सिरे से निकाह रचाना होगा। वे जिस मुसीबत में फंस गए हैं उसका पहले से ही अंदाजा था।
मोदी सरकार आने के बाद संघ परिवार के नादान कार्यकर्ताओं में देश को हिंदु राष्ट्र बनाने का जो अति उत्साह पैदा हुआ है उससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए खतरा उत्पन्न हो जाने की आशंका निर्मित हो गई है। छुटभैया कार्यकर्ताओं की तो बात छोडि़ए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जैसी सीनियर लीडर भी गीता को राष्ट्रीय गं्रथ का दर्जा देकर अपनी सरकार को विवाद में फंसा देने से नहीं चूकीं। मोदी सरकार को समय देने के लिए विवादित मुद्दों से परहेज रखने की हामी भर चुकने के बावजूद संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने हिंदु राष्ट्र संबंधी बयान दे ही डाले। हालत यह हो गई है कि मोदी भारत को एक शांत समृद्ध व ऐसा राष्ट्र जिसमें कानून का शासन है के रूप में प्रस्तुत करने की चेष्टाएं करके अंतर्राष्ट्रीय जगत में जहां उसे श्रेष्ठ लोकतंत्र के मानक के रूप में स्थापित करने में लगे हैं वहीं विदेशी पूंजीनिवेश के लिए वातावरण तैयार करने में सफल हो रहे हैं लेकिन संघ परिवार ही उनकी महत्वाकांक्षाओं का दुश्मन बनने लगा है। इस संसद सत्र में दकियानूसी बातों को उठाने के कारण सरकार को जितने सवालों का सामना करना पड़ा निश्चित रूप से उससे मोदी भी अपने आप में हतप्रभ होंगे। उनकी दुनिया भर में तमाम विदेश यात्राओं के जरिए देश की नई छवि बनाने के लिए की गई मेहनत पर पानी फिरने के आसार बन गए हैं। अगर इस पर नियंत्रण नहीं हो पाता है तो मोदी सरकार के अच्छे दिनों का अंत बहुत जल्द ही हो सकता है। इस मामले में मोदी को उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार के पहले दौर का स्मरण रखना चाहिए। कल्याण सिंह ने पक्षपात रहित और सुदृढ़ कानून व्यवस्था के शासन के जरिए जो इकबाल बनाया था वह अगर पूरे कार्यकाल तक जारी रहता तो उत्तर प्रदेश में शायद भाजपा को फिर कोई लंबे समय तक न हिला पाता लेकिन संघ परिवार ने उन्नीस महीने बाद ही अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ध्वंस करके उनकी सरकार को ऐसा मटियामेट किया कि तब से उत्तर प्रदेश में अपनी दम पर बहुमत हासिल करना भाजपा के लिए सपना बना हुआ है।

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