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बुन्देलखण्ड पैकेज नहीं दीजिये, समस्या की जड़ सुलझाइए

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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चुनावी मानसून के आने की दस्तक के बाद से उत्तर प्रदेश में सभी राजनैतिक दलों के द्वारा आश्वासनों की, खुद को सक्षम बताने की छुटपुट बारिश होनी शुरू हो गई है। इस तरह की दिखावटी प्रक्रिया में सरकारें भी पीछे नहीं रही हैं। केन्द्र सरकार रही हो अथवा राज्य सरकार किसी ने भी बुन्देलखण्ड के प्रति सकारात्मक रुख नहीं दिखाया है। इनके कदमों से स्पष्ट रूप से स्वार्थपरक राजनीति की बू आती दिखाई देती है।

विचारात्मक सडांध लिये चली आती इस प्रकार की भावना का पुनः बुन्देलखण्ड के नाम पर प्रदर्शन किया गया और इस क्षेत्र के लिए फिर से ‘बुन्देलखण्ड पैकेज’ नामक झुनझुना यहाँ के निवासियों को पकड़ाने की तैयारी की जाने लगी है। भले ही सरकारी स्तर पर इस तरह के कदमों से किसी राहत की उम्मीद दिखाई देती हो किन्तु वास्तविक में ऐसा कुछ भी नहीं है। बुन्देलखण्ड के पैकेज के नाम पर यहाँ आसानी से बंदरबाँट होते देखा जा सकता है।

देखा जाये तो सिर्फ पैकेज का उपलब्ध हो जाना, उसके द्वारा बुन्देलखण्ड क्षेत्र को प्राप्त होने वाली धनराशि से ही समस्त प्रकार की समस्याओं का निपटारा हो जाना सम्भव नहीं दिखता है। दरअसल बुन्देलखण्ड क्षेत्र की मूलभूत समस्याओं की ओर किसी भी प्रकार से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वास्तविकता तो यह है कि यहाँ की समस्याओं के प्रति योजना बनाने वालों का भी सकारात्मक रुख नहीं दिखाई देता है। सरकार से इतर बुन्देलखण्ड के विकास की माँग करते राजनैतिक दलों की, विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं की स्थिति यह है कि वे भी यहाँ की समस्या को, उसके समाधान को सही तरीके से न तो जनता के सामने रख पा रहे हैं और न ही सरकारी तन्त्र को इससे परिचित करवा पा रहे हैं। लगभग प्रत्येक स्तर पर एक प्रकार की अनभिज्ञता का माहौल बना दिखाई देता है।

बुन्देलखण्ड की समस्या किसानों की आत्महत्या नहीं है, यहाँ के लोगों की समस्या पानी की कमी नहीं है, युवाओं का होता पलायन इस क्षेत्र की समस्या नहीं है, असल में ये तो समस्याओं से पैदा होने वाले परिणाम हैं। सरकारी तन्त्र को, बुन्देलखण्ड के हितों की बात करने वालों को इन परिणामों को उत्पन्न करने वाले कारकों की ओर ध्यान देना चाहिए, जो किसी भी रूप में उनके द्वारा नहीं किया जा रहा है। किसानों की आत्महत्या के पीछे वित्तीय संस्थाओं की ज्यादतियों के साथ-साथ गाँव के दबंग लोगों का शोषण है। जल समस्या भी जनजागरूकता का अभाव और सरकारी मशीनरी का संज्ञाशून्य होकर कार्य करना रहा है। युवाओं के पलायन के पीछे इस क्षेत्र में रोजगार की कमी, उद्योगों की नगण्य संख्या में स्थापना आदि मुख्य बिन्दु हैं।

बुन्देलखण्ड को मिलने वाले पैकेज से सिर्फ और सिर्फ अफसरशाही, राजनेताओं और चन्द चाटुकार लोगों को ही लाभ प्राप्त होगा शेष समस्याएँ वहीं की वहीं रह जायेंगीं। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि बुन्देलखण्ड की मूलभूत समस्याओं को जान-समझ कर उनके निदान की चर्चा की जाये।

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