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असंतोष भरा निकाय चुनाव

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव संपन्न हुए. प्रशासनिक दृष्टि से सब कुछ शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ. कहीं कोई दंगा-फसाद नहीं, कहीं कोई बलवा नहीं, कहीं कोई उपद्रव नहीं. प्रशासन के लिए किसी भी चुनाव को संपन्न करवाना अपने आपमें बहुत बड़ी चुनौती होती है और वर्तमान चुनाव की चुनौती उसने सहजता से पूरी कर ली. इन निकाय चुनाव का एक दूसरा पहलू ये भी रहा कि प्रशासनिक दृष्टि से भले ही ये चुनाव पूरी शांति से निपटे हों मगर सामाजिक रूप से जबरदस्त अशांति इन चुनावों में देखने को मिली. जहाँ-जहाँ परिचित लोग थे, मित्र-सहयोगी थे वहां से आसानी से खबरें सामने आती रहीं. टिकट वितरण को लेकर प्रत्याशियों में असंतोष रहा. उसके बाद कुछ प्रत्याशी बागी बने, कुछ अपना टिकट होता न देख पहले ही निर्दलीय की राह चल दिए. उसके बाद विभिन्न दलों में टूट-फूट का सिलसिला जारी हुआ. बहुत सारी जगहों का जैसा आकलन किया था वैसा कुछ-कुछ वहाँ के हालातों से सामने आता दिखा भी मगर अपने गृह जनपद की स्थिति को आँखों देखा कहा जा सकता है. यहाँ की बहुतायत सीटों पर असंतोष जैसी स्थिति रही, बगावत की स्थिति रही, मतदाताओं के खरीद-फरोख्त की स्थिति रही. गृह जनपद जालौन की चारों नगर पालिकाओं में से सर्वाधिक चर्चित सीट उरई की रही.

उरई नगर पालिका परिषद् में भाजपा सहित अन्य दलों के टिकट वितरण में असंतोष होने से चार प्रमुख दलों-भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा में से सिर्फ कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी ऐसी रही जिसमें बगावत नहीं हुई. भाजपा, सपा, बसपा में टिकट वितरण को लेकर नाराजगी रही और उससे बागी प्रत्याशी मैदान में उतर आये. इन बागियों में भी सर्वाधिक चर्चित प्रत्याशी अनिल बहुगुणा रहे. उरई नगर पालिका परिषद् अध्यक्ष पद हेतु चुनावी मैदान में उतरे बाईस प्रत्याशियों में सर्वाधिक चर्चित प्रत्याशी अनिल बहुगुणा ही रहे. टिकट घोषित होने वाले दिन ही महज दो घंटे के भीतर वैश्य समाज की बैठक सम्पन्न हुई, जिसमें सर्वसम्मति से, दबाव से भाजपा के बागी प्रत्याशी के रूप में अनिल बहुगुणा को मैदान में उतार दिया गया. भाजपा से अलग होने के बाद भी भाजपा की जिला कार्यकारिणी, नगर कार्यकारिणी सहित विधायकों एवं अन्य वर्तमान-पूर्व पदाधिकारियों द्वारा बागी प्रत्याशी को मदद की जाती रही. पूरे चुनाव प्रचार जो सामाजिक असंतोष किसी प्रतिद्वंद्वी के रूप में दिखाई देना था, वो तो ज़ाहिर था किन्तु चुनाव परिणामों के बाद निर्वाचित अध्यक्ष अनिल बहुगुणा द्वारा दिए गए बयानों के बाद उस तबके में भी असंतोष दिखाई दिया जिसने बहुगुणा जी को निर्दलीय या फिर कहें कि भाजपा को हराने में सक्षम व्यक्ति को वोट किया.

चुनाव जीतने के बाद निर्वाचित अध्यक्ष अनिल बहुगुणा द्वारा एक बैठक में सार्वजनिक रूप से बयान दिया गया कि वे सदैव भाजपा में थे, भाजपा में रहेंगे; पार्टी से बगावत करने के बाद वे लगातार प्रदेश अध्यक्ष के संपर्क में रहे; अध्यक्ष की मौन सहमति उनके साथ रही; वे उप-चुनाव में भाजपा प्रचार की जिम्मेवारी भी संभाल रहे हैं; भाजपा से न तो हटाये गए थे, न उन्होंने छोड़ी थी; भाजपा नेतृत्व ने उन पर कोई कार्यवाही भी नहीं की. इस तरह की बयानबाजी से वे लोग ज्यादा आहत दिखे जिन्होंने अनिल बहुगुणा को निर्दलीय समझ वोट किया था. कई लोग इस तरह का आक्रोश, असंतोष प्रदर्शित करते दिखाई दिए. जैसा कि सामाजिक असंतोष पार्टी स्तर पर प्रचार के दौरान दिखाई दे रहा था कुछ उसी तरह का असंतोष परिणाम घोषित होने के बाद भी दिखाई दिया. इस असंतोष में अबकी नव-निर्वाचित सभासद भी शामिल दिखे. यदि इस तरह का असंतोष अभी शपथ-ग्रहण वाले दिन ही दिखाई दे रहा है तो आशंका है कि समूचा कार्यकाल शांति से संपन्न होगा. इसका असर अध्यक्ष या सभासदों की सेहत पर क्या पड़ेगा ये अलग बात है किन्तु सत्य यह है कि इससे उरई के विकास पर अवश्य ही असर पड़ेगा.

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