Menu
blogid : 20079 postid : 1092852

आप स्वच्छ हैं भ्रम से मुक्त हो

social
social
  • 50 Posts
  • 141 Comments

जितना आप दोनो आंखों से देखते हैं उतना ही एक आंख से भी दिखेगा, किन्तु अक्सर स्वार्थ के शिकार व्यक्तित्व को दोनो आंखे होते हुये भी एक ही आंख से दिखने लगता है जिसे वह देखना चाहता है, दूसरी आंख का प्रयोग वह करना ही नही चाहता क्यूंकि उसे भय रहता है कि शायद सच्चाई को सही नापतोल के अनुसार निर्णय लेने में असुविधा होगी, यह अज्ञानता ही कही जायेगी। प्रकृति ने स्वभावतः दो आंखो का पुरस्कार दिया है और उसका उद्देश्य भी स्पष्ट है कि आप समान व्यवहार कर सकें लेकिन आपने तो प्रकृति का विरोध करने का संकल्प ले लिया है जैसे कि बाहरी वातावरण में वृक्षों को काटने का, अनावश्यक रूप से ग्लोबल वार्मिंग में सहायक तत्वो को विस्तारित करने का, उसी प्रकार स्वयं में भी बदलाव चाहते है सबकुछ देखकर अनदेखा करने की नीति अपनाकर। यहॉ यह भूल जाते हैं कि सृष्टि के रचयिता आप नहीं है और न ही आपका अपनी देह और विचारो पर अधिकार है फिर यह कटुता, द्वेष भावना जैसे चरित्रो को अपने अन्दर स्थान क्यूं दिया है। किसी दूसरे के मकान में आप रहने जाते हैं तो वह आपसे किराया मॉगता है और आप किराया देकर उसे मकान मालिक का स्थान देते हैं और स्वयं उसकी शर्तो के अनुरूप मासिक किराया देते हुये किरायेदार बन जाते हैं, फिर इन विकारों के स्वामी आप क्यूं बने हैं यह तो आपको कोई किराया नही देते और आपके द्वारा शरण देने के बाद यह अपनी शर्तो का पालन आपसे ही कराते हैं, क्या यहॉ आपका मस्तिष्क शून्य हो जाता है जो यह अन्तर नही कर पाता कि हमने जिसे शरण दिया वह हमारा शासक कैसे बन सकता है ? यही विचार शून्यता आपको गुलाम बना लेती है और आप समाज के शत्रु स्वयं बन जाते हैं, जैसे हमारे पूर्वजों द्वारा विदेशियों को शरण देने का प्रमाण पीढ़ी दर पीढ़ी गुलामी की जंजीर पहनाता गया किन्तु शरण देने वाले उससे मुक्त नही हो सके, जब विचारो की ज्योति प्रबल हुयी तब गुलामी की जंजीर को काटा जा सका किन्तु अंधेरा फिर भी रह गया किसी कोने में जिसे बुराई के जाले ने जकड़ लिया और हम मानसिक रूप से गुलाम बन गये अपने ही देश में सत्ताधारी काले अंग्रेजो की विभाजन शैली से युक्त कूटनीतियों का। ऐसे ही मन के विकार हैं वह आपको स्वतंत्रता तभी देंगे जब आप उनका शमन करेंगे अपने ज्ञानरूपी ज्योति से, इसे कोई दूसरा नही दूर कर सकता क्यूं कि दूषित विचारो के स्वामी आप बने हैं आपको ही अपना घर रिक्त कराना होगा इन विकारों से, यही अज्ञानता से दूर रहने में आपकी सहायता कर सकता है। इसके लिये आपको किसी मन्दिर में बैठकर भजन नही करना है और न ही भगवा चोला पहनना है, बस यह ध्यान रखना होगा कि जैसे प्रतिदिन स्नान करते हैं शारीरिक शुद्धता के लिये ऐसे ही मन को स्नान कराईये शुद्ध विचारों से, शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिये शरीर को मलना आवश्यक है तो मन का मैल भी विचार रूपी सुगन्धित साबुन से मलने के बाद ही विकार रहित होगा, जिस दिन आपके मन में किसी अन्य के प्रति दूषित विचारो का ध्यान नही आता समझिये आप शुद्ध है विचारों से और समाज में आपके लिये उपयुक्त स्थान स्वतः प्राप्त हो जायेगा जिसके लिये आप विकारो का सहारा लेकर स्वयं को दूषित करते हैं। दोनो आंखों का प्राकृतिक अनमोल पुरस्कार का उद्देश्य स्वतः बिना भेदभाव के निर्णय लेने में सक्षम हो जायेगा और एक समानता से सबकुछ स्वच्छ और सुन्दर दिखाई देगा, स्वयं को ऐसे ही स्वच्छ मानकर भ्रम न पाले जब तक मन दूषित है आप स्वच्छ नही हो सकते, स्वयं से झूठ बोलने का स्वांग छोड़िये क्यूंकि आप भ्रमित होकर स्वयं को स्वच्छ समझते है और समाज आपकी भावनाओ को समझकर आपके विषय में निर्णय लेता है, यह अवश्य ध्यान रखना होगा।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh