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वैसे तो आप सभी होली के दिनों में होली मिलन समारोह में जाते होंगे. वहां रंग और भंग के नशे में झूमते हैं, नाचते हैं और दुश्मनी को दोस्ती में बदलते हैं. मान लीजिए अगर इस बार इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया आम चुनावों के पहले चरण से एक होली मिलन समारोह का आयोजन रखे उसमें सभी प्रत्याशियों को बुलाए. जहां रंग-भंग के गठजोड़ हो तो उस होली मिलन का कैसा नजारा होगा? जी हां, कुछ ऐसी ही पेशकश आपके सामने लेकर आ रहा हूं. इलेक्शन कमीशन की ओर से विक्टोरिया पार्क में पूरी तरह तैयारियां हो चुकी है. कांग्रेस, भाजपा, बसपा सपा रालोद देशभर के तमाम प्रत्याशी (संभावित भी शामिल) पहुंच चुके हैं. राहुल, मोदी, सोनिया, सुषमा, नगमा, राजनीति के मौजूदा दादा मुनि भी पधारे हैं. विक्टोरिया पार्क के प्रांगण में मौजूद लोग पूरी तरह से होली के रंग और भंग के गठजोड़ से तृप्त हो चुके हैं. होली के रंगों में कोई किसी को नहीं पहचान रहा है. भंग ने इन लोगों के दिमाग के कपाट पर ताले जड़ दिए हैं. जब हम इनके बीच गए तो अजीब सा नजारा देखने को मिला. आइए आपको भी बताते हैं…
सोनिया गांधी : अ से अनार, ब से बकरी, इ से इमली.
राहुल : मां, क्या कर रही हो?
सोनिया : दिख रही नहीं हिंदी सीख रही हूं. फिर तेरी बहन कहेगी आपने इस बार भी रैली का बेड़ा गर्क कर दिया. रायबरेली में तो चल जाता है. लेकिन किसी और राज्य में नहीं चलेगा.
राहुल : वो तो मुझे भी कहती है. चुप रहाकर चुप रहाकर. अब कोई तो उसे समझाए अब मैं बड़ा हो गया हूं.
सोनिया : वो सही कहती है. तू अभी बच्चा ही है. मेरा 40 साल का छोटा सा बच्चा. चल हट हिंदी सीखने दे.
(दूसरी जगह तो सीन ही कुछ और चल रहा था. नवजोत सिंह सिद्धू नशे में अड़े हुए थे और यूं कह रहे है थे लडऩा है तो हसीना से वरना किसी और से नहीं तो हमने भी कैमरा उसी ओर घुमा दिया.)
नवजोत सिंह : ओए राजू (राजनाथ सिंह) जब से सुहाग देखी है तब से दिल ओले करता है यार. ओए मुझे नहीं जांणा अमृतसर. यहीं से लड़ लूंगा चुनाव.
राजनाथ : आप क्या नहीं जाएंगे पाजी. आपके लिए तो अकाली वालों ने ही मना कर दिया है. अब तो मजबूरी ही बन रही है. चलो बात करेंगे.
(उधर नगमा अपने ठुमको को सभी को रिझा रही थी. नगीना के बारे में सोचकर वो सभी नगमा को सिर्फ एक ही नाम से पुकार रहे थे. बहनजी. इस कुछ बसाई बिदके हुए थे.)
मुनकाद अली : देखा सिद्दीकी साहब लोग किस तरह से इस हीरोइन को बहन जी कह कह रहे हैं?
सिद्दीकी : कहने दो भाई जान. इस चुनाव में बहन जी फर्क सामने आ जाएगा. देख नहीं रहे हो. अखलाक भाई कुछ कम खर्च नहीं कर रहे हैं. पिछले दो महीने से काम में जुटे हुए है.
मुनकाद : लेकिन भाई इस बार नगमा ने आकर गलती कर दी. नुकसान बहुत होगा.
सिद्दीकी साहब : हमारे लिए तो दयानंद ठीक थे.
