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भारत देश जिसकी महानता के आगे समस्त विश्व आज भारत के साथ सम्बन्ध बनाकर प्रगति करना चाहता है अपने देश के लिये। ऐसे भारत देश में घरेलू पक्ष के कई भाग हो जाने पर विश्व में क्या संदेश जायेगा इससे दूर हट कर सोचने वाले भारत में कुछ मसीहाओ का दुर्प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जहॉ देश को समाप्त कर देने वाली नियति रखने वाले याकूब मेमन को फॉसी की सजा न दिये जाने का पुरजोर विरोध किया जा रहा है, आखिर क्यों ?
याकूब रजाक मेमन का जन्म 30 जुलाई 1962 को महाराष्ट्र मुम्बई में हुआ। वर्ष 1990 में पढ़ाई पूरी करते हुये चार्टर्ड एकाउण्टेन्ट बना और वर्ष 1991 में मेहता एण्ड मेमन एशोसिएट्स फर्म के द्वारा अपने कैरियर की शुरूआत की गयी। कुछ दिनों बाद याकूब मेमन का अपने भाई टाईगर मेमन से सम्पर्क बना जो भारत के मोस्ट वाण्टेड अपराधी दाऊद इब्राहीम के लिये काम करता था। याकूब जल्द ही टाईगर मेमन का सहयोगी बन गया और दाउद इब्राहीम एवं टाईगर मेमन के बीच गतिविधियों में सक्रिय रहकर उनके पैसों के लेन देन का हिसाब रखने लगा और पाकिस्तान के सम्पर्क में आया जहॉ 15 अन्य आतंकियों को आतंकी प्रशिक्षण दिलाये जाने में धन सहयोग प्रदान किया जाता रहा। यहीं से याकूब मेमन की जिन्दगी ने बदलाव किया और वर्ष 1993 में देश के अन्दर देश से गद्दारी करते हुये मुम्बई में बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया जिसमें एक साथ एक ही समय पर लगातार कई हिस्सो में बम विस्फोट किया गया। इस घटना में 257 लोगो की मौत हो गयी और 713 लोग घायल हुये, इस वीभत्स घटना के बाद याकूब फरार हो गया और वर्ष 1994 में नेपाल पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण किया गया, उस समय इसके पास से एक ब्रीफकेस बरामद हुआ था जिसमें करॉची से सम्बन्धित अभिलेख पाये गये। कोर्ट ने सुनवाई करते हुये याकूब मेमन पर लगे आरोपो को सत्य पाया गया और अन्तिम सुनवाई में मेमन को फॉसी की सजा सुनाई गयी, फॉसी की तिथि 30 जुलाई 2015 निश्चित है यदि गौर किया जाय तो याकूब रजाक मेमन की जन्मतिथि भी 30 जुलाई है।
आज याकूब मेमन के शुभचिन्तको का गला सूख रहा है कि याकूब को फॉसी की सजा से मुक्त कर दिया जाय। आखिर क्यूं ? क्या याकूब ने देश के प्रति कोई गौरवशाली कार्य किया है या फिर अन्य आतंकियों को किये जाने वाले घृणित कार्यो से बचाने के लिये मार्ग बनाया जा रहा है, स्पष्ट नही है किन्तु यह सत्य है कि याकूब मेमन के पक्ष में खड़े होने वाले राष्ट्र हितैशी नही हो सकते।
यदि याकूब मेमन की फॉसी की सजा को विचारोपरान्त बदला भी जाता है तो उन 257 परिवारों का क्या होगा जिनसे कोई न कोई सदस्य इस हादसे का शिकार होकर परिवार को रोता बिलखता असहाय छोड़कर मृत्यु को प्राप्त हो गया, याकूब मेमन के पक्ष में आये कितने लोगो द्वारा घटना से अब तक 22 वर्षो में किस मृतक के परिवार को क्या सहायता दी गयी ? विचारणीय है। किसी हत्यारे को राजनैतिक रूप से सहायता प्रदान किया जाना क्या मृतक परिवारो को इंसाफ से विश्वास उठ जाने का पर्याप्त कारण नहीं बन सकता ? दूसरे आतंकियों को भय के स्थान पर मजबूती प्रदान किया जाना राष्ट्रहित में कितना सही होगा ? यदि मेमन की फॉसी गलत है तो संसद हमले का मास्टर माइंड अफजल गुरू को क्यों फॉसी दी गयी उसमें तो 257 लोगो की मृत्यु नही हुयी थी ? मुस्लिम होने की सजा कहकर याकूब का साथ देने वाले को यह अवश्य ध्यान देना चाहिये कि हमारे पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री एबीजे अब्दुल कलाम भी मुस्लिम है कोई उन्हे आतंकवादी क्यूं नही कह सका आज तक ? विचारणीय है।
देश के अन्दर देश के दुश्मन का देश के लोगो द्वारा एक आतंकवादी का पक्ष लेने वालों की सत्यनिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है, सरकार को इस ओर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक हो जाता है। मात्र वोट की राजनीति के लिये आतंक को बढ़ावा दिया जाना उचित नही हो सकता।
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