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‘प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये हत्या’: ऐसे कृत्य में भी कोई प्रतिष्ठा है भला?

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प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये हत्या (ऑनर किलिंग) करना, यह शब्द अपने आप में विरोधाभासों से भरा हुआ है. कोई भी पूछ सकता है कि अपने ही परिवार के सदस्यों विशेषकर के महिला सदस्यों की केवल इस बात के लिये हत्या कर देना कहां तक उचित है कि उन्होंने अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करके परिवार या जाति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचायी है जिसके लिये उनका वध किया जाना आवश्यक है.

कौन सा सभ्य समाज जनकों, भाइयों के हाथों पुत्र-पुत्री या भाई-बहन की हत्या को प्रतिष्ठा का विषय मान सकता है कि उन्होंने परिवार के शादी तय करने के अधिकार का उल्लंघन करके अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ जिंदगी बिताने का निर्णय लिया.

बहुत से देश ग्रस्त हैं इस समस्या से:

मानव अधिकारों के लिये काम करने वाली संस्था ह्यूमन रॉयट्स वॉच के अनुसार: “सम्मान की रक्षा के लिये किये गये अपराध, हिंसा के वो मामले हैं, जिन्हें अधिकांश मामलों में पुरुष सदस्यों ने अपने ही परिवार की महिलाओं के खिलाफ इसलिये अंजाम दिया होता है, क्योंकि उनकी नजर में उस महिला सदस्य ने समूचे परिवार की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला काम किया होता है. इसका कारण कुछ भी हो सकता है जैसे: परिवार द्वारा तय की गई शादी करने से इंकार, किसी यौन अपराध का शिकार बनना मात्र, पति से (प्रताड़ना देने वाले पति से भी) विवाह विच्छेद की मांग करना या फिर अवैध संबंध रखने का संदेह. केवल यह धारणा ही उस महिला सदस्य पर हमले को उचित ठहराने के लिये पर्याप्त है कि उसके किसी कदम से परिवार की इज्जत को बट्टा लगा है.”

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या आयोग की एक रिपोर्ट के इस तरह के प्रतिष्ठा जनित अपराधों की वजह से मरने वालों की संख्या पांच हजार भी हो सकती है.

कई एशियाई, अफ्रीकी और खाड़ी के देश इस समस्या से ग्रस्त हैं. यहां तक की यूरोप और अमेरिका में यहां से वहां बसने गये लोगों में इस तरह के अपराध देखने-सुनने को मिलते हैं. विश्व संस्थाओं के दबाव में पाकिस्तान सहित कुछ देशों ने इससे निपटने के लिये लिये विशिष्ट कानून भी बनाये हैं.

लेकिन भारत में ऐसे किसी विशिष्ट कानून के अभाव में हरियाणा के एक न्यायालय का निर्णय इस तरह के अपराधों पर लगाम लगाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा. विशेषकर के उत्तर-पश्चिमी भारत में जहां जातीय पंचायतों के फ़रमान की वजह से अपनी मर्जी से विवाह (सगोत्रीय या अन्तर-जातीय विवाह) करने वाले युवा जोड़ों को प्रताड़ना के बाद मौत के घाट उतार दिया जाता है.

हरियाणा में ये अपनी तरह का पहला ऐसा मामला है जिसमें अपराधियों को मृत्युदण्ड दिया गया है.

पृष्ठभूमि:

करनाल के एक न्यायालय ने जून 2007 में एक 19 वर्षीय युवती बबली और उसके 23 वर्षीय पति मनोज की हत्या उसके क्रुद्ध परिजनों द्वारा किये जाने के अपराध में पांच व्यक्तियों को मृत्युदण्ड की सजा सुनाई तो ये मामला सुर्खियों में छा गया.

हरियाणा के कैथल जिले के रहने वाले मनोज और बबली एक ही गोत्र के थे और मई 2007 में उन्होंने अपने परिवार वालों को बिना बताये ही चण्डीगढ़ में गुप्त रूप विवाह कर लिया था. इस बात का परिजनों को पता चलने पर इस मुद्दे पर बुलायी एक जातीय पंचायत ने उन्हें विवाह रद्द करने का हुक्म सुनाया. जिसे मानने से दोनों ने इंकार कर दिया. अपने जीवन को खतरे को देखते हुये इन लोगों ने न्यायालय से अपनी रक्षा किये जाने की प्रार्थना की.

