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रक्षाबंधन को बनाये देश की एकता और रक्षा का सूत्र

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श्रावण मास पूर्णिमा का पावन दिवस रक्षाबंधन के त्यौहार रूप में प्रत्येक वर्ष भारत में मनाया जाता है और यह त्यौहार इतना व्यापक और प्रभावशाली है भारत में कि बिना किसी भेदभाव के और उत्साह से इस त्यौहार की सार्थकता सिद्ध होती रही है. रक्षाबंधन एक ऐसा अवसर जिसमें बहन अपने भाइयो को एक धागे का बंधनसूत्र बांधकर भाइयो के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करती है और स्वयं की रक्षा का भार भाई को सौपती हैं और भाई संकल्पित होता है अपनी बहन की सभी समस्याओ, परेशानियों को दूर करते हुए खुशिया प्रदान करने को और रक्षाबंधन बंधवाने के बाद बहन को उपहार अथवा धनराशि देता है. रक्षा बंधन का महत्व मात्र भाई बहन के प्रेम और रक्षा तक ही सीमित नहीं है, यह ऐसा कार्य है जिसके द्वारा किसी को भी कोई भी रक्षा सूत्र बांध कर एक दूसरे की सहायता और सुरक्षा करने के लिए वचनबद्ध हो जाता है.
रक्षाबंधन का त्यौहार कब प्रारम्भ हुआ यह कह पाना संभव नहीं है किन्तु पुराणों, शास्त्रों में इसका कई प्रकार से उल्लेख मिलता है, जैसे एक बार असुरों ने स्वर्ग में आक्रमण कर दिया था और उनकी शक्ति इतनी प्रबल थी उस समय कि सभी देवतागण घबरा गए और उनकी हार सुनिश्चित थी, तब देवराज इंद्र की पत्नी इन्द्राणी पूजा कर रही थी जब उन्हें ज्ञात हुआ कि असुरों ने स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया है यह सुनकर पति की प्राण रक्षा हेतु इन्द्राणी ने एक रक्षासूत्र को मंत्रो द्वारा शुद्ध किया और देवराज इंद्र की रक्षा हेतु भुजा पर बाँध दी, परिणाम यह हुआ कि जो युद्ध असुर के पक्ष में चला गया था उस पर पुनः देवताओ ने विजय प्राप्त की. पौराणिक कथाओ में यह भी प्रसंग है कि महाबली महादानी असुर राजा बलि एक बार रसातल में चला गया और अपनी भक्ति तप के बल से उसने विष्णु जी को अपने साथ ही दिन रात रहने का वचन ले लिया और विष्णु जी राजा बलि के साथ रसातल में रहने लगे. इससे सृष्टि में उथल पुथल मच गयी क्यूँ कि पालनकर्ता को तो बलि ने अपने साथ रख लिया, सभी देवता त्राहि त्राहि करने लगे तब नारद मुनि ने माता लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया और लक्ष्मी जी रसातल पहुची, वहां उन्होंने असुर बलि को रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया तब बलि ने पूछा बहन बोलो क्या चाहिए उपहार में, तुम्हारा भाई सक्षम है तीनों लोको में कोई भी वस्तु तुम्हे दे सकता है, लक्ष्मी जी ने कहा मुझे किसी वैभव की आवश्यकता नहीं मेरा सुख तो मेरे स्वामी है जिन्हें आपने अपने पास रखा है यह सुनते ही बलि ने विष्णु जी को मुक्त कर दिया.
इतिहास में भी रक्षाबन्धन का बहुत ही सुन्दर प्रसंग है , एक बार मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी कर्मावती लड़ऩे में असमर्थ थी, उन्होंने कुछ विचार किया और उस समय मुग़ल बादशाह रहे हुमायूँ को मेवाड़ रक्षा सहित अपने स्वयं की रक्षा हेतु रक्षासूत्र धागा भेजकर सहायता मांगी, हुमायूँ मुग़ल शासक था फिर भी रक्षासूत्र का अपमान न करके रक्षासूत्र धागे का सम्मान करते हुए वह अपनी सेना लेकर मेवाड़ पहुच गया और बहादुर शाह से युद्ध लड़कर मेवाड़ और रानी कर्मावती की रक्षा की. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्त्ता एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधकर एक दूसरे की रक्षा का संकल्प लेते हैं. यह रक्षासूत्र किसी भी प्रकार के धागे का हो, रेशमी धागों से बना मंहगा सूत्र या फिर सोने चांदी से बनी बेशकीमती रक्षा सूत्र सभी का महत्व एक समान है जो एक दूसरे की रक्षा के साथ सभी को एकता के बंधन में भी बांधता है, कई स्थानों पर पंडित, पुरोहित अपने यजमानो को रक्षा सूत्र धागा बांधते हैं और आशीर्वाद देते हैं फलस्वरूप यजमान उपहार अथवा धनराशी आदि प्रदान करते हैं. ऐसे पर्व को हम थोडा और विस्तृत करने में सफल हो जाये तो आने वाले समय में बहुत ही कारगर प्रयास सिद्ध होगा आने वाली पीढियों के लिए, हमें चाहिए कि इस पर्व पर प्रकृति की रक्षा हेतु वृक्षों, पेड़ पौधों को भी राखी बाँधी जाय, हमारे लिए उपयोगी और माँ समान स्थान रखने वाली गाय तथा उनके बछड़ों को भी राखी बाँध कर उनकी रक्षा का संकल्प लेना चाहिए. अपनी बहन की रक्षा के साथ ही दूसरी बहनों से भी रक्षा सूत्र बंधवाकर उन्हें सामाजिक सुरक्षा का भरोसा और विश्वास दिलाया जाना चाहिए, साथ ही अपनी नियति को स्वच्छ रखते हुए दूसरे की बहन बेटियों को पूर्ण सम्मान अपने बहन की तरह देने का संकल्प भी हमारे संस्कारो की रक्षा करेगा और महिलाओ, कन्याओं में भी अपनी सुरक्षा के प्रति विश्वास भी बढ़ेगा. ऐसे मनाया जाने वाला रक्षाबंधन का त्यौहार प्रत्येक स्तर पर सफलता के मार्ग में उन्नति प्रदान कर सकता है, आइये हम सम्पूर्ण देश को इस रक्षाबंधन पर्व पर एकता के बंधन में बाँधने का कदम बढ़ाये.

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