भैरव बाबा गौसेवा समिति के जिलाध्यक्ष विश्वनाथ सिंह जैविक खेती के लिये मिशनरी भावना से कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपने तजुर्बों से सरकारी छद्म को भी भेदा है। यहां उन्हीं के विचार प्रस्तुत हैं। हरित क्रांति ने और एक दूसरा बेमिसाल झूठ बोला है कि अगर आपको कोई फसल लेना है तो इसके लिये पहले आपको मिट्टी का परीक्षण करना होगा। सरकार का कृषि विभाग मिट्टी परीक्षण के बड़े-बड़े अभियान निरंतर चलाता है। सरकार उनको एक साल में कितने नमूनों का परीक्षण करना है यह लक्ष्य निश्चित करती है। क्या कृषि मंत्रालय का अभियान सही है? आवश्यक है? बिल्कुल नहीं! यह मिट्टी का परीक्षण करने की विधि भी उसी विश्वव्यापी शोषणकारी महाव्यवस्था का पूर्व नियोजित षड्यंत्र ही है। जब आप मिट्टी का परीक्षण करने के लिये ऊपरी सतह की नौ इंच स्तर पर मिट्टी के नमूने लेते हो और प्रयोगशाला के लिये भेजते हो तब परीक्षण के बाद आपके हाथ में एक रिपोर्ट आती है। क्या लिखा है उस रिपोर्ट में? उस रिपोर्ट की पहली पंक्ति में लिखा होता है आपके भूमि पीएच वैल्यू यानी अम्ल विम्ल निर्देशांक 6.8 या 7.5 है या 8.7 है। इस वाक्य का अर्थ क्या है? यह पीएच वैल्यू क्या है? यह सवाल किसी भी साधारण किसान को आप पूछिये- वह बोलेगा कि पीएच वैल्यू किसी विदेशी राष्ट्र के प्रधानमंत्री का नाम लगता है। यह पहला वाक्य पढऩे के बाद आपको पीएच वैल्यू के बारे में क्या मालूम पड़ा? भूमि का पीएच वैल्यू पढ़ कर क्या आपको भूमि की देहबोली मालूम पड़ी? नहीं ना? पीएच वैल्यू नाम से कुछ भी मालूम नहीं पड़ा। किसानों को एक बात जरूर मालूम पड़ी कि यह पीएच नाम की कोई भूमि को लगी भयावह कैंसर जैसी बीमारी है। साधारण ही नहीं अच्छे पढ़े-लिखे किसानों को भी पीएच मामला क्या है यह समझ में नहीं आता। यह 8.7 पीएच वैल्यू भूमि के कौन से हिस्से का है क्योंकि कृषि वैज्ञानिक जब मिट्टी के नमूने लेते हैं तो खेत के चार कोने से चार और बीच का एक ऐसे पांच जगह से नमूने लेते हैं। मैंने इस पर प्रयोग किये। मैंने खेत के हर सौ फीट के नमूने लिये, प्रयोगशाला में उनको जांचा और मुझे मालूम पड़ा कि हर कोने का पीएच वैल्यू अलग-अलग है। कृषि वैज्ञानिक जब मिट्टी के नमूने लेते हैं तो पांच जगह के अलग-अलग नमूने लेते हैं और सभी नमूने एक साथ मिला देते हैं। इसका मतलब है यह मिट्टी की परीक्षण रिपोर्ट भूमि की सही जानकारी नहीं देती। अगर आपको बुखार होता है तो आपके रक्त का नमूना परीक्षण रिपोर्ट आपको यह बताता है कि आपको कैंसर हुआ? नहीं ना? इसका मतलब है कि मिट्टी की परीक्षण रिपोर्ट किसानों को गुमराह करती है और एक आश्चर्य की बात यह है कि मिट्टी के एक ही नमूने के दो हिस्से करें और एक हिस्सा परीक्षण के लिये बंगलौर भेजें और एक कानपुर भेजें, आपको मिट्टी के दो पीएच वैल्यू मिलते हैं। यह एक चमत्कार है? यह चमत्कार नहीं षड्यंत्र है, धोखा है। मिट्टी परीक्षण का एक और काला चेहरा हमारे सामने प्रस्तुत होता है। आपने भूमि की ऊपरी सतह की नौ इंच स्तर की मिट्टी ली और उसका प्रयोगशाला में परीक्षण किया। उस परीक्षण रिपोर्ट में लिखा हुआ होता है कि आपकी भूमि में फास्फेट, तांबे, जस्ता, लोहा, मैग्नेशियम, बोरान या मानीबेडनम की कमी है इसलिये सूक्ष्म खाद्य तत्वों को बाजार से खरीद कर ऊपर से भूमि में डालिये और रिपोर्ट में यह भी लिखा होता है कि आपकी भूमि में कितना यूरिया, सुपर फास्फेट, डीएपी, पोटेशियम सल्फेट या मायक्रोन्यूट्रियंटस डालना है। वास्तव में यह सही है कि भूमि की सतह के ऊपरी नौ इंच स्तर में