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मेरे बड़ी करीब से उठ कर तुम चली गयी कहीं!

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पता नही क्यों अभी भी अम्मा की याद बहुत आती है, जब भी कोई नई बात होती है तो अम्मा को बताने का ख्याल आता है दिल मे।

फिर एकदम से ध्यान आता है कि अब तो वो रही नही फिर मन मसोस कर रह जाता हूं। माँ से दुबारा मिलने की कीमत अगर मौत होती तो मै वो भी देने को तैयार हूं। पर तरीका क्या है समझ नही आता है।

छोटी छोटी बाते अम्मा को बताने की आदत पड़ी थी अब वो नही कर पाता हूं। जिंदगी बहुत बड़ी लगने लगी है उसके बाद।

कई बार रात मे उसके डांट के साथ उठना की उसका हिस्सा तु खा गया अब बहुत रुलाता है मुझे, क्यों नही बोलती? क्यों नही थपथपाती मुझे? क्यों नही डांटती मुझे?

ये बिल्कुल सच है कि जीते जी मैने बहूत परेशान किया तुम्हे, पर उन परेशानीयों की सजा तुम ऐसे तो नही दे सकती मुझे, जीते जी तो तुमने कोई शिकायत नही किया मेरे बहुत दुख देने के बाद भी? फिर अब ऐसा कैसे कर सकती हो? मुझे विश्वास नही होता।

हॉस्टल से आने पर समय पर खाना ना मिलने या कभी कभी कम पड़ जाने का बताना तुम्हे कितना रुलाता था, अब क्यों नही होती चिंता तुमको?

इन ३-४ महीनो मे मै इतना तो बड़ा भी नही हो गया कि तुम चिंता करना बंद कर दो!!

तुम्हारे देहांत तक पता नही क्यों मै अपने आप को बच्चा ही समझता रहा, मुझे पता नही क्यों ये एहसास ही नही हुआ कि तुम मर भी सकती हो।

तुमसे दूरी अब बहूत तकलीफ देती है मुझे, तुम्हारा वो जलता हुआ शरीर आज भी याद है मुझे, क्या करुं किससे कहूं कोई पुरी नही कर सकता तुम्हारी कमी।

देखा था मरते औरों को भी मगर,
बिन तेरे जिंदगी भी होगी ये सोचा न था।
चाहत तो था गैरों से भी मगर …
प्यार ऐसा भी होगा तेरा सोचा न था।।

इस अनंत ब्रम्हांड मे पता नही कभी मिलना हो भी पायेगा या नही यहां जिंदा लोग भी बिछड़ कर कभी मिल नही पाते….

पर मेरी जिंदगी के आखरी लम्हे तक तुम्हारा वो लाड़ याद तो रहेगा मुझे।

तुम ऐसे कैसे मुह मोड़ सकती हो मुझसे? मै तुम्हारे जिगर का ही हिस्सा हूं इससे कैसे मुकर सकती हो तुम? बिन मेरे कैसे तुम बिना तड़़पे रह सकती हो भले ही तुम्हे बैकुंठ ही क्यों न मिला हो?

स्वर्ग के तमाम सुख भी, मेरे द्वारा दिया हुए दुख की कमी महसुस कराता होगा तुम्हे, ऐसा विश्वास है मुझे!

ना हाथ थाम सका ना पकड़ सका मै आँचल,
मेरे बड़ी करीब से उठ कर तुम चली गयी कहीं!!

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