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तुम्हारे बिना सब, क्यों दुख के साये में उत्सव मनाने जैसा लगता है!

Social Issues
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अम्मा क्यों तकलीफें खत्म नही हो रही हैं तुम्हारा हमे छोड़कर जाना इतना क्यों तकलीफ देता है अब भी।
मै क्यों कभी सोचा भी नही कि तुम्हारे बिना भी जिंदगी जीना पड़ सकता है कभी?

तुम ही तो कहती थी न कि….

ग़मों के भीड़ मे जिसने हमे हंसना सिखाया था,
वो जिसके दम से तुफानो ने अपना सर झुकाया था।
किसी भी जुल्म के आगे कभी झुकना नही बेटे,
सितम की उम्र छोटी है मुझे तुमने ने सिखाया था।।

क्यों तुम्हारी याद आने के साथ ही संसार से विरक्ति सा महसुस करने लगता हूं? क्यो मेरा मोह जीवित परिवार से भंग होने लगता है? और तुमसे लिपटकर तुममे समा जाने की आतुरता बढ़ जाती है।

तुमसे मिलने की उम्मीद भी तो नही रही अब कभी भी कहीं पर भी? अगर कोई बता देता तुमसे मिलने का वो रास्ता तो सच मे माँ बेझिझक निकल पड़ता उस राह पर।

तुम्हारे रहते किसी भी त्योहार पर मेरे फोन न करने पर भी अपनी तरफ से फोन करके आशिर्वाद देना बहुत याद आता है अम्मा।

पिछले दशहरे पर ही तो मै आया था मिलने के लिए तुमसे कितना लड़ा था मै तुमसे, मेरे खाने के लिए,तुम्हारे बेचैन होने पर। मै क्यों माफ नही कर पा रहा हूं अपने आप को?
क्यों नही समझा पा रहा हूं कि ऐसा सभी अपनी माँओं के साथ करते हैं हो सकता है तुमने बुरा नही माना हो पर मै नही माफ कर पा रहा हूं अपने आप को।

तुमसे मिलने की बेचैनी क्यों बढ़ती जा रही है दिन-ब-दिन? क्यों तुम्हारे बिना अनाथ सा महसूस करने लगा हूं जबकि बाबूजी,भइया हैं मेरे साथ अभी। पर इन सबके बावजूद भी तुम्हारी कमी तो तड़पाती ही है ना माँ।

रोक रही थीं जलती सहरायें जब राह मेरी,
तुने ही रोका उन्हे था बन हिफाजतगार मेरी।
आने न दी मुझ पर तुने आफत कभी तेरे रहते,
जिंदगी,शीतल किया बन सरिता,तपती मेरी।।

तुम्हारे बिना सब क्यों दुख के साये मे उत्सव मनाने जैसा लगता है? खुश होना खुशी का लबादा ओढ़ने जैसा लगता है माँ।
क्यों तुम्हारी याद आने के बाद सब कुछ सुना सुना सा लगने लगता है? क्यों तुम्हारा वो मेरे कार्यालय से आने पर मेरा सर सहलाना नहीं भूल पा रहा हु मैं माँ?
अब तो लगता है के तुम्हारी यादों से मुक्त होने के लिए मेरी मौत तक का इंतजार करना पड़ेगा मुझे?
कहाँ चली गई तुम माँ?
मेरे एक दिन फ़ोन पर बात करते हुए रो देने पर पढाई छोड़कर वापस आने के लिए कह देने वाली अब क्यों नहीं करती तुम मेरी चिंता माँ?
कहा छोड़ कर तुम चली गई मुझे इस वीरान संसार में माँ?

शुष्क,कंटीली झाड़ियों के बीच रहकर भी,
तुमने ही तो राह बनायी ये सब सहकर भी।

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