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ब्राह्म्ण केवल जाति नहीं

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ब्राह्म्ण केवल जाति नहीं है और न ही धर्म के प्रचार का साधन। ब्राह्म्ण का अर्थ बड़ा मन अर्थात् मन की सात्विकता के साथ प्राकृतिक संदेशों से प्राप्त होने वाले ज्ञान को संग्रह करने वाला ब्राह्म्ण हो सकता है। ब्राह्म्ण परशुराम है किन्तु हत्यारा नही जो प्रतिदिन परशुराम जी व उनके फरसे का भय लोगो को दिखाकर समाज को अनुयायी बनाने के लिये उद्धृत हो। ब्राह्म्ण वह नही जो माथे पर तिलक और कॉधे पर जनेऊ धारण करता है बल्कि ब्राह्म्ण वह है जो सृष्टि की रक्षार्थ संकल्पबद्ध होकर अपने ज्ञानरूपी बल से लोगो का पथ प्रदर्शक बनता है। इस प्रकार अनावश्यक भ्रम को स्वयं के अन्दर रोपित करके अभिमान का वृक्ष उगाने वाला ब्राह्म्ण नही हो सकता, इसके स्थान पर लोगो के अन्दर का अभिमान समाप्त करने की क्षमता रखने वाला चाणक्य ब्राह्म्ण हो सकता है। इतिहास से सीखना आवश्यक है इतिहास पढ़कर उस पर नित नयी प्रतिक्रिया करके विश्लेषक बनने वाला श्वेत हंस के स्थान पर बगुला ही कहा जायेगा, फिर भ्रम फैलाकर स्वयं से झूठ बोलने का क्या अर्थ रह जाता है जिस झूठ की छवि बारम्बार हमारे मस्तिष्क पर पुनरावृत्ति करती रहती है यह धर्म से भटकने का मार्ग है जिस पर चलने वाला ब्राह्म्ण नही कहा जा सकता। ब्राह्म्ण समाज के निर्माण के लिये पूजनीय होना चाहिये दान दक्षिणा की लोलुपता में गलत ज्ञान देने वाला ब्राह्म्ण भी दण्ड का पात्र होता है। ब्राह्म्ण का ज्ञान अहंकार नष्ट होने में है जैसा कि राजा विश्वजीत के साथ हुआ था वह जब अहंकार पर विजय प्राप्त कर सके तब उन्हे स्वर्ग में जाने की शक्ति प्राप्त हुयी और वेदो का ज्ञान हुआ और महर्षि विश्वामित्र कहलाये। दो चार बाते इधर उधर से सुनकर राजनीति करने वाला ब्राह्मण नही हो सकता क्यूंकि ब्राह्म्ण किसी राज्य प्रदेश का शासक बनने का लोभी नही हो सकता बल्कि शासन को समृद्ध बनाने वाला कुशल नेतृत्व की योग्यता रखने वाला ही ब्राह्म्ण हो सकता है। मन की शुद्धता और कर्मकाण्डों का सही ज्ञान रखने वाला ही ब्राह्म्ण हो सकता है। गलत टिप्पणी करके मन को दूषित करने वाला ब्राह्म्ण मृतक के समान होता है जो जीवित रहते हुये भी मुर्दे से उठने वाली दुर्गन्ध को समाज में फैलाने का कार्य करता है अर्थात वह ज्ञान के स्थान पर अज्ञान को समाज में फैलाने वाला सामाजिक शत्रु है, ऐसे शत्रुओं से ज्ञान प्राप्त करने वाला भी नरकगामी होता है। ब्राह्म्ण को स्वयं की मर्यादा के साथ समाज का हित ध्यान में रखना ही उच्च पद पर आसीन कर सकता है, जिसे सफलता पूर्वक शुद्ध कर्मों के द्वारा प्रत्येक ब्राह्म्ण को पालन करना आवश्यक है।

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