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भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति

Kshirodesh Prasad
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मानव सभ्यता ने पाषाण युग से परमाणु युग तक का लम्बा सफर तय कर लिया है । इस दौरान कई प्राचीन सभ्यताओं ने जन्म लिया और धरती के कोने-कोने में फैल गये, कुछ रह गये कुछ समय की धारा में बह गये । पर चार्ल्स डॉरविन की मानें तो इंसान ने बन्दर से महामानव बनने तक की दौड़ लगाई है । अगर हम भारतीय सभ्यता की बात करें तो इसे विश्व की प्राचीनतम और सुव्यवस्थित सभ्यता माना गया जो अपनी उच्च कोटी की पारिवारिक व सामाजिक व्यवस्था के लिए जाना जाता है । परिवार वह सबसे छोटी इकाई है जहां एक समृद्ध राष्ट्र के सभी उपादान और कारक मौजूद रहते हैं । इस परिवार व्यवस्था के संचालन में नारी और पुरुष की समान भागीदारी और समान महत्व है । पुरुष परिवार को पोषण देता है, अपनी रोजगार से स्वजनों का पेट पालता है परंतु परिवार संचालन की वास्तविक जिम्मेदारी नारी के उपर ही है जिसे सेवा,त्याग,और करूणा की देवी कहा जाता है । परंतु इस प्रकार की शास्त्रीय परिभाषाएं जो भी हो वास्तविकता कुछ और ही प्रतीत होता है । पुरुष आज भी वही है जो पहले था, प्रगति पथ पर निरंतर चलता हुआ, संघर्ष,शौर्य,पराक्रम,अहंकार आदि गुणों से भरपुर, अपने धुन में मस्त । परंतु आज के इस आधुनिक समाज में नारी की स्थिति क्या है , यह जानने की कोशिश करेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी ।

यद्यपि आज के इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में नारियों ने कृषि से लेकर अंतरिक्ष तक अनेक क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर स्थान हासिल कर लिया है, परंतु आज भी ज्यादातर महिलाएं अपनी मौलिक अधिकारों सं वंचित रहने को विवश हैं । महिला सशक्तिकरण के जितने भी प्रयास किये जा रहे हो पर नारी को अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी चुनौति उसे अपने घर में, मां की कोख से ही मिल रही है । इससे बच भी गयी तो धरती पर आने के बाद उसके लिए जैसे चनौतियों का अम्बार लगा हुआ है । भ्रूण हत्या, लैंगिक भेदभाव, घरेलु हिंसा, दहेज निर्यातना,यौन उत्पीड़न,छेड़छाड़,शोषण, दमन, बलात्कार,तिरष्कार, मानसिक यंत्रणा आदि अनेको समस्याएँ हैं जिनसे हर पल महिलाओं का सामना होता रहता है । प्रकृति ने नर-मादा का समन्वय करके सृष्टि की निरंतरता को बनाए रखा । पुरुष और नारी में शारीरिक और स्वभावगत भिन्नताएं हैं, एक कठोर है और एक कोमल,पुरुष स्वभाव से अहंकारी और नारी त्याग करने वाली । इतिहास के अनुसार वैदिक काल की नारियों को सामाजिक संपन्नता प्राप्त थी, नारी शिक्षा, शास्त्र अध्ययन, यज्ञ में पुरुषों के बराबर भागीदारी, स्वेच्छा से विवाह करना आदि अनेको उदाहरण है ।

उत्तर वैदिक काल में विभिन्न जातियों में संघर्ष की स्थिति में नारियों की दुर्गति हुई । मध्यकाल में विदेशी आक्रमण और मुगल काल में महिलाओं की स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक रही जब उसे मात्र भोग की वस्तु माना गया । रूपसी नारीयों को पाने के लिए बड़े बड़े युद्ध लड़े गये और भीषण रक्तपात मचाया गया, इससे महिलाओं को बचाने के लिए ही पर्दा प्रथा,बाल विवाह,सति प्रथा आदि कुरीतियों ने जन्मलिया था जो कालांतर में बंद भी हो गये । स्वतंत्रता प्राप्ति तक महिलाओं की स्थिति में कोई विशेष सुधार नही हुआ था । फिर धीरे धीरे अंतराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर कई महिला संगठन, विचारक और आंदोलनों ने महिलाओं की स्वतंत्रता, आर्थिक मजबूती,अस्मिता,गरिमा और न्याय आदि के लिए प्रयास किये । कुछ हद तक सुधार भी हुआ, परंतु स्थिति फिर भी संतोषजनक नही रही । राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ कम से कम 39 अपराधिक मामले होते है, जिसमें 11 फीसदी हिस्सेदारी बलात्कार की है। पिछले दशक में भारत में महिलाओं के खिलाफ करीब 2.5 मिलियन अपराध दर्ज किए गए हैं। और ऐसे लाखों मामले भी हैं जिसमें महिलाएं डर या लोकलाज की वजह से अपराध होने पर चुप रह जाती हैं।

पुरुषों के कुकर्मों से महिलाओं को सुरक्षित करने हेतु भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी) की कई धाराएं लागू की गयी, जैसे लज्जा भंग पर धार 354 के तहत दो वर्ष तक जेल, बलात्कार में धारा 376 के तहत सौलह वर्ष से कम की आयु तक के बालिकाओं से बलात्कार पर अपराधी को आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है । मानसिक यातना देने पर धारा 498-क के तहत 7 बर्ष की सजा,छेड़छाड़ पर धारा 294, अपहरण या वैश्यावृत्ति पर धारा 363 से 368, कन्या भ्रूण हत्या पर धारा 312 से 318 के तहत कठोर दण्ड का प्रावधान है । पर इन सबके बावजूद अपराध और बढ़ रहै हैं, अपराधी और भी अधिक घिनौने तरीके से बलात्कार को अंजाम दे रहे हैं, हाल ही में छोटी बच्चियों तक को निर्मम बलात्कार का शिकार बनाया गया ।

अब प्रश्न उठता है कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो महिलाओं को कैसे सुरक्षित रखा जाए । सरकार की योजनाएँ,पुलिस, अदालत,कानून की धाराएं तो मात्र सामाजिक संरचना में शामिल औपचारिक व्यवस्थाएं है। वास्तव में जब लोगों की मानसिकता नहीं बदलेगी,दृष्टिकोण नही बदलेगा तब तक महिलाओं की स्थिति नहीं सधरेगी । अगर समाज की किसी बेटी में अपनी बेटी या बहन जैसा भाव आ जाये तो महिलाएं सिर उठाके चल पाएंगी । पुरुषत्व की सार्थकता महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान देने में है, उनका शोषण करना तो कायरता है । यहीं भारत की पहचान है । कदाचित् इस मंत्र को लोग भूल गये हैं, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता । नारी का सम्मान जहां है, संस्कृति का उत्थान वहां है । अभी और चिंतन की आवश्यकता है,नारी हीं शक्ति है, उसे नुकसान पहुंचे तो समाज शक्तिहीन हो जाएगा, अत: पुरुषों कों अधिक संवेदनशील होना पड़ेगा तभी महिलाओं का उत्थान संभव है ।

– क्षीरोदेश प्रसाद

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