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समाज के सबसे घ्रणित श्रेणी में रखे जाने वाले दहेज से तो सभी परिचित होंगे, एक ऐसी प्रथा जो खुशियो से ज्यादा दुःख का उपहार देती है. समाज के प्रतिष्ठित, धनाढ्य व्यक्तियों के लिए अपनाया जाने वाला यह शौक मध्यम, निम्न वर्ग के लिए किसी श्राप से कम नहीं,जिसमे प्रत्येक वर्ष दहेज के लोभी द्वारा दी जाने वाली यातनाओ से कितने जीवन प्रारम्भ होते ही समाप्त हो जाते हैं. आखिर शादी विवाह में दहेज की ऐसी मान्यता क्यूँ ? यह तो सरासर सौदेबाजी हुई कि अमुक मूल्य पर वर पक्ष अपना सम्मान वधु पक्ष द्वारा दहेज में प्राप्त धन के लिए गिरवी रख देता है. इसके बाद भी वर पक्ष नूतन वधु से सम्मान और संस्कारो की अपेक्षा रखता है, विचार किया जाय तो यह स्थिति कितनी हास्यास्पद है कि जिसके लिए वर पक्ष अपना सम्मान वधु पक्ष को सम्मान सौंप चुका है वह वधु किस प्रकार सम्मान को सुरक्षित रख सकेगी जब दहेज में वह रसोई चूल्हा से लेकर अपने पहनने,ओढने, सोने का प्रबंध स्वय्म्लेकर आई है अर्थात वह स्वनिर्भर है फिर वह क्यों सम्मान करे ऐसे दहेज लोभियो का जिनके पास वधु के आने से पूर्व यह सब व्यवस्था तक नहीं थी. बाद में वधु को गृह विभाजन का कारण कहे या फिर उद्दंड स्वभाव वाली घमंडी कहे कोई फर्क नहीं पड़ता क्यूँ कि वर पक्ष ने थोड़े से दहेज के लिए अपना सम्मान उसकी दृष्टि में निम्न स्तर का कर दिया है.
यह दहेज वास्तव में लेन देन के लिए किस प्रयोजन हित में प्रयोग किया जा रहा है इसका ज्ञान न तो दहेज लेने वाले को है और न ही दहेज देने वालो को. क्या समाज में अपने रसूख को दिखाने के लिए इसका प्रयोग होता है या फिर दहेज लोभियो के पास दहेज मे मिलने वाले संसाधन नहीं होते,कह पाना सरल नहीं है किन्तु इतना स्पष्ट है कि दहेज लेकर भी सुख नहीं मिलता और दहेज देकर भी सुख मिलने की आशा करना व्यर्थ है जिसके एक नहीं अनगिनत परिणाम देखने सुनने को मिलते रहते हैं. दहेज में आवश्यक तो नहीं कि धन, महंगी गाडिया, गहने अन्य संसाधन का ही लेन देन किया जाय, यह भी तो हो सकता है दहेज के लिए जुटाए गए धन से वर वधु के द्वारा गरीबो को वस्त्र दान किये जाये, अनाथ आश्रम के आश्रितों को आवश्यक संसाधन भेंट कर दिए जाय, भूखो को भोजन करा दिया जाय. दिव्यांगो की सहायता की जाय, बहुत कुछ किया जा सकता है जिससे दहेज का कलंक समाज से मिट कर वर वधु पक्ष को सामाजिक स्तर पर सम्मान दिला सकता है.
देश के कई स्थानों पर सूखा पड़ जाने की स्थिति उत्पन्न हो गयी है, कितने प्राणी ऐसे हैं जो पानी की तलाश में जीवन समाप्ति की तरफ है और कितने नाली के पानी का इस्तेमाल करके अपना जीवन व्यतीत करने को विवश है, क्या कारण हो सकता है इसका जो सूखे जैसी स्थिति का शिकार हो रहा है देश ? बहुत ही स्पष्ट है कि दिन रात पृथ्वी से वृक्षों की कटाई होना इसका मुख्य कारण है जिसके प्रतिफल एक भी वृक्ष लोग लगाने को तैयार नहीं. क्या यह सूखा और भुखमरी की स्थिति अपने बच्चो को भी देकर जायेंगे जो दिन रात मेहनत करते हुए धन संपत्ति का अर्जन कर रहे हैं उन सबका क्या होगा जब पृथ्वी पर जल ही नहीं रहेगा. इसमें दहेज की मुख्य भूमिका हो सकती है यदि दहेज में व्यय होने वाले धन से निरंतर वृक्ष लगाये जाय तो पुनः पृथ्वी हरी भरी जलयुक्त जिसमे समय पर वर्षा और अच्छी फसल पैदावार वाली हो सकती है जिसे बनाने में आपका सहयोग मूल्यवान होगा. दहेज का धन क्षणिक है शीघ्र ही नष्ट हो जायेगा किन्तु इससे किये जाने वाले सामाजिक एवं पर्यावरण के कार्य दीर्घकाल तक यश, वैभव और सुख प्राप्त करने का कारण बन सकता है.
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