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मथुरा कांड जैसी घटनाओं के लिए प्रदेश में पहले से ही तैयार थी जमीन

मुक्त विचार
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गत् 26 मई को विकास भवन में झांसी मंडल की कानून व्यवस्था की समीक्षा करने के बाद प्रमुख सचिव गृह देवाशीष पंडा के साथ डीजीपी जावीद अहमद जब पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे उस समय इन पंक्तियों के लेखक ने उनके सामने दो मामले उठाये थे। एक तो यह कि पुलिस पर हमले की घटनायें लगातार बढ़ रहीं हैं जिनमें अपराधियों के खिलाफ अपेक्षित कठोर कार्रवाई नही हो रही। इसके नतीजे भयावह हो सकते हैं। लोगों में इसकी वजह से यह सवाल उठने लगा है कि जब पुलिस खुद ही सुरक्षित नही है तो आम जनता की सुरक्षा वह कैसे कर पायेगी। दूसरा सवाल फैजाबाद में बजरंग दल के साम्प्रदायिकता प्रेरित शस्त्र प्रशिक्षण को लेकर किया गया था। इसकी सूचना पुलिस को सोशल मीडिया पर वीडियो वाॅयरल होने के बाद मिली। इन पंक्तियों के लेखक ने कहा था कि इसका मतलब प्रदेश में इंटेलीजेंस एजेंसियां ढंग से अपना काम नही कर रही हैं जिससे खतरनाक गतिविधियों की सूचना मिलने में पुलिस और प्रशासन को देरी होने के कारण कभी भी कोई गंभीर अनर्थ होने का खतरा मंडराने लगा है। दोनों सवालों के डीजीपी ने उत्तर तो दिये लेकिन बहुत काम चलाऊ ढंग से। आज मथुरा कांड होने के बाद उन्हें एहसास हो रहा होगा कि उनसे उरई में किये गये सवाल कितने मौजू थे।
डीजीपी जावीद अहमद ने लंबे समय तक सीबीआई में काम किया है। जाहिर है इसके कारण उनके पास फील्ड का अनुभव कम है और उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की जटिल स्थिति से भी वे पूरी तरह वाकिफ नही हैं। इस पद रहते हुए किसी बल के कप्तान की तरह काम करने की बजाय उनकी शैली बड़े बाबू की तरह है जिससे पुलिस विभाग में बड़ा झोल पैदा हो गया है। निजी कारणों और पसंद, नापसंद के आधार पर नियुक्तियां करने की समाजवादी पार्टी की परंपरा से दूसरी बड़ी चूक एडीजी लाॅ एण्ड आर्डर के पद पर किये गये फेर बदल में हुई। सबसे ज्यादा जिलों में कप्तानी का रिकार्ड होने की वजह से मुकुल गोयल जितने बेहतर तरीके से इस पद पर काम कर रहे थे उसको देखते हुए उनसे किसी छेड़छाड़ की जरूरत बिल्कुल नही थी। लेकिन पार्टी के कुछ बड़े बाॅसेज की इटावा की कप्तानी के दौरान दलजीत चैधरी से इतनी नजदीकी बनी कि जैसे ही दलजीत चैधरी का प्रमोशन हुआ वैसे ही उन्होंने मुकुल गोयल को हटाकर उन्हें एडीजी लाॅ एण्ड आर्डर बना दिया। हालांकि इटावा में एसएसपी रहने के दौरान दलजीत चैधरी भी बेहद तेज-तर्रार थे लेकिन पदोन्नति के बाद आराम तलबी के कारण उन्होंने पहल करने की अपनी तमाम खूबियां खो डाली हैं। इसलिए शीर्ष स्तर पर जिलों से सीधा फीडबैक डीजी दफ्तर को पहुंचने का जरिया खत्म हो गया था।
मथुरा कांड ने अखिलेश सरकार की हाल की महीनों की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है। उनके द्वारा विकास पर फोकस किये जाने और बेहतर जन कल्याणकारी योजनाओं की लाचिंग की वजह से इस बीच राज्य सरकार की तारीफ उसके विरोधी भी करने लगे थे लेकिन इस कांड ने शासन संचालन के संबंध में सपा की बुनियादी कमियों को एक बार फिर सतह पर ला दिया है। समाजवादी पार्टी ने कानून के राज के अनुरूप काम करने की बजाय शुरू से मनमाने कबीलाई शासन की रणनीति को तवज्जो दी। इस कारण प्रशासनिक मशीनरी को बाईपास करना उसके लिए लाजिमी रहा। उम्मीद यह थी कि पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद तमाम तरह के अंदेशों से सपा सरकार को मुक्ति महसूस होगी जिससे उसका काम ढर्रे पर आ जायेगा लेकिन कुल मिलाकर ऐसा नही हुआ। दूसरा भले ही सपा का सत्ता बंदूक की नली से निकलती है जैसे सूत्र वाक्य को प्रतिपादित करने वाले माओ त्से तुंग से कोई संबंध न रहा हो लेकिन उसका यह विश्वास है कि चुनाव छवि से नही जोर जबर्दस्ती से जीते जाते हैं इसलिए बाहुबल समाजवादी पार्टी में विशिष्ट योग्यता की तरह है।
इस कद्रदानी के चलते कानून को रौंदने वालों को पोसकर समाजवादी पार्टी पुलिस तंत्र का मनोबल गिराती रही। रामवृक्ष यादव के प्रति भी समाजवादी पार्टी का साॅफ्ट कार्नर इसी सोच के चलते जरूर रहा होगा। जिसकी वजह से वह इतना दुर्दांत हो गया। दूसरे बाबा जय गुरुदेव की अरबों रुपयें की संपत्ति के प्रलोभन में भी पार्टी के बड़े बिगगन भूमिका निभा रहे हैं। जिसकी चर्चा जय गुरुदेव के पुराने शिष्य रामवृक्ष यादव की जगह पंकज यादव को उनका उत्तराधिकार सौंपे जाने के समय से ही हो रही है। डीजीपी जावीद अहमद ने मथुरा जाकर पत्रकार वार्ता में पुलिस की कार्रवाई को लेकर फेस सेविंग के लिए जो बयान दिया उससे उनकी रही सही भद भी पिट गई है। इसी बीच अखिलेश यादव ने बाराबंकी में माना कि मथुरा कांड पुलिस की चूक का नतीजा है। अनुमान है कि इसकी गाज डीजी और एडीजी लाॅ एण्ड आर्डर पर गिर सकती है। मथुरा के एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष यादव की उपद्रवियों के हाथ शहादत प्रदेश सरकार के लिए बहुत बड़ा झटका है। समाजवादी पार्टी को अपनी शासन शैली में परिवर्तन करना होगा तभी इस क्षति की पूर्ति होगी। साथ ही यह भी समझना होगा कि लोकतंत्र का मतलब है कि ऐसे लोग जिनके पास विकास के संबंध में विजन हो और नेक कामों की वजह से वे समाज में अपनी विशिष्ट स्वीकार्यता बनाये हुए हो उनके चुनाव का माहौल होना चाहिए न कि बाहुवलियों और धनपशुओं को वरीयता मिलनी चाहिए।

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