Menu
blogid : 20079 postid : 816759

धर्म का ज्ञान और सफल जीवन

social
social
  • 50 Posts
  • 141 Comments

विश्व का सबसे बड़ा धर्म मानव धर्म है, जिसकी रक्षा करने में मानव स्वयं को असहाय महसूस कर रहा है. कारण कोई नया नहीं है, बस हमारे अंदर छिपी स्वार्थ, लालसा की भावना ही हम सबको धर्म के वास्तविक ज्ञान से दूर कर रही है, हम उपासक तो हैं लेकिन उपासना करने से बचते है, हम श्रद्धालु तो हैं लेकिन श्रद्धा के नाम पर औपचारिकता मात्र ही करते हैं, हमारे अंदर आस्था तो है लेकिन वो आस्था स्वयं को भ्रमित करने के लाभ मात्र ही सीमित है, जब हम स्वयं से असत्य बोल सकते है, सत्य को छिपा सकते है तो किस प्रकार से धर्म की रक्षा होगी, हमारे द्वारा लिए गए असत्य का सहारा और जब उसमे परिवार भी शामिल हो जाये तो “सोने पे सुहागा” जैसी स्थिति हो जाती है, ऐसी दशा में हम कैसे कर रहे हैं धर्म की रक्षा.हमें धर्म का वास्तविक ज्ञान नहीं है बस एक दूसरे को देख कर, एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में हम सब भूलते जा रहे हैं, आपके पुत्र ने देखा है आपको झूठ बोलते फिर वह कैसे और क्यों सत्य बोलेगा आपसे और समाज से. आपने अपने ही बच्चो के सामने अपने ही माता पिता का निरादर किया है, अपमान किया है फिर कैसे आपके बच्चे आपको वो सम्मान दे सकेंगे जिसके योग्य आप स्वयं को समझ रहे हैं. विचार करना आवश्यक है की हम अपने ही हाथो अपने ही धर्म का नाश करते हुए किसी और की तरफ ऊँगली उठा देते हैं, क्या इससे सच बदल जाता है, बदल भी जायेगा तो कितनी देर के लिए, क्या आपकी नजरो की तरह या फिर सभी उस दृष्टि से देखना प्रारम्भ कर देंगे जैसा आप दिखाना चाहते हैं. यह सत्य नहीं है और न हो सकता है, असत्य हमारे जीवन में एक गहरा स्थान बना चूका है जिसमे सत्य का पौधा लगाने में समस्या तो है ही साथ ही लगाये गए पौधे से सत्य के फूल और खुशबु की प्राप्ति होगी यह कहना कठिन है. किसी गाय को कभी दो रोटी खिला दी तो क्या वह धर्म है, नहीं सभी गायों की रक्षा करना हमारा धर्म होना चाहिए. किसी भिखारी को पांच या दस रुपया देकर हमने बेरोजगारी को निमंत्रण तो दिया, लेकिन क्या ये धर्म है, अब ऐसे समय में यदि हमने भिखारी को पैसे देने के स्थान पर किसी गरीब को एक वक़्त का भोजन कराया होता तो अवश्य ही यह धर्म होता. ठण्ड के मौसम में गरीब का परिवार ठिठुरता रहता है, जिनसे ठण्ड की मार सही नहीं जाती उनकी मृत्यु हो जाती है और जो संघर्ष करते रहते हैं स्वयं का जीवन बचाने में वह जीवित तो रहते हैं किन्तु उनकी स्थिति किसी मृत के समान ही रह जाती है, सुख सुविधाओ के अभाव में. हमें किसी भिखारी को धन देने के स्थान पर किसी गरीब को भोजन करने या फिर उसके पहनने के वस्त्रो की तरफ ध्यान देना अवश्य ही धर्म होगा. देश की जनसँख्या जो धीरे धीरे विकास करते हुए आज १ अरब २५ करोड़ पहुंच गयी है, इसमें सभी धर्मो के लोग शामिल है किन्तु वास्तविक रूप से धर्म का ज्ञान और परिभाषा जानने वाले अल्प ही होंगे. भारत में धार्मिक स्थलों की कमी नहीं है, यहाँ भी धर्म गुरुओ की संस्था है जिसमे मात्र आस्थावान, श्रद्धालु भक्तो से धन वसूलने का कार्यक्रम ही चलता है, भक्तो से हजार से लेकर लाखों रुपया तक वसूल जाता है धर्म के नाम पर, जैसी भक्त की धन संपत्ति वैसा ही गुरु जी का आशीर्वाद,क्या यह धर्म है, धर्म तो निस्वार्थ होता है, धर्म गरीब आमिर की पहचान नहीं करता धर्म तो एक है सभी के लिए समान है. मंदिर में जायेंगे तो पुजारी धर्म और पाप का भय दिखा कर अपनी दक्षिणा प्राप्त करेगा, वास्तव में धर्म के नाम पर व्यापार करके अपनी जेब भरने वाले आपको धर्म का भय दिखा कर लूटते हैं, स्वयं पाप करके आपको धर्म के नाम भयभीत करने वाले स्वयं नहीं जानते धर्म का वास्तविक अर्थ, ऐसे लोगो से दूर रहना ही उचित होता है. आतंकवाद की तरफ ध्यान दे तो धर्म की परिभाषा का नया रूप ही देखने को मिलता है, आतंकवादी जिसे कुछ अराजक तत्व मात्र गुमराह कर देते हैं वह अपना धर्म समझता है की जिहाद की लड़ाई में खुद को मिटा देना, ऐसे ही संस्था को शरण देने वाले पाकिस्तान की हालत यह है की आज पाकिस्तान देश ही सुरक्षित नहीं है कब, कहा और कैसे आतंकवादी हमला होगा इसका कोई ज्ञान उनको नहीं है, आज पाकिस्तान द्वारा लगाये गए वृक्ष से उगने वाले फल का स्वाद भी पाकिस्तान को मिल रहा है, “जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से पाय”. वेदो में, पुराणो में, शास्त्रो में बस एक ही बात मुख्य है- “धर्मो रक्षति रक्षितः” धर्म की रक्षा करने से ही हमारी रक्षा होती है, हम धर्म की रक्षा करने में ही मूक बने हैं फिर हम स्वयं को सुरक्षित माने भी तो कैसे ? धर्म को जान कर धर्म के मार्ग पर चलने वाले ही वास्तविक रूप से सफल होते है, लोभ और छल से धन प्राप्त कर मानव ही मानव को तुच्छ समझने वाला अवश्य ही धनी बन जाता है किन्तु धर्म का ज्ञान न होने से शीघ्र ही पतन के मार्ग में आकर स्वतः समाप्त हो जाता है. पर सम्पत्ति से आप धनी तो बन सकते हैं किन्तु धर्म के मार्ग पर चलकर धन प्राप्त कर स्वयं को सुखी समझने वाला ही वास्तव में सफल होता है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh