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कौन है जो चिंता करता है गंगा की दुर्गति की. कौन है जो वातावरण में हो रहे ऑक्सीजन की कमी को लेकर चिंतित है. कौन है जो गर्मियों में पड़ने वाली वर्षा और बारिश व सर्दियों में पड़ने वाली गर्मी को लेकर व्यथित है. कौन है जो ओज़ोन लेयर में हो रहे छिद्र की चिंता में पागल है. कौन है? कौन है ?
मैं ये बिलकुल नहीं कहता कि चिंता में पागल होकर अपनी तबीयत ख़राब कर लें, पर श्रीमान् इस संसार का जीवित हिस्सा होते ही हमारी जिम्मेदारी बन जाती है कि कम से कम उतने हिस्से की चिंता हमें करनी होगी, जो मैं या मेरा परिवार उपयोग करता है.
मैं एक भयावह असलियत से रूबरू कराता हूं. देखिये मेरे दादा जी के समय में नदियों का पानी भी पीने लायक होता था और वे पीते थे. पिता जी क़े समय में नदी का पानी पीने लायक नहीं रहा, पर पिताजी ने तालाब या कुएं क़े पानी से काम चला लिया.
अब मेरे समय में बोतल क़े पानी की जरूरत पड़ने लगी. मैंने भी किसी तरह बोतल व आरओ क़े पानी से काम चला लिया. हो सकता है कि मेरे बच्चे क़े समय भी इससे काम चल जाये.
मगर यह तय है कि उनके बच्चों क़े समय पर ये आरओ और बोतल का पानी दोनों काम नहीं करेंगे या उसकी कीमत इतनी ज्यादा होगी, जो हमारी औकात से बाहर की बात होगी. उसे खरीदना और मजबूरन हमारे बच्चों को उस पीड़ा को झेलना पड़ेगा, जिसके बारे में हम सोच कर भी पागलों जैसा व्यवहार करने लगते हैं।
कितना हृदय विदारक होगा वह दृश्य, जब आपका बच्चा आपसे पानी की मांग करेगा और आपको मजबूरन उसे कहना पड़ेगा कि ‘मेरे लाल आज बियर पी लो, अगली तनख्वाह मिलेगी, तो पानी जरूर ले आऊंगा’.
मुझे पता है कि ऐसा कु-अवसर मेरे या आपके समय में नहीं आएगा, परन्तु आएगा जरूर. तो सोचिये हम अपनी अगली पीढ़ी क़े लिए विषैली हवा क़े साथ साथ विषैले पानी का भी इंतजाम कर रहे हैं. तो सोचिये कैसी जहरीली विरासत तैयार कर रहे हैं हम अपनी आगामी पीढ़ी क़े लिए.
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