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आग न बुझेगी जो एक बार जल चुकी है.
नीति बदलनी है जो कुरीति बन चुकी है.
आरक्षण मिले सभी को एक समानता से,
आर्थिक बनाओ इसे गरीबी असमानता से,
कब तक लडेंगे लोग धर्म जाति के नाम पर,
समानता रखो अखंड एकता के नाम पर,
यह आरक्षण नहीं गुलामी की जंजीर है,
कैसा होगा भारत कैसी तस्वीर बन चुकी है,
आग न बुझेगी जो एक बार जल चुकी है.
नीति बदलनी है जो कुरीति बन चुकी है.
मत बनो विकलांग आरक्षण सहारा लेकर,
बनो तुम बुद्धिमान इससे किनारा लेकर,
अच्छा नहीं है विकास को बढ़ने से रोकना,
भाईचारा संस्कृति अपने कदमो से रौंदना,
समझो अभी इसे यह बर्बादी की नजीर है,
तोड़ कर गिरा दो रिश्तों में दीवार बन चुकी है,
आग न बुझेगी जो एक बार जल चुकी है.
नीति बदलनी है जो कुरीति बन चुकी है.
हिसाब देना होगा एक एक गलतियों का,
परिणाम बुरा होता है सदैव गलतियों का,
मत भागो ऊंचाई की तरफ नीचे भी देख लेना,
मत मारो गरीब को इस मिट्टी से न फेंक देना,
कराहती है भारत माँ देख बिगड़े हुए सपूतो को,
मत बांटो मुझे और मेरी अस्मत पहले भी बंट चुकी है,
आग न बुझेगी जो एक बार जल चुकी है.
नीति बदलनी है जो कुरीति बन चुकी है.
लगायी आग जिसने वह छिपा परदे की ओट में,
तुम भटक रहे हो व्यर्थ ही आरक्षण की चोट में,
कैसा विकास होगा जब लोग पिछड़े बन रहे हैं,
सीखो विदेशियों से वह कैसे आगे बढ़ रहे हैं,
रोना नहीं दोबारा फिर से कमजोर गुलाम बनकर,
बनो देश के सिपाही रहो आरक्षण से बचकर,
भूमि थी यह विद्वानों की अब मिसाल बन चुकी है,
आग न बुझेगी जो एक बार जल चुकी है.
नीति बदलनी है जो कुरीति बन चुकी है.
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