जून 2007 में ये दोनों इस संबंध में एक न्यायालय में पेशी के बाद पुलिस सुरक्षा में लौट रहे थे तभी उनका अपहरण कर लिया गया. बाद में इन दोनों के शव कैथल की एक नहर से बरामद किये गये. इन दोनों के हाथ पैर बंधे हुये थे.

बबली के परिजनों ने एक खाप पंचायत के आदेश के बाद इन दोनों का अपहरण कर उनकी हत्या करने के बाद उनके शवों को नहर में फेंक दिया था. बबली और उसके पति की हत्या उन्हीं लोगों ने की थी जिन पर बबली की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी – सगे और रिश्ते के भाई और चाचा लोग.

बबली द्वारा स्वेच्छा से सगोत्रीय विवाह करने को इन लोगों ने अपने परिवार और जाति का अपमान माना था. बबली ने अंतरजातीय विवाह किया होता तो भी उसका यही हश्र होना तय था. विवाहित जीवन पर उसका अधिकार उसके परिवार द्वारा तय की गयी शादी के जरिये ही संभव था और अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनना उसके लिये खतरे से खाली नहीं था और यही हुआ भी.

उत्तर-पश्चिम भारत में खाप पंचायतें और इस तरह के अपराधों में उनकी भूमिका:

बहुधा इन जातीय पंचायतों में गांव और समाज के वरिष्ठ और प्रभावशाली लोगों के अलावा लड़के और लड़की के परिवार वाले भी शामिल होते हैं. ये खाप पंचायते इस तरह के मामलों में क्रूर और पीड़ादायी तरीके से यातना देने, और मौत के घाट उतारने का आदेश देने के लिये कुख्यात हैं.

इन पंचायतों द्वारा निर्वस्त्र करने, पिटाई करने, जूते लगाने, कोड़े लगाने यहां तक कि अवयस्क बालिकाओं के साथ सार्वजनिक बलात्कार करने, जिंदा जला देने और फांसी लगाकर मार देने के आदेश देने के मामले लगातार सामने आते रहें है ताकि दूसरे इनकी बनायी सामाजिक व्यवस्था को चुनौती देने का साहस न कर सकें. इनके बर्बर कृत्य तालिबान को भी पीछे छोड़ देने वाले हैं.

कई बार खाप पंचायते परिजनों – पिता, भाई और अन्य रिश्तेदारों को अपने ही बच्चों के साथ ये सब करने का हुक्म सुनाती हैं. कुछ मामलों में, विशेषकर के लड़की पक्ष के दबंग होने या ऊंची जाति का होने पर उस लड़के की मां और बहनों को निशाना बनाया जाता है जिसके साथ उनके घर की लड़की ने प्रेम विवाह किया होता है.

क्या बबली के परिवार वालों ने उसे इसीलिये मौत के घाट उतार दिया था कि उसने मर्जी से शादी करके परिवार की इज्जत को बट्टा लगाया था. या उन्हें अपने सामाजिक बहिष्कार, उत्पीड़न या समाज में अपनी स्थिति के गिरने का भय था. उनको इस बात की भी आशंका हो सकती है कि बबली को सजा देने का पंचायत का हुक्म नहीं मानने की हालत में उनका सामाजिक बहिष्कार और हुक्का पानी बंद किया जा सकता है. ऐसा होने की हालत में बबली के दूसरे भाई-बहनों और भविष्य में उनकी संतानों के सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार का ख़तरा उनके सामने था.

एक ग्रामीण और सामंती और परिवेश में ये सभी चीजें ऐसे निर्णय के पीछे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. विशेषकर के परिवार की महिलाओं का किसी के द्वारा अपमान या खुद महिलाओं के द्वारा कोई ऐसा काम किया जाना जिससे परिवार की प्रतिष्ठा की हानि होती हो, इसे बहुत ही गंभीरता से लिया जाता है.

इसके परिणाम हमेशा भयानक ही होते हैं. जैसा एमनेस्टी इण्टरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है: सम्मान आधारित व्यवस्था में क्षमा के लिये कोई स्थान नहीं होता. एक बार परिवार की किसी महिला पर संदेह हो जाये या फिर वो परिवार के अपमान की वजह बन जाये तो उसे अपना बचाव करने की अनुमति नहीं मिलती. परिवार के सदस्यों के पास उस महिला के ऊपर हमला करने के अलावा ऐसा और कोई सामाजिक रूप से स्वीकार्य रास्ता नहीं होता है जिससे वो पारिवारिक प्रतिष्ठा पर लगे दाग को मिटा सकें.”

