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योग सिखाते-सिखाते बाबा रामदेव जी कांग्रेस की राजनीति में फंस गये। बाबा ने योग सिखाने के साथ-साथ भ्रष्टाचार के विरोध में भी अपनी सांसे अन्दर-बाहर करनी शुरू की तो बहुतों को पसंद आया और बहुतों को नापसंद। इधर बाबा के इस आन्दोलन की नापंसदगी इस रूप में बढ़ी कि एक सांसद जी ने तो बाबा को सिर्फ योग सिखाने की सलाह दे डाली तो दूसरे नेताजी ने बाबा को सलाह दी कि धन लेते समय जांच करवा लिया करें कि वह कहीं काला धन तो नहीं।
अब समझ में यह नहीं आ रहा कि बाबा के भ्रष्टाचार के विरोध में निकल पड़ने से उन्हें नेताओं का विरोध सहना पड़ रहा है अथवा उन सांसद महोदय को बचाने के लिए कांग्रेस की ओर से विरोध चालू हो गया? जो भी हो पर इतना तो तय है कि बाबा अपना काम छोड़कर दूसरे के काम में टांग अड़ाने लगे हैं। बाबा का काम है देश की जनता को योग सिखाना और वे करने लगे भ्रष्टाचार हटाने की बातें, ऐसे में बाबा को विरोध तो झेलना ही था।
वैसे यह कोई नियम नहीं है कि कोई व्यक्ति किसी एक काम को कर रहा है तो देशहित में किसी दूसरे काम को नहीं करेगा। बाबा ने यही सोचकर कि वे योग के साथ लोगों की जीवन-शैली को आसान बना रहे हैं तो इसी के साथ भ्रष्टाचार पर चोट करके देश की जीवन-शैली को भी सुधार दिया जाये। बाबा जी इस प्रयास में यह भूल गये कि योग सिखाना और देश की जनता को किसी विशेष मुद्दे पर जागरूक करना दो अलग-अलग बातें हैं।
अब आप कहेंगे कि बाबा ने ऐसा कौन सा गलत काम किया जो योग सिखाते-सिखाते भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम छेड़ दी। गलत बाबा ने नहीं किया उनके करने का अंदाज गलत निकला। बाबा अपने भ्रष्टाचार विरोध के लिए पूरे जी-जान से लगे हैं और एक बार में लाखों की भीड़ को इसके प्रति जागरूक करने का काम करते हैं। इसके बाद भी भ्रष्टाचार के मीटर की सुई नीचे नहीं आ रही है। इसका कारण समझ में नहीं आया।
कहीं ऐसा तो नहीं कि अपनी लोकप्रियता को देखकर बाबा को भी राजनीति का स्वाद लग गया हो। इसके पीछे एक ठोस कारण हमें तो दिखाई देता है और वह ये कि भ्रष्टाचार देश की ऐसी कोई समस्या नहीं जो पिछले एक साल में ही उभरी हो, फिर बाबा ने साल भर पहले से इस पर पहल क्यों नहीं शुरू की। यदि आप सभी को याद हो तो देश में बाबाओं ने, नेताओं ने, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने, राजनैतिक दलों ने भ्रष्टाचार के विरोध में अपने स्वर को उस समय तेज किया जब बिहार में नीतीश कुमार दोबार लौट आये और उन्होंने भ्रष्टाचार को निशाना बनाया। सभी को लगा कि भ्रष्टाचार के विरोध से जब नीतीश दोबारा आ सकते हैं तो जो अभी तक आये भी नहीं हैं वे कम से कम एक बार तो आ ही सकते हैं।
बाबा जी आप योग के साथ भ्रष्टाचार को दूर करने की बात कर रहे हैं, अच्छा है पर कम से कम यह बताते चलें कि आप जिस ज्ञान को देश भर में बांटने का दावा करते नहीं थकते उस ज्ञान से कितने गांवों को, कितने गरीबों को अपने शिविरों के द्वारा लाभान्वित किया है? आप बतायें कि आपके शिविर क्यों बड़े शहर में लगते हैं और उनकी फीस का स्वरूप अलग-अलग क्यों होता है? आप बतायें कि आपके योग-शिष्यों में से कितनों ने आपसे प्रभावित होकर अपनी ब्लैकमनी को जनता के, सरकार के सामने उजागर किया है? आप यह भी संज्ञान में ले लें कि आपके आसपास विचरने वाला मानव जीव क्या भ्रष्टाचार से मुक्त हो सका है?
आपने लगता है राजनीति का मन बना लिया है और इसी कारण से नगर-नगर अपने शिष्यों को कागजों पर हस्ताक्षर लेने का ठेका सा बांट दिया है। अरे, जागरूकता मन के भीतर से आती है, किसी के द्वारा कागज पर हस्ताक्षर के द्वारा नहीं। आप लोगों के मन को जगाने का काम करें, भ्रष्टाचार स्वयं भाग जायेगा। आप स्वयं विचार करिये कि आपकी इस लोकप्रियता के बाद भी आपके शिष्य जनता के हस्ताक्षरों को मोहताज घूम रहे हों तो यह आपके अभियान पर, आपकी संकल्पना पर, आपके स्वयं के विश्वास पर प्रश्नचिन्ह है। कृपया लोगों को निरोग बनाने का ही काम पहले कर लें, मन को, तन को निरोग बनाने का संकल्प कर लें, देखियेगा कि देश स्वयं ही भ्रष्टाचार से मुक्त होकर निरोग दिखाई देगा।
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दोनों चित्र गूगल छवियों से साभार
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