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हमारा जन प्रतिनिधि

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मुझे याद नही है कि कभी जन प्रतिनिधि विधायक , सांसद या मंत्री जी किसी से भी मैंने हाथ मिलाया हो, ऐसा नही है कि इसमें मेरी शिथिलता है बल्कि यह तो जन प्रतिनिधियो के विशाल हृदय का सूक्ष्म दर्शन मात्र है। चुनाव से पूर्व इन जन प्रतिनिधियो को कुछ लोगो के साथ गलबहिया करते देखा अवश्य है फिर उन्ही गलबहिया परम दिव्य देह व्यक्तित्व को चुनाव के बाद कोसते हुये भी देखा है, माननीय प्रतिनिधियो के प्रति असंतोष व्यक्त करते देखा है, आखिर क्यों ? यह मृदुभाषी व्यक्तित्व चुनाव के बाद अदृश्य हो जाता है समाज के मध्य से। कौन से नये संस्कार आ जाते हैं सत्ता पाने के बाद कि जैसे समाज ससुर की भूमिका में और यह बहू की भूमिका में आ जाते हैं, शर्म से मुंह नही दिखाते किसी को या फिर किसी गुप्त रोग का शिकार हो जाते हैं शायद जो समाज में न फैले इस भय से यह स्वयं को छिपाते है समाज से। कई सम्भावनायें प्रकट होती रहती है जनप्रतिनिधियो के ऐसे व्यवहार से, चुनावी बरसात आते ही टर्र टर्र करने वाले मेढक की प्रतिभा ग्रहण कर लेते हैं फिर चुनाव समाप्त होने के बाद चिड़ियाघर के जीवो की तरह दुर्लभ हो जाते है निशुल्क टिकट के बिना देखने को भी नही मिलते आम तरह से आम लोगो के मध्य। हमारे बीच टूटी चप्पल फटा पायजामा पहनकर घूमने वाले चुनाव के समय पैर छूकर गले लगाकर हाथ मिलाकर सबका आशीर्वाद और सहयोग मॉगने वाले चुनाव के बाद कैसे वी०आई०पी० आडम्बर में घिर जाते हैं और जिनके सहयोग और आशीर्वाद से कुर्सी मिली उनके मध्य असुरक्षित हो जाते हैं, अंगरक्षक साथ होते हैं उनकी रक्षा के लिये कम हमें भय दिखाने के लिये ज्यादा। वाहनो की भरमार हो जाती है हमारी आवश्यकता के लिये नहीं सड़कों पर उनका नाम रोशन करने के साथ असहायों को कुचल देने के लिये। जिस सड़क को सही बनवाने के नाम पर चुनाव की यात्रा सफल होती है उसी सड़क पर बड़ी शान से वातानुकूलित वाहन में बैठकर घूमते हुये निकल जाते है और सड़क आशान्वित निगाहो से बस उड़ती हुयी धूल को देखकर शान्त हो जाती है, गड्ढे भी जान लेते हैं अभी दवा मरहम पट्टी का समय नही आया है और संतोष करके असहाय संसाधन रहित मानवो को चुटकी काटने में व्यस्त हो जाते हैं। यह चरित्र है हमारे जन प्रतिनिधियो का समाज के मध्य, क्या कभी सुधार होगा इनके व्यक्तित्व में जब जनता गर्व से कह सके हमारे प्रतिनिधि जैसा कोई नहीं। कब आयेगा यह सुखद पल या स्वप्न बन कर रह जायेगा.

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