हालांकि सारे प्रतिष्ठा जनित अपराधों के पीछे प्रतिकार की भावना अवश्य होती है. लेकिन इनके आर्थिक कारण भी होते हैं. शक्तिशाली जातीय पंचायतों के फरमान को नहीं मानने के गंभीर सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम शेष परिवार को भुगतने पड़ सकते हैं. इसके अलावा अपने परिवार के सदस्य को बचाने की कोशिश करने या उसके कृत्य की अनदेखी करने की हालत में पंचायत का क़हर बाकी परिवार पर टूटने की आशंका बनी ही रहती है.

भारतीय संदर्भ में अन्य समान सामाजिक कुरीतियां:

भारतीय समाज में तीन इस तरह की प्रमुख कुरीतियां प्राचीन समय से व्याप्त हैं जिसमें व्यक्ति की हत्या उसी के परिजनों द्वारा की जाती रही है. ये हैं सती प्रथा, दहेज हत्या और प्रतिष्ठा जनित हत्यायें. इन सभी के पीछे अपने सामाजिक और आर्थिक कारण हमेशा से रहे हैं.

लेकिन दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या को रोकने के लिये सरकार द्वारा कड़े कदम उठाने के बाद से इसके मामलों में कमी देखी गयी है. पहले दहेज निवारण कानून (1961) और बाद में 1986 में भारतीय संसद द्वारा दहेज अपराधों को घरेलू हिंसा के अपराधों की श्रेणी में रखने और इसके लिये कड़ी सजा का प्रावधान करने – न्यूनतम सात साल की कैद और अधिकतम आजीवन कारावास के दण्ड के प्रावधान का असर दिखता है.

1987 में राजस्थान के सीकर जिले में रूप कंवर के सती होने की घटना सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने सती प्रथा निवारण कानून (1987) बनाया जिसमें सती प्रथा को बढ़ावा देने और इसमें सहयोग करने के लिये कड़ी सजा का प्रावधान था.

दुर्भाग्य से प्रतिष्ठा जनित सामूहिक अपराधों से निपटने के लिये भारत में कोई अलग कानून नहीं है. इस तरह के मामलों को ‘नर हत्या’ के अन्य अपराधों की श्रेणी में ही रखा जाता है.

निवारण:

ख़ाप पंचायतों के फरमान और प्रतिष्ठाजन्य हत्याओं के निवारण के लिये विशिष्ट कानून बनाये जाने की आवश्यकता है. जिसमें इसके सामाजिक और ऐतिहासिक कारणों के साथ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समस्या की गंभीरता और इसके निवारण के लिये ठोस कानूनी आधार उपलब्ध कराया जाना चाहिये.

जिसमें प्रतिष्ठाजन्य अपराध करने वालों को कठोरतम सजा के अलावा ऐसे कृत्यों के लिये विवश करने, उकसाने वाले किसी समूह के सभी सदस्यों के लिये कठोर दण्ड का प्रावधान होना चाहिये.

इसके अलावा नये कानून में इस बात का भी प्रावधान होना चाहिये कि किसी क्षेत्र में प्रतिष्ठाजनित अपराध होने से रोक पाने में विफल रहने पर उस क्षेत्र के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को भी उत्तरदायी माना जायेगा.

तुर्की के न्यायालयों द्वारा ऐसे प्रतिष्ठाजन्य अपराधों के लिये अपराधियों के समूचे परिवार को कठोर देने के उदाहरण मिलते हैं.

इसके अलावा राजनीतिज्ञों को भी आगे आकर ऐसी शक्तिशाली जातीय पंचायतों को स्पष्ट कर देना चाहिये कि पहले तो वे अपने में सुधार करें. दूसरा यदि ये पंचायतें किसी तरह के हिंसक और कानून को अपने हाथ में लेने जैसे कामों में लिप्त पायी जाती हैं तो सभी सदस्यों को कठोर सजा दी जायेगी.

करनाल के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश वाणी गोपाल शर्मा ने इस मामले के पांच अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाते समय ठीक ही कहा था, “ये खाप पंचायतें संविधान के विरुद्ध काम कर रही हैं, उसका मखौल बना रही हैं और अपने आप में क़ानून बन गयी है.”

ये उचित समय है कि समाज, प्रशासन और न्यायपालिका इन खाप पंचायतों द्वारा कानून को अपने हाथ में लेने से रोकने के लिये इन पर सख्ती बरतें तभी इन संस्थाओं की खोयी हुयी प्रतिष्ठा और सत्ता बहाल हो पायेगी.

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