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अनजानी जगह में रोचक सोच

वर्तमान समाज
वर्तमान समाज
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हमारा पितृसतात्मक समाज आज कई मायनों में महिलाओं को एक कमजोर पक्ष के रूप में पेश करता है और इस समाज के भेदभाव को हम सदियों से स्वीकार किये हुए हैं और यह प्रथा शांतिपूर्वक व सुचारू रूप से चल रही है.पितृसत्तात्मक समाज के कुछ दुर्भाग्य पहलू भी हैं और हमारे समाज ने उसके लिए कड़े कानून भी तैयार किये हैं लेकिन फिर भी क्या यह उचित है? जब आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं. आज सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि हमारा समाज पितृसत्तात्मक है और इसमें कोई परेशानी भी नही है लेकिन यदि कहा जाये की आज भी कोई ऐसा जगत है जहां मातृसतात्मक समाज है ? तो शाएद भारत की आधी से ज्यादा आबादी इस कथन को एक निष्प्रभावी परिहास मानेगी क्योंकि एक तो यह विचित्र बात है और दूसरा यह उस क्षेत्र से सरोकार रखती है जहां की खबरे बाकि हिन्दुस्तानियों को नही सुनने को मिलती,लेकिन खबरों व् जानने के इच्छुक लोग इस तथ्य से अवगत हैं कि भारत का एक छोटा सा प्राकिर्तिक रूप से खूबसूरत जिसे “बादलों का वास”के नाम से भी जाना जाता है अपने आप में एक अधभुत धारणा के साथ चल रहा है. दरअसल यहाँ की एक जाती जिसे” खासी ” के नाम से जानते हैं की वर्षों पुरानी परंपरा के मुताबिक परिवार की सबसे छोटी बेटी सभी संपत्ति की वारिस बनती है, पुरुषों को शादी के बाद अपनी पत्नियों के घरों में जाना पड़ता है और बच्चों को उनकी मांओं का उपनाम दिया जाता है,और यदि किसी परिवार में कोई बेटी नहीं है,तो उसे एक बच्ची को गोद लेना पड़ता है, ताकि वह वारिस बन सके. नियमों के मुताबिक उनकी संपत्ति बेटे को नहीं दी जा सकती है. यह परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है.और इसे लेके वहां आंदोलन भी हुए और जारी भी हैं पुरुष अधिकार कार्यकर्ता कीथ पारियात के शब्दों में “आप को पता है कितना महिलाओं को खासी पक्ष सिर्फ अस्पताल में श्रम वार्ड के लिए एक यात्रा लेने के लिए चलिए “वह कहते हैं ” यदि वह एक लड़की है,तो वहां के बाहर परिवार से ख़ुशी से चिलायेंगे  और यदि यह एक लड़का है , तो आप उन्हें विनम्रता के  साथ बुदबुदाते सुनेंगे  जो भी भगवान देता है ठीक ही  देता है। और उनके अनुसार इस मातृसतात्मक समाज में “पुरुष खुद को बेकार समझतें हैं” अब इससे इंसान की मानसिकता का पता चलता है कि हम आज कितने उलझ चुके हैं कि लोग अपनी सदियों पुरानी परम्परा के खिलाफ खुद को बेकार समझ रहे हैं और यह केवल एक छोटे से राज्य की हक्कीकत है. इस मानसिकता को को हम किनारे नही कर सकते क्योंकि हम इसके आदि हो चुके हैं और यह अब हमारी जिंदगी का हिस्सा है लेकिन इस राज्य की कुछ “विचित्र” परम्परा को जानकर खुशी हुई.

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