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इधर अब लगने लगा है कि देश में व्यवस्था में किसी न किसी रूप में घुन लग गया है। आये दिन हमारे सामने कुछ न कुछ इस तरह की घटना पेश आती है कि इस सिस्टम के फेल होते जाने का अहसास और तीव्र होता जाता है। अभी दो-तीन दिन पहले अदालत की ओर से राय माँगी गई थी देह व्यापार को कानूनी स्वरूप देने के सम्बन्ध में और अब हमारे देश के बुद्धिजीवी माने जाने वाले लोगों ने रिश्वत को कानूनी बनाने के सम्बन्ध में अपनी सहमति व्यक्त की है।
एक टी0वी0 चैनल के कार्यक्रम में चल रही बहस के अनुसार रिश्वत को कानूनी बनाये जाने के प्रति आमराय बनती दिखाई दी। ऐसी स्थितियों को हास्यास्पद ही कहा जायेगा कि जिन स्थितियों को हमारी सरकार, हमारा शासन-तन्त्र रोक पाने में असफल हो जाता है उसे हमारा शीर्ष सत्ता-तन्त्र कानूनी मान्यता देने के प्रति उत्सुक हो जाता है। सेक्स वर्कर्स को, देह व्यापार को कानूनी मान्यता देने के प्रति अपना विरोध दर्ज करवाने पर और इसको लेकर राष्ट्रीय बहस करवाने की माँग को लेकर कुछ लोगों ने आपत्ति दर्ज की और अपना तर्क दिया कि इसको कानूनी मान्यता देने से सेक्स वर्कर्स को परेशानीसे बचाया जा सकेगा, देह व्यापार के प्रति लोगों की सोच बदलेगी। वाह! इसे कहते हैं अपनी हार को कुतर्क के सहारे से जायज सिद्ध करते हुए उसे विजय का जामा पहनाना।
अब जबकि रिश्वत को कानूनी मान्यता प्रदान करने की वकालत भी होने लगी है और इसके पीछे के तर्क हैं कि इसे रोक पाना आसान नहीं है और समाज में यह सहज स्वीकार्य रूप में दिखाई भी दे रही है। इस कुतर्क को यदि तर्क का स्वरूप दे दिया जाये तो और भी घटनायें ऐसी हैं जिन्हें कानूनी मान्यता प्रदान कर देनी चाहिए क्योंकि सरकार, शासन-तन्त्र इन तमाम सारी घटनाओं को रोक पाने में असफल है, नाकाम है। अपहरण, बलात्कार, चोरी-डकैती, हत्या, दहेज-हत्या, कन्या भ्रूण हत्या आदि ऐसी ही घटनायें हैं जिनको सरकार रोक पाने में पूर्णतः असफल ही रही है।
आइये हम इंतजार करें सरकार के आगामी कदमों का जिसके द्वारा वह पहले ही समलैंगिकता, लिव इन रिलेशनशिप को सामाजिक स्वीकार्यता, कानूनी मान्यता दे चुकी है और अब देह व्यापार की ओर उनको बढ़ाया है; रिश्वत के लिए भी बहस शुरू हो चुकी है। कल को और दूसरे अनियन्त्रित मुद्दों को भी सरकार कानूनी मान्यता देने के प्रति जागरूकता दिखायेगी।
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