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यूपी में पुलिस का अरुणोदय

मुक्त विचार
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अखिलेश यादव ने अरुण कुमार झा को अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) बनाकर हैरत में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश कैडर के जितने आईपीएस अफसर वर्तमान में हैं, इस पद के लिए अरुण झा से ज्यादा बेहतर विकल्प सरकार के लिए कोई दूसरा नहीं था, लेकिन सपा में जो संस्कृति प्रचलित रही है उसको देखते हुए अरुण कुमार को यह ओहदा इसमें सौंपा जा सकता है, इसकी कल्पना भी नहीं की गई थी। हालांकि, मेरा शुरू से विश्वास रहा है कि काम करने में अखिलेश भले ही सुस्त हों, लेकिन नीयत में उनके खोट नहीं है और वे बेहतर व्यवस्था का निर्माण चाहते हैं। उन्होंने अरुण झा की पोस्टिंग एडीजी एलओ के रूप में करके मेरे जैसे लोगों की अपने प्रति आस्था को पुष्ट किया है।
मुझे स्मरण आता है जब अरुण झा गाजियाबाद के एसएसपी थे और मायावती मुख्यमंत्री थीं। मंडलीय समीक्षा के लिए मायावती उनके यहां पहुंचीं। उनके सीनियर अधिकारियों ने दबाव दिया कि वे आंकड़ों में संगीन अपराधों को कम करके दर्शाएं ताकि मुख्यमंत्री के कोपभाजन न बनें पर अरुण झा ने किसी तरह का समझौता नहीं किया। जिस दिन गाजियाबाद में मायावती को अपराध समीक्षा करनी थी उसी दिन जिले में एक बड़ी डकैती हो गई। अरुण झा ने इसको लिखवा दिया। मायावती ने इसे नालायकी मानते हुए अरुण कुमार को निलम्बित कर डाला पर उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं आई और सहर्ष उन्होंने बहिनजी का फैसला मान लिया।
राजनाथ सिंह जब मुख्यमंत्री थे। कानपुर में दंगा हुआ, जिसमें तत्कालीन एडीएम की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद स्थिति संभालने के लिए राजनाथ सिंह ने अरुण झा को एसएसपी के रूप में कानपुर भेजने का आदेश जारी किया। अरुण कुमार ने यह प्रस्ताव शुरू में अस्वीकार कर दिया। उनकी मुख्यमंत्री से सीधी बातचीत हुई। अरुण कुमार ने कहा कि मैं भाजपा के लोगों के कहने से काम नहीं करूंगा और भावनात्मक कारणों से होने वाले दंगे के आरोपियों व सामान्य तौर पर अपराध करने वालों की कैटेगरी में मेरी निगाह के अनुसार फर्क है। दंगे के आरोपी अपराधी नहीं जज्बाती होते हैं। इस कारण उन्हें अपराधी के बतौर ट्रीट नहीं किया जाना चाहिए चूंकि यह धारणा संघ के लोग स्वीकार नहीं कर पाएंगे, जिससे मैं काम नहीं कर पाऊंगा। राजनाथ सिंह ने जवाब में अरुण झा से कहा कि आप जैसे काम करना चाहें करें, पार्टी के लोगों का कोई दखल और दबाव मैं मंजूर नहीं करूंगा। इसके बाद अरुण झा कानपुर आए। उन्होंने किसी मुसलमान को सूली पर नहीं लटकाया। उनके साथ पूरी हमदर्दी बरती। दंगा तो कंट्रोल हुआ ही, बेकनगंज में पहली बार पीएसी की चौकी मुसलमानों के समर्थन से सहर्ष रूपम नारायण सत्यम टॉकीज के पास बनी। मुस्लिम इलाकों में अरुण कुमार का शानदार अभिनंदन हुआ। यह धारणा खंडित हुई कि मुसलमान तो पैदाइशी दंगाई और दंगा कराने वालों के हिमायती होते हैं। मुसलमानों के किरदार की नई छाप अरुण कुमार के प्रति उनके समर्थन से उजागर हुई।

समझौता न करने की पहचान रखने वाले अरुण कुमार को अखिलेश ने स्वयं हस्तक्षेप करके एडीजी एलओ बनाया, जिससे जाहिर होता है कि अखिलेश प्रदेश में साफ-सुथरी व्यवस्था चाहते हैं और गुंडागर्दी व दबंगई करने वाले लोग उन्हें कदापि बर्दाश्त नहीं हैं। यह एक अच्छा संदेश है। इससे ईमानदार पुलिस अधिकारियों का मनोबल बढ़ा है। अब अखिलेश को अरुण कुमार को फ्री हैंड करना पड़ेगा। उनके डीजीपी शर्मा साहब तो गजब कर रहे हैं उनकी पसंद के आधार पर नियुक्त किए गए जिला पुलिस प्रमुखों ने थानों का रेट कई गुना बढ़ाकर इतना कर दिया है कि हर थानेदार उसकी पूर्ति की हामी नहीं भर पा रहा। रिश्वत लेने के बावजूद उनका जमीर मरा नहीं है, जिसकी वजह से वे लूटपाट नहीं कर सकते। भले ही एसपी की ऐसी मंशा हो या डीजीपी की। ऐसे दरोगा चार्ज की योग्यता से खारिज किए जा रहे हैं। इस कारण यादव होने के नाते अपनी ही सरकार को बदनाम कर रहे जगमोहन को जिस तरह से उन्होंने रिप्लेस किया है वैसे ही उनको डीजीपी को भी सबक सिखाना होगा ताकि वे बेहया होकर लूटपाट करने वाले जिला पुलिस प्रमुखों से किनारा करने की बात मानने को तैयार हो जाएं।

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