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मैं रेल हूं. मेरे कई नाम हैं. कई मुझे नौचंदी कहता है कोई संगम. राज्यरानी भी मैं ही हूं. कहीं मैं लोकल हूं तो कहीं एक्सप्रेस और कहीं सुपरफास्ट भी. खैर, मैं अपने नाम के विषय में बात करके समय बर्बाद नहीं करूंगी. मैं बताना चाहती हूं कि अक्सर लोगों को मुझसे तरह-तरह की शिकायत होती है. एक महाशय ने तो यहां तक शिकायत कर दी कि हमेशा दो घंटे लेट आने वाली ट्रेन एक घंटा लेट कैसे हो गई? 14 मार्च को मेरे नाम पर बजट आने वाला है. तो सम्मानित यात्रीगण थोड़ी मेरी भी सुन लीजिए…
धागा खींचते रहते हैं
कई पैसेंजर ये बिल्कुल भी नहीं सोचते कि मैं उनके लिए ही हूं. उन्हें रोज सफर भी करना है. इसके बावजूद मेरे किसी भी हिस्से को नुकसान पहुंचाने में कोई गुरेज नहीं करते हैं. सीट की सिलाई का कहीं से धागा निकल जाए, बस जब तक पूरी सिलाई न उधड़ जाए तब तक कुछ पैसेंजर धागे को नोचते रहेंगे. सीट की दुर्गति होने तक वो प्रक्रिया चलती रहती है. फिर पैसेंजर खुद ही प्रचारित करते हैं इस ट्रेन में जाने का कोई फायदा नहीं, इसकी तो सीटें खराब हैं. अरे, मैं कहती हूं किसी को कोई हक नहीं कि मुझे बदनाम करे.
डस्टबिन भी
मैं अक्सर देखती हूं कि पैसेंजर द्वारा कोच में खाने पीने का सामान कोच में ही फेंकते हैं. मुझे लगता है कि रेल में सफर करने वाले लोग सफाई पसंद नहीं है. जिस तरह से पैसेंजर ट्रेन में गंदगी फैलाते हैं, उसी तरह वो अपने घर में भी गंदगी में रहते होंगे. चाय के कप से लेकर चिप्स और बिस्किट के रैपर तक सभी ट्रेन के अंदर फेंके जाते हैं. यहां तक की रेल में लोग थूकने तक से गुरेज नहीं करते हैं. क्या पब्लिक की कोई जिम्मेदारी नहीं है?
क्या बेडिंग शू ब्रश है
ट्रेनों के एसी कोच में सफर करने वाले कुछ यात्री भी कम नहीं है. अपनी मंजिल पर पहुंचने के बाद वही पढ़े लिखे कुछ पैसेंजर्स ओढऩे और बिछाने वाली चादरों से अपने जूतों को साफ करते हैं. वो ये नहीं सोचते हैं कि कहीं वापसी में भी उन्हें यही कोच दोबारा मिल जाए तो.
देरी की वजह
विंटर में फॉग के दौरान ट्रेन लेट होने की जिम्मेदार मुझे ही क्यों ठहराया जाता है. मैं फॉग को कैसे रोक सकती हूं? लेकिन पैसेंजर तो रेल बिरादरी को ही गाली देते हैं. नौचंदी लेट हो गई, संगम देरी से आई. क्यों देरी से आई? देरी से आने के कारणों का पता लगाकर उन्हें क्यों दूर नहीं किया जाता.
दुर्घटनाओं में मेरा हाथ नहीं
देशभर में रेल दुर्घटनाएं होती हैं. मुझे आज भी वो मंजर याद है, जब एग्जाम देने गए छात्र ट्रेन की छत पर बैठकर सफर कर रहे थे. इलेक्ट्रिक वायर की चपेट में आने से कई छात्रों की मौत हो गई थी. बच्चों की जान जाने बदनाम कौन हुआ? मैं और कौन? लोग मुआवजा लेकर और सरकार मुआवजा देकर अपना पीछा छुड़ा लेती है.
सिर्फ अपना नाम करते हैं
सब जानते हैं कि रेल मंत्रालय और रेल को दुधारू गाय कहा जाता है. लालू प्रसाद यादव से लेकर ममता बनर्जी रेल मंत्रालय की कमाई दिखाकर सदन में वाहवाही लूट चुके हैं. कभी आपने सुना है कि हमारे इलाके की किसी ट्रेन को अपने अच्छे रखरखाव और बर्ताव के लिए इनाम मिला हो.
मेरी आंखों के सामने
टिकट चेकर से लेकर पुलिस तक ने रेल को करप्शन करने का अड्डा बना लिया है. खुलेआम पैसे लेते हैं. पैसेंजर के सामने. फेस्टिवल सीजन में बकायदा लोगों की मजबूरी का बखूबी फायदा उठाया जाता है. पैसेंजर्स यात्रा पूरी करने के बाद कर्मचारियों को भला बुरा कहने के साथ रेल की भी बुराई करते हैं. अजी, मैंने पैसेंजर का बिगाड़ा है!
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