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भौतिक व अध्यात्मिक समृद्धि का पर्व है दीपावली

Kshirodesh Prasad
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“भौतिक व अध्यात्मिक समृद्धि का पर्व है दीपावली”

“सांझ समय रघुवीर पुरी की शोभा आज वनी ।
ललित दीप मालिका विलोकहिँ हितकर अवध धनी ।।
घर घर मंगल चार एक रस हरखिन रंक धनी ।
तुलसीदास कल कीरति गावहीं जो कलिमल समनी ।। ”

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित इन पंक्तियों में त्रेता युग में श्रीराम के समय किस प्रकार दीपावली मनायी जाती होगी उसका आभास होता है । कहा जाता है कि श्रीराम के लंका विजय के पश्चात अयोध्या पधारने पर दीपमालाएँ सजाकर उनका स्वागत किया गया और तब से दीपावली मनायी गयी । परंतु सनातन संस्कृति में अति प्राचीन काल से दीपक की ज्योति को ब्राह्मी चेतना का प्रतीक मानकर हर शुभ अवसर पर ज्योति जलाना हमारी प्राचीन परम्परा है । जब सामूहिकता में ऐसा किया जाता है तो वह पर्व का रूप ले लेता है अत: यह कहना उचित होगा की दीपोत्सव त्रेता से पहले की परंपरा है जिसका उल्लेख मनुस्मृति में भी मिलता है । भारतीय संस्कृति में पर्व त्योहारों का विशेष महत्व है । इन उत्सवों की विवेचना, इनको मनाने का
उद्देश्य,मनाने के अवसर और विधियाँ हमें यही बोध कराती हैं कि प्राचीन काल से चली आ रही परम्पराओं में, हमारे महान तत्ववेत्ता ऋषियों और पूर्वजों के द्वारा स्थापित सिद्धांतो-आदर्शों में प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी भावना व अनुकरणीय महान दृष्टिकोण निहित है । इसे समझने की आवश्यकता है कि हर एक अनुष्ठान या पर्व-त्योहारों में हमारे ऋषियो-पूर्वजों ने हर्ष उल्लास के साथ व्यक्ति और सामाजिक हित के मूल सिद्धांत का अवश्य ध्यान रखा । यह बात अलग है कि कालांतर में अपनी सुविधानुसार लौकिक और आमोद-प्रमोद की विधियों को जोड़ कर लोगों नें उन महान परम्पराओं को अलग रूप दे दिया । पर इससे पर्व और प्रयोजन की महत्ता कम नहीं हो जाती । शोभा और समृद्धि तथा गंदगी और दरिद्रता का परस्पर गहरा संबन्ध है । जहां स्वच्छता पवित्रता रहती है वहां श्री-समृद्धि,सुख आरोग्य आदि संपदाओ का रहना स्वाभाविक है। वैसे ही स्वच्छ शरीर के साथ सुखी जीवन और निर्मल मन में देवत्व के जागरण का भी अद्भूत संबंध है । पर्व त्योहारों को मनाने के मूल उद्देश्य समाजिक समृद्धि व आतंरिक प्रसन्नता की प्राप्ति भी है ।

कार्तिक अमावश्या को मनाये जाने वाला प्रकाश पर्व दीपावली की जो महत्वपूर्ण प्रेरणा है वह यही है कि हम अपने वातावरण को स्वच्छ बनाए रखें , अपने अंतर्मन को अपनी आत्मा को मलिनता और निराशा से बचाएँ और उसे उस ज्योति स्वरूप महाचेतन परम प्रकाश परमात्मा से यानि सकारात्मकता से जोड़े रखें । दीपावली कब से और क्यों मनाते हैं इस पर यूं तो बहुत सारे उदाहरण-दृष्टांत आदि का उल्लेख है पर उनमें विशेष ध्यान देने वाली कुछ बाते हैं ।मनुस्मृति में इसे ‘ नव सस्येष्टि ’ अर्थात् नये शस्य या फसल के आगमन पर यज्ञ करने वाला पर्व कहा है । भगवान विष्णु द्वारा माता लक्ष्मी को बलि की कैद से छुड़ाना, श्रीकृष्ण का नारकासुर वध तथा भगवान महावीर के निर्वाण प्राप्ति का दिन एवं उनके शिष्य इन्द्रभूति गोतम को ज्ञान-लक्ष्मी की प्राप्ति इसी दिन हुई थी। इसे भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के समय से भी जोड़ा जाता है। स्वामी राम तीर्थ एवं महर्षि दयानंद जी ने इसी दिन शरीर त्याग किया था ।सन् 1577 में इसी दिन सिक्खों के अमृतसर स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास भी हुआ था । पर्व त्योहार प्रकृति से प्रेम और सहयोग पूर्वक जुड़े रहने की प्रेरणा है । दीपावली का वैज्ञानिक महत्व है कि दीपक के प्रकाश से वायु की शुद्धि तथा वातावरण में सकारात्मकता का संचार होता है ।वर्षा के कारण जिन रोग फैलाने वाले कीट-पतंगो की वृद्धि हुई थी वे जल कर नष्ट हो जाते हैं । घी ओर मीठे तेल से निकलने वाला धूआँ से स्वास्थ्य पर अनुकुल प्रभाव पड़ता है । धन और वैभव की देवी माता लक्ष्मी का इस दिन विशेष पूजन होता है ।

दीपावली राष्ट्र के आर्थिक प्रगति में सामूहिक प्रयत्न का पर्व है । केवल धन प्राप्ति होना ही लक्ष्मी की कृपा नहीं है वरन धन का सदुपयोग करना व विविकशीलता को धारण करना ही लक्ष्मी प्राप्ति की सार्थकता है । भले ही मनोरंजन के लिए फूलझड़ी-पटाखें आदि जलाए जाते हों पर दरिद्रता होने पर , कर्जा लेकर या वातावरण को दूषित करने वाले हानिकारक पटाखे जलाने की स्थिति अव्यवहारिक व सिद्धान्तहीन कार्य है । दीपावली ज्योति पर्व है जिसमें अपने भितर और बाहार फैले हुए अंधकार को दूर कर प्रकाशवान बनने की उपनिषदीय प्रेरणा ‘तमसोमाज्योतिर्गमय’ सन्निहित है । यह पर्व हमें जागरूक और परिश्रमी बनने को प्रेरित करता है और अपने अंतर्मन को प्रकाशित करके दिव्य आनंद की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है । हम सब ईश्वर अर्थात् प्रकृति की संतान हैं अत: हम मिलजुल कर संगठित रहें और देश को अध्यत्मिक, सामाजिक,सांस्कृतिक व आर्थिक रूप से आगे ले जाने की ओर अग्रसर हों यही इस त्योहारों का वास्तविक महत्व है । उस परम प्रकाश ईश्वरीय चेतना के ज्योतिरूप से धरा का प्रकाशित होना ,अंधकार से प्रकाश की ओर निरंतर बढ़ते रहना, सभी सुखी रहैं सबका कल्याण हो की महत्त भावना ही दीपावली पर्व का मूल उद्देश्य है , दीप से दीप जलें, इस प्रार्थना के साथ,

“शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं धनसंपदा ।शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥”

– क्षीरोदेश प्रसाद

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