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जीवन के रंग

Social Issues
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इधर कितना अकेला मै, उधर है तू कहीं अम्मा,
मुझे सब लोग कहते हैं कि तू अब है नही अम्मा।
महकता है ये घर आंगन तेरी ममता के खुश्बू से,
मै कैसे मान लुं दुनिया मे अब तू है नही अम्मा।।

तुम्हारा जाना पता नही क्यों इतना तकलीफदेह हो गया है, बेचैनी ऐसी की सांस लेने मे भी तकलीफ का अनुभव होने लगता है कभी-कभी।

परीक्षाओं के समय रात रात भर जागना मेरे साथ, उठ-उठ कर नींद न आने के लिए चाय पिलाना कचोटता है मन को बहुत, नींद नही आती रात-रात भर एक बार तुम्हारी याद आ जाने के बाद।

क्या करूं? कैसे तय करूं? अपने और तुम्हारे बीच की कभी भी न तय कर पाने वाली वो हृदय-विदारक दूरी।

मेरे लिए मेरे से ज्यादा तुम्हारा सपना देखना, वो सारी बाते तुम्हारे मुह से सुनकर उस समय जो खुशी देती थी आज तुम्हारी अनुपस्थिति मे उतना ही दुख देती हैं, तुम्हारा अभाव जिस अधुरेपन का ऐहसास कराता है मुझे, उसकी भरपाई कैसे करूंगा और किससे करूंगा? कौन है जो तुम्हारी कमी नही होने देगा मुझे?

तुम जो इतनी पूजा-अर्चना और व्रत करती थी मेरी सलामती के लिए अब वो कौन करेगा ? क्यों अब चिंता नही होती मेरी?

मेरे कार्यालय से आने मे थोड़ी सी भी देर होने पर, पता करने के लिये पूरे घर को सर पर उठा लेने वाली, अब कैसे तुम बिना मेरी फिक्र रहती होगी? क्यों नही होती अब चिंता तुमको मेरी?

तुम्हारे लिए ही डाॅ सुनील जोगी ने कहा है कि ••

मेरे सारे प्रश्नों का वो, फौरन जबाब बन जाती थी,
मेरे राह के कांटे चुन वो, खुद गुलाब बन जाती थी।

कैसे मेरे से कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी तुम मेरे जटिल से जटिल सवालों का जवाब चुटकीयो मे दे देती थी?

कैसे घर मे किसी भी चीज की कमी होने पर वो कमी सिर्फ तुम्हारे ही हिस्से मे आती थी? क्यों नही आयीं वो कमीयां कभी मेरे या भइया के हिस्से?

सच मे माँ ये सारी बातें याद आने पर तुमसे लिपटकर चिल्ला चिल्ला कर रोने का मन करता है पर कहां से लाऊं तुम्हे ?किधर ढूंढ़ने जाऊं ?

दिनेश रघुवंशी ने भी तुम्हारे लिए ही कहा कि•••

किसी के जख्म ये दुनिया तो अब सिलती नही अम्मा,
कली दिल मे कहीं अब प्रीत की खिलती नही अम्मा।
मै अपनापन ही अक्सर ढ़ूढ़ता रहता हूं रिश्तो मे,
तेरी निश्छल सी ममता तो कहीं मिलती नही अम्मा।।

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