सभी को तीनों खाने चित करते और अपने पौं बारह हो जाते. लेकिन आज तो हमसे होली का टीका लगाने को तैयार नहीं.
(कल्याण सिंह के दिखाई देने पर दोनों गुलाल की प्लेट लेेकर उनकी ओर दौड़ते हैं, लेकिन कल्याण उनकी तांकते भी नहीं और भाजपा पीएम इन वेटिंग के पास पहुंचते हैं. जहां वो गुलाब की पत्तियों को तोड़कर कुछ अपना ही गणित निकाल रहे हैं…एक पत्ती-पत्ती तोड़ते हुए कुछ यूं बड़ा बड़ा रहे हैं.)
मोदी : यूपी…गुजरात, यूपी-गुजरात.
उमा : क्या कर रहे हो मोदी भैया?
मोदी : कुछ नहीं सोच रहा हूं कहा से चुनाव लड़ूं? यूपी की बनारस सीट से या गुजरात की वडोदरा से?
उमा : कहीं से भी लड़ लो. जीत तो आपकी पक्की है.
मोदी : सीट हो तो जीत भी लूं, लेकिन अपनों कैसे जीतू? मेरा नाम प्रस्तावित होते ही जोशी के करंट ही दौड़ गया. एक बुड़ऊ को तो ठिकाने लगा चुका हूं. अब इसकी बारी लगती है.
उमा : धीरे बोलो भैया? इसका शक अभी सबका राजू पर है. राजू ही ठीक करेगा इसे.
दूसरी ओर देखते हैं तो अपने अजीत बाबू अमर और जया को फूले नहीं समा रहे हैं, और एक ही गाना गुनगुना रहे हैं. ‘दे दे प्यार दे प्यार दे प्यार दे दे Ó. उसी जुगलबंदी में अमर ने बैंड वाले से बाजा लेकर (अपनी पुरानी आदत के अनुसार) बजा रहे हैं. अरे मुलायम को क्या हुआ? देखकर तो ऐसा लग रहा है कि वो चुनाव की तैयारी कम और तीसरे मोर्चे के टूटने का शोक ज्यादा मना रहे हैं.
मुलायम : ‘मंजिलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह, कोई बढ़कर साथ न दें दिल भला फिर क्या करें.
शाहीद मंजूर (गुनागुनाते हुए) : ‘किसका ये है तुमको इंतजार मैं हूं ना…देख लो इधर भी एक बार मैं हूं नाÓ
जहां लालू थे. वहां काफी भीड़ जमी थी. जिनके पीछे एक तख्ती लटकी थी. लिखा ‘घर में बच्चे दो ही होते हैं अच्छे, इन नुस्खो को अपनाओ और लालू परिवार परामर्श केंद्र में आओÓ. नितीश और शरद कीद त्वरित टिप्पणी आती है.
नीतीश : पगला गए है लालू? दो घूंट लगाई गई नहीं और हो गए ब्रह्मïचारी? अपने आपको नहीं देखते. पूरी किक्रेट टीम लेकर बैठे हैं.
शरद : देखते रहिए ना नौटंकी. कांग्रेस जरूर देगी परिवार कल्याण मंत्रालय.
अरे-अरे ये टोपीधारी. ओ हो इस होली मिलन में केजरी को कैसे भूल सकते हैं. वैसे इन्हें देखकर सब हंस क्यों रहे हैं. झाडू सी हो गई है जिंदगी. इसलिए सब बाहर की ओर धकेल रहे हैं. गेट पर खड़े दो ट्रकों को देखकर सब अचंभित हैं. अरे ये तो, दयानंद और राजेंद्र खड़े हैं. बड़े बड़ों की हालत को देखकर वो भी अचंभित और सदमें हैं. अब समारोह से सब धीरे-धीरे जा रहे हैं. तो हम भी अब समाप्ति की ओर हैं. अचानक हमारी नजर सफाई कर्मियों के साथ अपने मेयर दिखे. उनके चेहरे पर खिली मंद मुस्कुराहट इस बात का अहसास करा रही थी कि सफाई के बहाने ही सही इस होली का हिस्सा तो बने.
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