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शायद सन् २०१५ की बात है, शायद नही १४ फरवरी २०१५ की ही बात है एक आंदोलन से उभरकर सामने आये कुछ मुठ्ठी भर लोगों ने मुझे ३३ साल (उम्रभर) के भा.ज.पा. के प्रेम से मुह मोड़ने पर मजबूर कर दिया। सिर्फ अपने आप को विकल्प की राजनीतिक दल कहकर।
मेरे उस भ्रम को उस दिन तार तार कर दिया गया जब राज्यसभा के उम्मीदवारों की घोषणा हुई, उम्मीदवारी से नाम कुमार विश्वास का कटा और ठगा हुआ मै महसूस कर रहा था।
माननीय मुख्यमंत्री जी क्या आपको पता है कि देश की जनता सदियों से राजनीति कर रहे राजनीतिज्ञों से तंग थी तब आपने “विकल्प की राजनीति” नाम लिया और आपको प्रचंड बहुमत से आसन पर बैठा दिया ये सोचकर कि अब शायद कुछ अच्छा होगा।
मुख्यमंत्री जी क्या आपको सच मे लगता है कुमार विश्वास दिल्ली की सरकार गिराना चाहते थे?
क्या आपको नही लगता अगर सबसे ज्यादा अभी AAP को किसी की अगर जरूरत है तो वो कुमार विश्वास हैं?
कौन है आपकी सलाहकार समिति मे श्रीमान जो आपको ऐसे ऐतिहासिक निर्णय लेने की सलाह देता है?
हालांकि हम इस लायक तो नही हैं कि आपको सलाह दे सकें पर देश का नागरिक होने के नाते मै अपना कर्तव्य समझता हूं आपकी राज्यसभा के सारे रत्न दूर हो गये हैं कृपया इस आखरी नगीने को संभालें सर जी, यही वह आखरी रत्न है जो बिखरे हुए मोतीयों को वापस जोड़ने के लिए कड़ी का काम कर सकता है।
तो क्या फर्क पड़ता है इससे कि वो योगी आदित्यनाथ को उनके मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दे देते हैं?
तो क्या फर्क पड़ता है इससे कि वो आपकी मर्जी के खिलाफ सैनिकों के सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध करने की जगह सैनिकों मनोबल बढ़ाने वाला विडियो “we the nation” पोस्ट कर देते हैं?
इसे विरोध नही वृहद् विचारधारा वादी कहा जाता है जो AAP से कुमार विश्वास जी के साथ ही विलुप्त होती दिख रही है।
विरोधी विचार को आत्मसात करने का हिम्मत रखिए श्रीमान।
एक दल मे रहते हुए विचारधारा नही भावनाओं एक होना जरूरी है सर जी।
मत खेलो सर जी उन करोड़ो निरीह दिल्लीवासीयो की भावनाओं से श्रीमान हो सकता है आप २-३ साल तक और महाराज बने रह सकते हो आप दिल्ली के, पर क्या हो जायेगा उससे।
सर जी इतिहास ने किसी को माफ नही किया है, राजा तो जयचंद भी था पर कौन चाहता है अब जयचंद बनना।
अब लगता है कि …
हाँ सच मे दिल्ली की जनता है इतनी अभागी,
कि हीरे की चाह मे खदान से कोयला ही ले भागी
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