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सत्रहवीं सदी के प्रारंभ में अंग्रेजों ने भारत में महमान बनकर प्रवेश किया । बादशाहों,राजाओं से लेकर भारतीय जनता ने उनका खूब अतिथि सत्कार किया। फिर उन लोगों ने भारत में व्यापार करने की इच्छा की, सो उन्हे पूर्ण सहयोग मिला ।फिर भारत में मौजूद संसाधनो,सामानो,सुविधाओं को देख कर उन विदेशियों ने लार टपकाई और छल,बल,कौशल से अपने आश्रय दाताओं को हीं गुलाम बना लिया और खुद उनके मालिक बन बैठे । इतिहास गवाह है उस महमान नवाजी की कीमत तीन सौ साल से ज्यादा के संघर्ष और जद्दोजहद् के बाद , असंख्य बलिदानों से ही भारत को उन घुसपैठियों से मुक्ति मिल पायी। उपरोक्त बात बताने के पिछे उद्देश्य गड़े मुर्दे उखाड़ने या इतिहास पढ़ाने का नहीं है । बात सिर्फ इतनी सी है कि कई बार राष्ट्रीय मुद्दो पर, राष्ट्र की सुरक्षा और हित के लिए दुरदर्शी निर्णय लेना आवश्यक होता है वरना उसकी कीमत कई पीढ़ीयों को सदियों तक चुकानी पड़ती है ।
स्वतंत्रता के समय 1947 में इस आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ था कि मुस्लिम समुदाय को अपने अधिकारों की पूर्ति के लिए अपना एक अलग स्थान चाहिए था । धार्मिक आधार पर हुए इस चिर-फाड़ में भारत के घाव कभी सुख ही नही पाए । पाकिस्तान के आपसी आंतरिक कलह, बांलादेश का विभाजन, भारी संख्या में शरणार्थियों का पलायन और उनका भारत में घुसपैठ, घटना और वजह जो भी हो पर भारत इनसे बुरी तरह प्रभावित रहा । 1971 में जब इन पड़ोसी देशों से शरणार्थियों का घुसपैठ भारत की सीमाओं में हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसे मानवीय संवेदना के आधार पर भारत के बंगाल- असम में घुसने की इज़ाजत दे दी परंतु कुछ ही समय बात उनको अहसास हो गया था की उनका यह कदम भविष्य में भारत के लिए समस्याएं लेकर आएंगी । उन्होने कहा था कि शरणार्थियों को एक न एक दिन भारत से जाना होगा । पर यह समझ से ही परे है कि शरणार्थी एक बार कहीं सुरक्षित बस जाने के बाद भारत से वापस क्यो,कब, कैसे, और कहां जाएंगे । उनको जाना ही होता तो यहा आते ही क्यों । इस तरह की प्रक्रिया इतना आसान नहीं होता जितना समझा जाता है ।फिर कालांतर में अवैध रूप से भी घुसपैठ लगातार होती रही है । भारत की जनता के उदारता का फायदा उठाकर असम हीं नही पूरे भारत में जगह जगह घुसपैठियों ने अपना नाजायज़ अधिकार जमा लिया, स्थानीय लोगों के सारे संसाधनों पर कब्जा जमा बैठे और धीरे धीरे वहां के वास्तविक लोग ही शरणार्थी बन गये ।
असम में वास्तविक नागरिकों की पहचान के लिए एनआरसी लागू किया गया, जिसमें अंतिम सूची में लगभग चालीस लाख लोगों का नाम नहीं है । जिस मूल उद्देश्य को लेकर इस प्रक्रिया को लागु किया गया था समय के साथ परिस्थिति काफी बदल चूकी है । कुछ को छोड़ कर 1971 के समय, उससे पहले या बाद में आये हुए शरणार्थी या घुसपैठी अब यहां बस चुके है और दूसरों के जमीन पर आराम से जिन्दगी गुजार रहे हैं, उनके पास घर है,जमीन है, राशन कार्ड है, परिचय पत्र है, वोट देने का अधिकार भी है । ऐसे लोगों के नाम एन.आर.सी में भी आगये हैं । इतने लम्बे समय भारत में रहने के बाद जाहीर सी बात है कि उन्होने अपनी व्यवस्था पक्की कर ली है और इनको बसाने में वोट बैंक की खातिर कुछ नेताओं का भी भरपूर सहयोग रहा है । भारत के विभिन्न प्रांतो से आये लोग जो असम में रह कर व्यापार,उद्योग या नौकरी पेशा से गुजर बसर कर रहे हैं और काफी लंम्बे समय से यहा रह रहे हैं उनमें से लाखों लोगों का नाम एन.आर.सी सूची में नहीं आया हैं । अब प्रश्न उठता है क्या उन वास्तविक भारतीयों को अवैध माना जाएगा । और लाखों की संख्यामें घुसपैठिये जो आज सफेद पोश हो चुके हैं क्या उन पर उंगली भी उठाना मुमकीन होगा । निश्चित हीं भारत की परम्पराएं बहुत उच्च कोटी के हैं । भारत एक उदार और श्रेष्ठ राष्ट्र है जहां मानव मात्र एक समान और अतिथि देवो भव: जैसी बातो को सरलता एवं दृढ़ता के साथ पालन किया जाता है । परंतु आतिथ्य की भी अपनी मर्यादा है जो लेने और देने वाले दोनों के हितों के साथ जुड़े हुए हैं । घुसपैठी कोई अतिथि नही हैं , वह तो राष्टीय सुरक्षा के लिए बहुत हीं खतरनाक है ।
भारत के लोगों की रगों में पर उपकार के तत्व घुले हुए हैं । वो सेवा-सहयोग करना जानते हैं । पर अपने बच्चों का हक मार कर, अपने स्वजनों का पेट काट कर वह दूसरे परजीवीयों को नहीं पाल सकते । अभि तक यह भ्रम है कि एन आर सी से कटे हुए चालीस लाख लोग घुसपैठी हैं, पर वास्तविकता यह है कि सैंकड़ो वर्षों से असम में रहने वाले भारतीयों के हीं नाम उसमें नहीं हैं । उनकी चिंता,परेशानी,पीड़ा को समझना होगा और जैसे भी हो उपाय निकाल कर उन्हे उनका हक देना होगा, वो किसी भी प्रांत के हो आखिर हैं तो भारतीय हीं । अवैध लोगों की पहचान के चक्कर में असली भारतीयों की पहचान खतरे में न पड़े । भारत हमेशा दूसरों के लिए उदार रहा है, उम्मीद है अपनों के लिए कठोर न बने। यह प्रश्न सिर्फ वैध अवैध की पहचान की नहीं, हिन्दुस्तान के स्वाभिमान की भी है । बहुत देर तो हो ही गयी है पर फिर भी घुसपैठी विदेशियों को निकाला जाना जरूरी है पर स्वजनों भारतीयों के अधिकोरों की सुरक्षा भी जरूरी है । माननीय उच्चतम न्यायालय की पहल प्रशंसनीय व सर्वमान्य है, परंतु स्थानीय अधिकारियों ओर समाजनिष्ठ लोगों के सहयोग के बिना कुछ भी संभव नही होगा । अत: इस रात्रि की सुबह खुशियां ले कर आये यही उम्मीद करते हैं ।
– क्षीरोदेश प्रसाद
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