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रेल की नहीं, बजट की छुक-छुक

ummeed
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वाह, क्या अर्थशास्त्र लगाया है मंत्री जी ने. मीठा-मीठा खा, कड़वा-कड़वा थू. पब्लिक को बेवकूफ समझ रखा है. मैं अचानक से चौंक पड़ा. ये वर्मा जी को क्या हो गया? कुछ देर पहले रेल मंत्री की शायरी की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे. क्या करें कभी तो दिल की सच्चाई जुबां पर आ ही जाती है. मैं और वर्मा जी (मेरे पड़ोस में ही रहते हैं) अपने घर में रेल बजट में हो शेरों शायरी का आनंद ले रहे थे. खैर, बात वर्मा जी के गुस्सा होने की हो रही थी. मैंने कहा कि कोई बात नहीं वर्मा जी, किराया बढ़ा भी तो 9 साल बाद है. वर्मा जी बोले, मैं तो कहता हूं कि रेल का किराया बढऩा ही नहीं चाहिए था. (रेल मंत्री ने अपनी आखिरी शायरी के साथ बजट भाषण को समाप्त कर चुके थे. मुझे अफसोस था कि मैं आखिरी की दो पंक्तियां वर्मा जी के कारण नहीं सुन पाया था). खैर, वर्मा जी की बात खत्म नहीं हुई थी. वो कहे जा रहे थे कि ये नेता तो खुद तो करोड़ों में खेलते हैं, आम पब्लिक को मात्र पैसों में तोलते हैं. इतने में वर्मा जी का 10 वर्षीय बेटा कमरे में आ गया और पूछने लगा पापा आपके पास 2 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे हैं? वर्मा जी ने पूछा, क्यों? अब आप जब कानपुर जाएंगे तो आपको टिकट खरीदने के लिए चाहिए होंगे न? वर्मा जी मेरी शक्ल देखने लगे. मैंने बच्चे की मासूमियत को देखकर कहा बेटा आपके पापा के पास है. नहीं होंगे तो मैं दे दूंगा. वो कुछ और पूछे मैंने उससे बाहर जाकर खेलने को कह दिया. जिसका मुझे डर था वही हुआ, वर्मा जी ने कहा. अब मैं इन बच्चों को कैसे समझाऊंगा कि बेटा यहां इन पैसों की कोई जरुरत नहीं है. टिकट तो रुपए में ही लेना होगा. वर्मा जी लगातार गंभीर होते जा रहे थे. उन्होंने अपना भाषण जारी रखा. उन्होंने आगे कहा कि बजट तो दो दिन बाद आने वाला है लेकिन दिनेश त्रिवेदी ने तो रेल बजट का अपने तरीके का ही अर्थशास्त्र गढ़ डाला है. किराया बढ़ाया पैसे में और अंतर 50 से 100 या इससे भी कहीं ज्यादा का. इतना कहकर वर्माजी शांत हो गए. 10 मिनट के मौन के बाद मैं समझ गया कि वर्मा जी अब मेरी प्रतिक्रिया के इंतजार में है. ये एक साहसिक रेल बजट था, मैंने कहा. वर्मा जी मुझे फटी आंखों से देखने लगे. प्रैक्टिकल बनिये वर्मा जी, दूसरी प्रतिक्रिया सुनने के बाद वर्मा जी कुर्सी से उठने की मुद्रा में आ गए थे, इतने में मैंने उनका हाथ पकड़ लिया. फिर मैंने अलापना शुरू किया. रेल की हालत काफी खस्ता हो चली थी. अगर, जो सुरक्षा और सुविधाओं की गारंटी रेल मंत्री ने पब्लिक को दी है, वो भविष्य में पूरी होती हैं तो ये किराया भी कुछ ज्यादा नहीं लगेगा. मैंने आगे कहा कि आपको शायद पता नहीं कि हमारे इकॉनोमी से 15 साल पीछे चलने वाले पाकिस्तान की रेल की स्थिति हमसे कहीं बैटर है. वहां के रेलवे स्टेशन हमारे स्टेशनों काफी अच्छे हैं. यहां तक बांग्लादेश से भी हम पीछे हैं. और हम आज तक अपने ट्रेनों में ग्रीन टॉयलेट तक डेवलप नहीं कर पाए. वर्मा जी कुछ बेहतर करने के लिए कुछ कढ़े उठाने काफी जरूरी है. मैं अपनी बात खत्म कर चुका था. वर्मा जी भी निकल गए और मैंने भी ऑफिस जाने की तैयारी शुरू कर दी. शाम तक बजट को लेकर काफी गहमा रही. देर रात रेल मंत्री का इस्तीफा भी मंजूर हो चुका था. मैं भी ऑफिस से घर जाने के लिए पैकअप करने की तैयारी में था, इतने में फोन घंटी बजी. देखा तो वर्मा जी का फोन था. मेरे फोन रिसीव करते ही बोल पड़े आपके क्रांतिकारी रेल मंत्री तो शहीद हो गए. मैं सिर्फ हंस पड़ा…और दिल में कहा कि क्रांतिकारी भी ऐसे ही शहीद हुए होंगे?

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