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देश का नौजवान अपने साथ-साथ बुजुर्ग पीढ़ी के कारण भी निराश है

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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बहुत पहले ओशो ‘रजनीश’ के द्वारा दिये गये प्रवचनों के लिखित रूप को पढ़ने पर ज्ञात हुआ था कि उन्होंने एक बार कहा था कि भारत देश में नौजवान होते ही नहीं हैं। पैदा होते समय कोई भी मनुष्य बच्चा होता है, वह अपने बचपने में होता है और इसके बाद देश में उसकी शादी की चर्चायें होने लगती हैं। इससे पहले कि वह युवावस्था के सुखों को ले सके उसकी शादी कर दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप वह जल्द से जल्द बच्चे पैदा करके स्वयं बाप बन जाता है। अन्ततः वह स्वयं बुजुर्ग पीढ़ी के समकक्ष खड़ा हो जाता है।

ओशो के द्वारा कहे गये शब्द भले ही यहां अक्षरशः वही न हों किन्तु उनका भावार्थ कुछ इसी रूप में था कि कैसे हमारा समाज किसी नौजवान को उसकी युवावस्था में ही उसे बुजुर्गों की श्रेणी में खड़ा कर देता है। जिस समय युवा पीढ़ी को अपनी युवावस्था के तेज का लाभ समाज को देना चाहिए, जिस समय नौजवानों को अपनी शक्ति देशहित में लगानी चाहिए वे उसे अपने बच्चों के पालन-पोषण में लगा रहे होते हैं।

ओशो ने यह बात आज से लगभग दो दशक से भी अधिक समय पूर्व कही थी किन्तु कहीं न कहीं यह बात आज भी अक्षरशः सही साबित हो रही है। आज भले ही नौजवानों की शादियां उनके उस समय में नहीं होती हैं जबकि वे स्वयं युवावस्था की ओर कदम रख रहे होते हैं, भले ही उनको परिवार के दायित्वों का निर्वहन उस समय में नहीं करना होता है जबकि वे स्वयं अपनी युवावस्था के मजे ले रहे होते हैं पर इसके बाद भी नौजवानों को युवावस्था के सुखों को नहीं लेने दिया जा रहा है।

नौजवानों को सही दिशा में न ले जाने के कारण, उनकी शक्ति, उनकी सम्भावनाओं का सही प्रयोग न होने के कारण वे अपनी शक्ति को गलत दिशा की ओर ले जा रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि देश का नौजवान आज पूरी तरह से दिग्भ्रमित है, उसे सही गलत का फर्क भी नहीं समझ में आ रहा है।

नौजवानों का इस तरह से भटकना हमारे देश के लोगों द्वारा ही हो रहा है। हमारी अग्रज पीढ़ी इस नौजवान पीढ़ी को देश के विकास की ओर नहीं ले जा सकी है। इस पीढ़ी को वह राजनीति की सक्रियता की ओर नहीं मोड़ सकी है। वर्तमान में देश के युवा वर्ग में राजनीति की ओर से जो रुझान मिल रहा है वह निराश करने वाला ही है। यदि यही हाल नौजवानों का देश की राजनीति के प्रति रहा तो वह दिन दूर नहीं जबकि देश को सिर्फ और सिर्फ बुजुर्ग ही चला रहे होंगे अथवा गुण्डे मवालियों के हाथों में सत्ता आ जायेगी।

इस भटकाव के पीछे हमारी बुजुर्ग पीढ़ी भी जिम्मेवार है। दो उदाहरण तो अभी साफ देखने को मिल रहे हैं। एक तो राजनीति में सक्रिय दलों में ज्यादातर के पास बुजुर्गों की अच्छी खासी भीड़ है और युवा वर्ग का घोर अभाव है। इसी तरह से महाविद्यालय के शिक्षकों द्वारा अपनी सेवानिवृत्ति की आयु को 62 वर्ष से 65 वर्ष करने की अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष कर रखी है। देखा जा सकता है कि हमारी अग्रज पीढ़ी किस मुस्तैदी के साथ युवाओं के साथ है।

अभी हाल का आपको एक उदाहरण और दें जो साबित करता है कि युवाओं के प्रति इन बुजुर्गवारों का नजरिया क्या है। जनपद जालौन में विगत दो-चार माह पूर्व ही भाजपा के जिला अध्यक्ष का चयन किया गया। इसके बाद पिछले माह में जिला कार्यकारिणी का गठन किया गया। लगभग सभी पदों पर चुनाव कर लिया गया, सिर्फ एक महत्वपूर्ण पद ‘जिला प्रवक्ता’ को छोड़कर। इस पद पर दो नामों पर विचार किया जा रहा था। उस नाम युवा वर्ग के सक्रिय व्यक्ति का था और दूसरा नाम अच्छे–खासे बुजुर्ग सज्जन का था।

इस पर विचार करना इस कारण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि इन बुजुर्ग सज्जन को लगभग 20-22 वर्ष पूर्व भाजपा की जिला इकाई का अध्यक्ष मनोनीत किया जा चुका है। ऐसी दशा में जबकि वे सज्जन जनपद जालौन में भाजपा के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं उन्हें अपनी इस अवस्था में जिला प्रवक्ता पद की दौड़ में एक युवा व्यक्ति के समकक्ष खड़ा कर लेना उनकी स्वयं की मानसिकता को दर्शाता है।

इस तरह का घटनाक्रम लगभग दो वर्ष पूर्व जनपद जालौन की भारतीय रेडक्रास सोसायटी के सचिव पद पर भी देखने को मिला था। उस समय भी जनपद के प्रशासन की मर्जी और जबरदस्ती से ऐसे बुजुर्ग व्यक्ति को सचिव बनवा दिया गया था जो जनपद में भारतीय रेडक्रास सोसायटी के संस्थापक अध्यक्ष रह चुके थे।

इस तरह की घटनाएं तो पूरे देश में फैली होगी बस सामने आने की बात है। बुजुर्गों के बीच युवाओं की पसंद और नापसंद को उनके स्वार्थों के आधार पर देखा समझा जा सकता है। कुल मिला कर इतना तो अवश्य ही कहा जा सकता है कि यदि बुजुर्ग पीढ़ी का यही रवैया नौजवानों के प्रति रहा तो वह दिन दूर नहीं जब युवा वर्ग अपनी शक्ति का प्रयोग अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए इन्हीं बुजुर्गों के विरुद्ध करना शुरू कर देगा।

इससे पहले कि बेइज्जत करके बुजुर्गों से शक्ति-शासन को युवा वर्ग छीन ले बुजुर्गों को स्वयं ही सत्ता का हस्तांतरण उनके हाथों में कर देना चाहिए और स्वयं को नीति नियंताओं की श्रेणी में शामिल कर देना चाहिए। वैसे भी कहा जाता है कि जब घर के बेटे गाड़ी चलाने लगें तो बुजुर्गों को पीछे बैठकर सवारी का आनन्द लेना चाहिए न कि सड़क की, यातायात की परेशानियों के बीच गाड़ी चलाने का कष्ट उठाना चाहिए।

इसके बाद भी हाल फिलहाल लगता तो यही है कि अभी बुजुर्गों के रहते देश को नौजवानों की जरूरत है नहीं।

चित्र गूगल छवियों से साभार

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