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किसी भी तस्वीर की सुन्दरता उसमें भरे रंगो के साथ ही संदेश देती कलात्मक चित्रण से होता है। तस्वीर में बनायी गयी छवि जो कोई न कोई संदेश के रूप में सजीवता प्रदान करती है चित्र को अर्थात् तस्वीर का आधार उसमें भरा रंग नही बल्कि संदेश प्रस्तुत करती उसकी सजीवता होती है। ऐसे ही हमारे राष्ट्र हमारा गौरव भारत की तस्वीर वर्तमान में विभिन्न रंगो से सजीवता प्रदान करती दिखाई पड़ती है किन्तु जो कलात्मक चित्रण दिखाई देता है वह तस्वीर के अनुरूप नहीं है जैसा कि बनी हुयी तस्वीर में जबरदस्ती रंगो का भरा जाना जिससे पुरानी छवि उसमें सम्मिश्रण होकर विलुप्त हो रही है और पुनः जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है उसमें द्वेष, कटुता, असंतोष, अज्ञानता, लोलुपता, स्वांग चरित्र का चित्रण स्पष्ट दिखायी दे रहा है।
भारत की ऐसी ही तस्वीर का परिचय हमारे समाज में एक दूसरे के प्रति असमानता का भाव प्रकट करती है तो कहीं दूसरा चित्र मुख से निकले शब्दो के विपरीत चेहरे के भाव को प्रदर्शित करता है। कहीं किसी के सम्मान में आगे बढ़ने वाले अपना सम्मान खो रहे है तो कही अपना सम्मान बचाने में दूसरे को अपमानित करने में गर्वित हो रहे हैं, सनातन के सम्बन्ध में विवेकशून्य होकर सनातन को व्यापारिक माध्यम बनाया जा रहा है तो कहीं क्षण भर में विचारों में गौरक्षा तो कभी देशभक्ति का जज्बा हिलोरे मारने लगता है जिसके लिये, तभी अन्य विचार धर्म जाति में उसे अपने शिकंजे में जकड़ लेता है और वह गौरक्षा, देशभक्ति को छोड़कर अनाप शनाप प्रदर्शन में लग जाता है, परिणाम वही आया जो किसी भी व्यक्ति को भटकने के साथ प्राप्त होता है अर्थात् शून्य। यह है भारत की वर्तमान तस्वीर का धुंधला सा चित्रण जबकि पूरी तस्वीर को स्पष्ट रूप से अवलोकित किये जाने पर इससे भी गन्दा और भयानक चित्रण दिखाई देगा, कौन है वह कलाकार जो ऐसे चित्र में रंग भर रहा है जिसमें हिंसात्मक चरित्र को ज्यादा स्थान दिया गया और सात्विक विचारो का चित्रण छिपा दिया गया। सत्य को जानते हुये भी सत्य को आवरण से कौन ढक रहा है, हिंसात्मक विचारों के लिये कौन प्रेरित कर रहा है, वह कौन है जो स्वयं से असंतुष्ट होकर दूसरों को गलत बता रहा है, स्वयं किसी वस्तु को खोकर दूसरे से वह वस्तु कौन छीन रहा है, कोई तो है जो अपनी पहचान गवॉकर दूसरे की पहचान से खेल रहा है, आखिर कौन ?
इस चित्रण के पीछे कौन है इस सवाल का जवाब जितना सरल है उतना ही कठिन है इसे स्वीकार करना, किन्तु स्वीकार तो करना ही होगा क्यूं कि सत्य से दूर भागना अज्ञानता की ओर ले जाता है जो किसी भी प्रकार से सही नही कहा जा सकता। ऐसे चित्रो को कलात्मक रूप देने वाले हम हैं, हमारे कुत्सित विचार ही हैं जो ऐसे चरित्रो को जन्म देते हैं किन्तु स्वयं इससे अंजान हैं, आखिर कैसे ? यह हमारे अंदर की कुंठा का परिणाम है जो भिन्न भिन्न मार्गो पर विविध चरित्रो का भान हमें कराता है और हम क्षण प्रतिक्षण कुंठा के वशीभूत होकर स्वयं को सही और अन्य सभी को गलत समझते हैं। शीघ्र ही इसका निदान किया जाना चाहिये यह घातक परिणामकारी है इस पर अंकुश न लगाने का परिणाम स्वयं को क्षति पहुंचाना है। विचारों में श्रेष्ठता का स्थान सदैव उच्च होना चाहिये “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः”। देश को आवश्कता है आधुनिक विकास की, आधुनिक तकनीक की और हमारे अन्दर उच्च विचारों की जिससे भारत को मजबूत स्तम्भ प्राप्त हो सके, व्यर्थ की कुंठा के स्थान पर सद्विचारों के रंग से राष्ट्र का गौरव कलात्मक चित्रण बनाया जाना चाहिये यही राष्ट्रहित में स्वच्छ योगदान है।
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