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मैं दोषी नहीं था

बोल कि लब आजाद हैं...
बोल कि लब आजाद हैं...
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पहली बार जब मैं जेल गया
मेरे हाथों में
एक खिलौने का डब्बा था
उसमें कुछ कंचे थे
गली में पड़ा मिला
एक जंग खाया चाकू था
कुछ बिजली के फ्यूज हुए तार थे
और तब मैं यह भी नहीं जानता था
कि आतंकवादी होने का मतलब क्या होता है

दूसरी बार जब जेल गया
तो मैं कुछ बड़ा हो गया था
और एक अजीज दोस्त से
बतिया रहा था
एक नक्सली की पुलिसिया हत्या के बाद
अखबार में छपी खबर और तस्वीर के बारे में
तब मैं नहीं जानता था नक्सली होने का मतलब
और यह भी नहीं कि नक्सली शब्द उचारना,
जबान पर लाना कोई जुर्म है

तीसरी बार जब जेल गया
तब मैने बिल्कुल नहीं जाना
कि मैं जेल क्यों गया
इतना मालूम चला था अखबारों से
कि उनका प्रचार कामयाब हुआ
और पूरा देश घृणा करने लगा है मुझसे

हालांकि, जेल में मिलने आती
अपनी नन्ही बच्ची की आंखों में
मैं देख लिया करता था अपना चेहरा
उसकी आंखें बोलती थीं
मैं दोषी नहीं था

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