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एक आम नागरिक की सोच

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हालात देश के ऐसे हैं
जानते हो
कल पूछा मुझसे किसी ने
मैंने उचक के बेतुकी निगाहों से देखा
एक हलकी सी हामी भरी और चल पड़ा
अरे मुझे इस सबसे क्या लेना देना
ज़िन्दगी में मुकाम इसलिए तो नहीं बनाया
ऐसी बातों में सर खपाता फिरूं
सर में दर्द हो गया
जाने ऐसे कौन से कर्म किए की सुबह सुबह ये मिल गए
खुद तो बेकार हैं मेरा दिन भी खराब कर गए
बड़ी मुश्किल से ज़िन्दगी में खुशियाँ आयीं हैं
कहीं खुशियों में खलल न पड़ जाए
देश के हालात पहले कौन से अच्छे थे
एक मैं ही तो बोलने को हूँ नहीं
और एक मेरे बोलने से आखिर क्या होगा
बस जो समय मस्ती में कट सकता था वो निकल जाएगा
जिन पलों में दोस्तों संग ठहाके लगाता
थोडा इधर उधर की बतियाता
कितना आनंद मिलता है इन सब में
जीवन में इससे बढ़के भी और कुछ है क्या
ज़रूर वो मेरा वोट अपनी पार्टी के लिए चाहता होगा
या बम धमाकों में इसका भी कोई मारा गया होगा
इसमें मैं क्या कर सकता हूँ
मेरे पीछे क्यूँ पड़ा ?
घोटाले मैंने तो नहीं किये
बस छूट गयी मेरी सो अलग
कल से और जल्दी निकला करूँगा
कुछ समय ऐसे लोग भी ले सकते हैं

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