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योगी को ‘प्रभु’ की सला‍ह- मुजफ्फरनगर का नाम बदलने का वक्त आ गया

ummeed
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कुछ भी कहो, लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार में ‘प्रभु’ की लीला अपरंपार है। हादसे पर हादसे होते जा रहे हैं और प्रभु चुपचाप बैठे देख रहे हैं। इस सरकार में कई रेल हादसे हो चुके हैं। लोग काल का ग्रास बन चुके हैं। खैर, योगी जी चिंतित हैं। प्रभु से मदद मांग रहे हैं, लेकिन प्रभु तो लाचार हैं। क्योंकि महाप्रभु उनसे पहले बयान दे चुके हैं। अपनी संवेदनाएं प्रकट कर चुके हैं। संवेदनाओं का कोटा पूरा है। यहां हर कोई मासूम जानों का चटोरा है। हमें तो फिक्र है योगी की। गोरखपुर के बाद मुजफ्फरनगर ने उन्हें चिंता में डाल दिया है। प्रभु से मिलें या महाप्रभु से, असमंजस में डाल दिया है। प्रभु का कहना है, अब मुजफ्फरनगर का भी नाम बदलने का वक्त आ गया है।


Train accident


मैं यहां कोई कविता नहीं लिख रहा हूं। अगर आपको ऐसा लग रहा है, तो यह मेरे लिखने की कमजोरी है, आपके समझने की नहीं। खैर, बात योगी और प्रभु की। मगर पहला सवाल, ये महाप्रभु कौन हैं। ये मुझे समझाने की जरूरत नहीं। जिन भक्तों के लिए लिखा है, वे अपने महाप्रभु को भलिभांति जानते हैं। खैर, बात योगी और प्रभु के संवाद के बारे में। खतौली ट्रेन हादसे के बाद अगर योगी और प्रभु मिलते हैं, तो उनके बीच में क्या बातें होंगी और उस वार्ता का क्या रिजल्ट नि‍कलेगा, उसका चित्र खींचने की कोशिश की है। आपको ऐसे मौके पर इस व्यंग्य को पढ़कर थोड़ा गुस्सा भी आ सकता है। सच मा‍नियेगा, मैं भी अपने आपसे बहुत गुस्सा हूं, लेकिन दिमाग से ज्यादा दिल की सुनी है। ऐसे में लैपटॉप पर अंगुलियां अपने आप चल पड़ीं। खैर, वक्त जाया नहीं करूंगा। मंच पर किरदार आने को हैं।


(योगी जी प्रभु के सामने तेजी से आगे आते हुए)

योगी: त्राहिमाम प्रभु, त्राहिमाम। आपके राज में ये क्या हो रहा है। कानपुर तक तो ठीक था, आपका असर तो मुजफ्फरनगर तक पहुंच गया है।

प्रभु: शांत वत्स, शांत। ऐसी लीलाएं तो होती ही रहती हैं। विश्व के सबसे बड़े रेलवे ट्रैक पर इस तरह की लीलाएं तो आम बात हैं।

योगी: ना ना प्रभु, ऐसा ना कहिए। कुछ कृपा दृष्टि हमारे ऊपर भी रखिये।

प्रभु: अब तो एक ही उपाय है। कर सकोगे? वर्ना चले जाओ, कुछ न पा सकोगे।

योगी: ना ना प्रभु, कुछ तो बताएं। बहुमत होने के बाद सिंहासन डोल रहा है। कुछ तो रास्ता दिखाएं।


(प्रभु मंद-मंद मुस्कुराते हुए, गले से पानी का एक घूंट उतारते हुए)

प्रभु: शांत वत्स शांत। कुछ उपाय करने होंगे। सब ठीक हो जाएगा। जैसे मुगलसराय को निपटाया था, उसी तरह मुजफ्फरनगर निपटाना होगा। तभी बदलेगी मुजफ्फरनगर की दशा और दिशा। तभी बनेगी रेल की नई पटरियां और बहेगी विकास की गंगा।


(योगी भी मुस्कुाराते हुए)

योगी: वाह प्रभु वाह! क्या तरकीब बताई है। मामला शांत होने दो, अब मुजफ्फरनगर की बारी है।

प्रभु: तो क्या नाम सोचा है। कुछ तो बताकर जाओ।

योगी: जब हल्‍ला होगा तो अपने आप पता चल जाएगा। मामला थोड़ा पकने तो दो तभी तो मुद्दा बनेगा। जय श्री राम।

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