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प्यार महसूस करने का नाम है — “Valentine Contest”

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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प्यार, यह शब्द अपने आपमें ही एक प्रकार की पावनता का संचार सा करता है। इस शब्द के गहरे अर्थ को उस समय समझ पाना हमारे लिए थोड़ा मुश्किल था जबकि हम प्यार को लड़के और लड़की के मध्य सिर्फ दोस्ती के दायरे तक सिमटा हुआ मानते थे। तब हमारे लिए प्यार का अर्थ लड़कों का लड़कियों से और लड़कियों का लड़कों से दोस्ती करना मात्र था।

युवावस्था की दहलीज पर बढ़ते कदम, कॉलेज की परिधि में जाकर थम से गये। हर तरफ स्वतन्त्रता ही स्वतन्त्रता, हर ओर रंगीनियां ही रंगीनियां, हर कदम पर अल्हड़ता ही दिखाई देती थी। कॉलेज में आकर लगा कि अपने युवा होने का कोई प्रमाण-पत्र सा मिल गया हो। दिल ने धड़कना भी जैसे यहीं सीख लिया हो। अपने ही दिल की धड़कन किसी और के लिए धड़कती सी लगती, अपना ही दिल किसी और की बात को मानते दिखता था।

प्यार क्या होता है इसे जाने-समझे बिना बस स्वयं में यह एहसास जिन्दा किया जाने लगा कि हमें भी फलां से प्यार हो गया है। आशिकी का मर्म जाने बिना स्वयं को आशिकों की सूची में स्वमेव ही शामिल कर दिया। मौसम सदा गुलजार लगने लगा, आसमान हमेशा मुट्ठी में दबा सा दिखने लगा, धरती कदमों के साथ-साथ दौड़ती दिखने लगी, बस यही प्यार समझ में आने लगा। समय गुजरने के स्थान पर भागने सा लगा, स्वमेव बनाया गया साथी अपना होते हुए भी अपना सा न लगे।

हम नौजवानों की इस एकतरफा प्रेमकहानी के बनते-बिगड़ते पलों के बीच, साथियों के चयन के होने-न होने के बीच एक और प्रेम-कहानी स्वयंभू आशिकों के साथ-साथ घूमती रहती। कॉलेज के एक सर और एक मैडम के प्यार के किस्से हवाओं में चोरी से अपना सीना ताने घूमते रहते। किस्से तमाम सारे रहते पर हकीकत क्या रहती इससे कोई भी वाकिफ नहीं था। हां, इन किस्सों में कोई भी अशालीनता नहीं होती।

समय गुजरते-गुजरते हम सभी को कॉलेज के दायरे से बाहर लाकर समाज की प्रयोगशाला में ले आया। कॉलेज का प्यार बस कॉलेज की सीमा-रेखा में ही पनपा, यहीं पला और फिर यहीं पर बिना कोई आकार लिए दफन हो गया। कॉलेज के बाहर की दुनिया से रूबरू होने के कुछ समय बाद अचानक उन्हीं सर से मुलाकात हो गई जो हम युवाओं के बीच चर्चित प्रेम-कहानियों के आदर्श नायक हुआ करते थे। पता नहीं यह कॉलेज के बाहर अरसे बाद मिलने की खुशी रही अथवा गुरु-शिष्य परम्परा का मिलन कि सर और हमारे बीच बहुत सी बातों का आदान-प्रदान हुआ।

कॉलेज से बाहर की दुनिया में उनके सामने उनका शिष्य तो था ही साथ ही एक जिम्मेवार नागरिक भी खड़ा था। बातों ही बातों में उनसे पता नहीं किस रौ में कॉलेज समय में उड़ते उनके और मैडम के प्यार भरे किस्सों की चर्चा छेड़ बैठा। उन्होंने उस दिन प्यार का मर्म समझाया तो लगा कि वाकई प्यार केवल देह का आकर्षण नहीं, दो दिलों के साथ उनकी भावनाओं के संरक्षण और मान देने का नाम भी है। उन दोनों का अपनी-अपनी कुछ मजबूरियों के कारण अपने प्यार को किसी रिश्ते का नाम न दे पाना भले ही रहा हो किन्तु दोनों का आजीवन अविवाहित रहने का प्रण उनके प्यार की गहराई को दर्शाता सा दिखा।

उस दिन अपने प्यार की जो हकीकत सर ने बताई उसने सर के प्रति तथा मैडम के प्रति श्रद्धा के भाव को अनन्त की श्रेणी तक बढ़ा दिया। समझा दिया कि प्यार का अर्थ वह तो नहीं जो मात्र एक दिन के नाम पर दर्शाया जाये, प्यार वह भी नहीं जो आज के युवा दर्शा रहे हैं। प्यार तो लेने से अधिक देने का नाम है, प्यार तो दिखाने से अधिक महसूस करने का नाम है, प्यार देह से अधिक आत्मा से एहसास करने का नाम है। वर्तमान में प्यार के नाम पर होते आ रहे आयोजनों को देख्कर लगता है कि क्या आज के युवाओं में काई होगा जो सर-मैडम की तरह के प्यार के पासंग भी ठहरता होगा। शायद हम भी नहीं।

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