हो सकता इन खाद्य तत्वों की कमी हो, जो कमी रिपोर्ट में बतायी है लेकिन रिपोर्ट कहती है कि पूरी भूमि में कमी है। यह कैसे हो सकता है? आपने तो परीक्षण के लिये ऊपर की नौ इंच स्तर की मिट्टी ली उसके नीचे की मिट्टी आपने नहीं ली। तब हो सकता है कि बतायी गयी खाद्य तत्वों की कमी केवल इस नौ इंच मिट्टी में ही हो। उसके नीचे क्या है? यह रिपोर्ट को मालूम नहीं है क्योंकि कृषि वैज्ञानिकों ने सतह के नौ इंच स्तर के नीचे की मिट्टी के नमूने लिये ही नहीं तो यह रिपोर्ट ऐसा क्यों कहती है कि पूरी भूमि में कमी है? इसका मतलब यह है कि ये कृषि वैज्ञानिक हमें गुमराह करते हैं। वास्तविकता यह है कि जैसे-जैसे हम भूमि के अंदर उसकी गहराई में जायेंगे वैसे-वैसे खाद्य तत्वों की मात्रा बढ़ती जाती है। भूमि की ऊपरी सतह के नौ इंच स्तर के नीचे की गहराई की मिट्टी खाद्य तत्वों का महासागर है लेकिन निचली मिट्टी को तो कृषि वैज्ञानिकों ने नहीं जांचा तो पूरी भूमि में खाद्य तत्वों की कमी है यह दावा वह कैसे कर सकते हैं? इसका मतलब है कि मिट्टी का परीक्षण एक खतरनाक षड्यंत्र है। किसानों को गुमराह करने का और किसानों को बड़ी मात्रा में बाजार से रासायनिक खाद खरीदने के लिये बाध्य करने का यह एक सोचा-समझा पूर्व नियोजित अति विद्वतापूर्वक रचा हुआ भयावह राक्षसी मायाजाल है। साथियो, जरा इनसे खुद को बचाइये और उनसे पूछिये कि जंगल के पेड़ पौधों को किसी भी खाद्य तत्व की कमी क्यों नहीं है? भूमि अन्नपूर्णा है। यह मेरे दावे की पुष्टि देने वाले कुछ वैज्ञानिक प्रमाण आपके सामने रखने का प्रयास करता हूं। सन् 1924 में दो विश्व प्रसिद्ध मृदा वैज्ञानिक डा. क्लार्क और डा. वाशिंगटन इन दोनों को वर्मा सेल कंपनी ने भारत वर्ष में भेजा था और उन्होंने एक हजार फीट गहराई के हर छह इंच स्तर के नमूने लिये और उनका प्रयोगशाला में परीक्षण किया तो उनकी परीक्षण रिपोर्ट भी कहती है कि हर प्रकार की भूमि में सभी खाद्य तत्वों का महासागर है और उन खाद्य तत्वों की मात्रा जैसे-जैसे भूमि के अंदर जायेंगे वैसे-वैसे बढ़ती जाती है। भूमि अन्नपूर्णा है, भूमि में किसी भी खाद्य तत्व की कमी नहीं है। अगर मूलभूत विज्ञान यह सप्रणाम सिद्ध करता है कि भूमि अन्नपूर्णा है तो कृषि विज्ञान झूठ क्यों बोलता है? क्योंकि कृषि विज्ञान की आदतें हैं झूठ बोलने की। अर्थ:स्य पुरुषो दास:।
एक माह में संतृप्त होगी पीएच वैल्यू
एक एकड़ भूमि के लिये धनजीवामृत की मात्रा धनजीवामृत- भारतीय नस्ल की गाय का एक कुंटल गोबर, 2 किलो गुड़, 2 किलो दालों का आटा, डेढ़ सौ ग्राम खेत की मेड़ की मिट्टी व 5 लीटर गोमूत्र को मिलाकर सूखने के लिये छोड़ दें। सूखने के बाद डंडे से कूटकर छन्ने से छान लें। उसके बाद खेत की जुताई करके एक एकड़ खेत में फैला दें। खेत को फसलों के कास्ट (कचड़े) से ढक दें। जीवामृत- भारतीय नस्ल की गाय का 2 किलो गोबर, 2 लीटर गोमूत्र, दो सौ ग्राम गुड़, दो सौ ग्राम दालों का आटा, पचास ग्राम मेड़ की मिट्टी/सभी को चालीस लीटर पानी में सीमेंट या प्लास्टिक टैंक में घोलना है। तीन दिन बाद छन्ने कपड़े से छानकर एक ड्रम पानी में मिलाकर एक एकड़ में पानी के साथ बहाना है। इस पद्धति से खेत में अंतकोट जीवांश उत्पन्न हो जायेंगे। भारतीय गोवंश के एक ग्राम गोबर में 500 करोड़ जीवांश होते हैं तथा फरमंटेशन क्रिया द्वारा हर बीस मिनट में दोगुने हो जाते हैं। अत: एक एकड़ जमीन इस विधि से एक माह में मानक के अनुसार पूर्ण पीएच वैल्यू प्राप्त कर लेती है।
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