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नकारात्मकता की ओर बढ़ता विपक्ष

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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शून्य को भरने के लिए समाज में सलाह दी जाती है सकारात्मक सोच की, सार्थक कार्य करने की. इसके उलट राजनीति में शून्य को भरने के लिए विशुद्ध राजनैतिक हथकंडे अपनाये जाते हैं. इन हथकंडों को अपनाने में खून भी बहाना पड़े, आग भी लगानी पड़े, झूठ का सहारा लेना पड़े तो भी कम है. वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में केंद्र से विपक्ष लगभग शून्य की स्थिति में है. वर्तमान लोकसभा में गिने-चुने दलों को अवसर मिल पाया कि उनके प्रतिनिधि सदन में बैठ सकें. केन्द्रीय सत्ता के कार्यों और उसके प्रतिनिधियों के चाल-चलन में खोट न निकाल पाने के कारण, विगत तीन वर्षों में किसी भी तरह के घोटाले न निकाल पाने के कारण, केन्द्रीय नेतृत्व के कार्यों से जनता को असंतुष्ट न देख पाने के कारण विपक्षी दलों में हताशा का माहौल है. इसको महज ऐसे समझा जा सकता है कि देश भर में जबरदस्त विरोधी रहे विपक्षी दल भी आपस में गलबहियाँ करते दिख रहे हैं. ये गलबहियाँ समाजहित में नहीं हैं, देश की भलाई के लिए नहीं हैं, राजनैतिक सुधार के लिए नहीं हैं वरन केंद्र की सरकार को हटाने के लिए हैं. इन लोगों को खुद से एक सवाल करना चाहिए कि आखिर केंद्र की सरकार ने ऐसे कौन से काम किये हैं जो जिसको लेकर उसे हटाने की बात की जाये? देखा जाये तो विपक्षियों के पास वर्तमान में कोई मुद्दा नहीं है इसलिए उनके द्वारा ऐसे कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है जिसके चलते देश में, समाज में तनाव का माहौल बने और लोगों में केंद्र के प्रति भाजपा के प्रति नफरत पैदा हो. विपक्षियों की इस सोच के पीछे का मूल कारण दो वर्षों में संपन्न होने वाले लोकसभा चुनाव हैं. उनकी सोच है कि समाज में इस तरह के तनाव पैदा करने से केंद्र के प्रति, भाजपा के प्रति नाराजगी पैदा होगी जो विपक्षियों के लिए लाभदायक रहेगी.

विपक्षियों की इसी नकारात्मक सोच का परिणाम है कि केरल में कांग्रेसियों द्वारा खुलेआम एक गाय को काट डाला गया, उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में चलाया गया. इसी तरह खबर आई है कि विधायकों ने अपनी बैठक के पहले बीफ खाकर केंद्र सरकार के पशुवध सम्बन्धी नियम का विरोध जताया है. बिना सम्पूर्ण नियमावली को देखे-पढ़े सिर्फ विरोध करने के नाम पर विरोध की राजनीति ने ऐसे कृत्यों को अंजाम दिया. कुछ इसी तरह का कार्य आजकल मध्य प्रदेश में देखने को मिल रहा है. जहाँ किसानों के आन्दोलन के नाम पर हताश-निराश विपक्ष अपने कार्यकर्ताओं के साथ सड़क पर है. किसानों की कर्जमाफी के नामपर जिस तरह का उपद्रव पिछले कुछ दिनों से प्रदेश की सड़कों पर दिख रहा है वह किसी भी रूप में किसानों का आन्दोलन नहीं लग रहा है. कारों, बसों को जला देना, यात्रियों से भरी बस में तोड़फोड़ करना आदि लक्षण नहीं हैं किसी भी किसान आन्दोलन के. इसका प्रमाण भी वो वीडियो दे रहा है जिसमें एक विधायक को थाने में आग लगा देने की बात कही जा रही है. असल में देश भर में जहाँ-जहाँ विपक्षी कमजोर हैं अथवा भाजपा तेजी से उठ रही है वहाँ-वहाँ विपक्षियों की एक सोची-समझी साजिश के द्वारा ऐसे कार्य किये जा रहे हैं.

कार्यों में नकारात्मकता खोजने में विफल विपक्ष, घोटाले-विहीन सरकार की लोकप्रियता में वृद्धि देख कर घबराता विपक्ष, सरकार के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यों में सफलता देखकर हताश होते विपक्ष के पास कोई मुद्दा शेष भी नहीं है जिसके आधार पर वे जनता के बीच जा सकें. इसके चलते वे सिवाय नफरत, गुंडागर्दी फ़ैलाने के कुछ और नहीं कर पा रहे हैं, न कुछ और सोच पा रहे हैं. विपक्ष का ये रवैया किसी भी रूप में न तो भाजपा के लिए घातक है और न ही केन्द्रीय सत्ता के लिए. यदि ये रवैया घातक है तो सिर्फ समाज के लिए. इस तरह के कृत्य से समाज में वैमनष्यता बढ़ने का खतरा रहता है आपसी तालमेल समाप्त होने की शंका उभरती है. विपक्षियों को आपस में गलबहियाँ करते समय विचार करना होगा कि उनका गठबंधन काहे के लिए हो रहा है? क्या वाकई वे समाज के लिए एक होना चाहते हैं? क्या उनके एक होने का मकसद सिर्फ सत्ता पाना है? क्या समाज को वाकई केन्द्रीय नेतृत्व से लाभ नहीं मिल रहा है? बहरहाल वर्तमान स्थिति में केन्द्रीय सत्ता को तथा भाजपानीत प्रादेशिक सरकारों को सजग रहने की आवश्यकता है क्योंकि विपक्षी हताशा-निराशा में माहौल बिगाड़ने के अलावा कोई और काम करेंगे नहीं. उनकी गिरती स्थिति का सूचक सिर्फ इतना है कि विपक्षी अब सरकार के कार्यों की बजाय उसके बयानों में कमियाँ खोजने का काम करने लगे हैं. जब देश का, प्रदेश का विपक्ष इतना कमजोर हो जाये कि वो कार्यों के बजाय शब्दों पर राजनीति करने लगे, किसी और के नाम पर अपने कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतारने लगे, समाजहित की जगह पर समाज में विध्वंस फ़ैलाने लगे तो समझ लेना चाहिए कि वातावरण विषाक्त होने वाला है.

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