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एक थी नीरजा

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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आज साहसी महिला, नीरजा भनोट का जन्मदिन है जिसे अशोक चक्र से सम्मानित किया गया. इनका जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ पंजाब में हुआ था. आपके पिता हरीश भनोट मुंबई में पत्रकारिता क्षेत्र में थे. नीरजा की प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर चंडीगढ़ में हुई, इसके बाद की शिक्षा मुम्बई में हुई. वर्ष 1985 में उनका विवाह संपन्न हुआ किन्तु रिश्ते में स्नेह-प्रेम न होने के चलते वे विवाह के दो महीने बाद ही मुंबई आ गयीं. इसके बाद उन्होंने पैन एम एयरलाइंस में नौकरी के लिये आवेदन किया और ट्रेनिंग पश्चात् एयर होस्टेज के रूप में काम करने लगीं.

5 सितम्बर को पैन एम 73 विमान लगभग 400 यात्रियों को लिए पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर अपने पायलट के इंतजार में खड़ा था. तभी 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया. उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि विमान में पायलट को जल्दी भेजा जाये. पाकिस्तानी सरकार ने ऐसा करने से मना कर दिया. तब आतंकियों ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करने का आदेश दिया ताकि वह किसी अमरीकी नागरिक को मारने की धमकी से पाकिस्तान पर दबाव बना सकें. नीरजा ने विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी पासपोर्ट आतंकियों को सौंप दिये. फिर आतंकियों ने एक ब्रिटिश को मारने की धमकी दी किन्तु नीरजा ने उस आतंकी से सूझबूझ से बात करके ब्रिटिश नागरिक को बचा लिया. धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गये. अचानक नीरजा को ध्यान आया कि विमान में ईंधन किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा, तब यात्रियों को बचाना आसान होगा. ऐसा विचार आते ही उन्होंने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना और साथ में विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा.

नीरजा ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ. विमान का ईंधन समाप्त होते ही चारों ओर अंधेरा छा गया. नीरजा ने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये. सभी यात्री भी आपातकालीन द्वार पहचान चुके थे. योजना के अनुसार सारे यात्री उन द्वारों से नीचे कूदने लगे. यह देख आतंकियों ने अंधेरे में ही फायरिंग शुरू कर दी. नीरजा के सावधानी भरे कदम से कोई यात्री मारा नहीं गया. हां, कुछ घायल अवश्य हो गये थे. इस बीच पाकिस्तानी सेना के कमांडो विमान में आ गए थे. उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया. सबसे अंत में नीरजा निकलने को हुई तभी उन्हें बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी. वे उन बच्चों को खोज कर आपातकालीन द्वार की ओर बढीं तभी बचे हुए चौथे आतंकवादी ने गोलीबारी शुरू कर दी. नीरजा बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल कर उस आतंकी से भिड़ गईं. यद्यपि उस चौथे आतंकी को पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया तथापि वे नीरजा को न बचा सके. 5 सितम्बर 1986 को मात्र 23 वर्ष की उम्र में नीरजा अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए शहीद हो गई.

नीरजा देश की पहली महिला हैं जिन्हें भारत सरकार ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया. पाकिस्तान सरकार ने भी नीरजा को तमगा-ए-इन्सानियत प्रदान किया. भारत सरकार ने सन 2004 में नीरजा के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का नाम हीरोइन ऑफ हाईजैक के रूप में मशहूर है. वर्ष 2005 में अमेरिका ने उन्हें जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड दिया. उनकी स्मृति में मुम्बई के घाटकोपर इलाके में एक चौराहे का नामकरण किया गया, जिसका उद्घाटन अमिताभ बच्चन ने किया. नीरजा के साहसिक कार्य और उनके बलिदान को याद रखने के लिये राम माधवानी के निर्देशन में नीरजा फ़िल्म का निर्माण किया गया. इस फ़िल्म में नीरजा का किरदार अभिनेत्री सोनम कपूर ने निभाया. इस फिल्म को 19 फ़रवरी 2016 को रिलीज किया गया.

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